बुद्धिमती चुहिया
रानी चुहिया बरगद के एक बड़े पेड़ की जड़ में अपना बिल बनाकर रहती थी । उसके चार छोटे-छोटे बच्चे थे । रानी चुहिया बड़ी मेहनती थी । वह सारे दिन परिक्रमा करती और खाने के लिये खूब सारी चीजें जुटा लेती ।
जंगल में खाने-पीने की कमी भी न थी । इस प्रकार रानी चुहिया अपने बच्चों के साथ आराम से रह रही थी । पर एक दिन सहसा पास बहने वाली नदी में बाढ़ आ गयी । चारों ओर पानी ही पानी फैल गया ।
बरगद का वृक्ष भी पानी में डूबने लगा तो रानी ने घबराकर अपने बच्चों को बिल से बाहर निकाला और सभी के साथ जाकर पेड़ की सबसे ऊपर वाली टहनी की कोटर में छिपकर बैठ गयी ।
पानी था कि रुकने का नाम ही न ले रहा था । लग रहा था कि वह पूरे वृक्ष को ही डुबो देगा । अब तो रानी बहुत ही घबराई । क्या करे और कैसे अपनी और अपने बच्चों की जान बचाये |
तभी रानी ने सुना कि पेड़ की कोटर में रहने वाला कोई। कौवा अपने बेटे से कह रहा है- ‘लल्लू ! जल्दी ही यहाँ से चलें, पानी इस पेड़ को डुबाने ही वाला है ।’
विपत्ति में रानी का दिमाग तेजी से काम कर रहा था । वह सोचने लगी कि क्यों न इस कौवे से अनुनय कर लूँ कि मुझे यहाँ से ले चले । जैसे ही कौवा अपने बच्चे सहित घोंसले से निकला कि रानी ने जोर से पुकार कर कहा – ‘कौवे भाई ! तुम मुझे और मेरे भाई को भी यहाँ से ले चलो । मैं जीवन भर तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूँगी ।’
कौवे ने चारों और गरदन घुमाकर देखा कि आवाज कहाँ से आ रही है । सहसा उसकी निगाह सिकुड़ कर बैठी रानी और डर से काँपते उसके बच्चों पर पड़ी । वह मन ही मन कहने लगा कि कोई जिये या मरे मुझे क्या ? मैंने क्या सारी दुनियाँ की रक्षा का ठेका ले रखा है ?
कौवा अपने बच्चे से बोला- ‘लल्लू ! तुम्हें ठीक से उड़ना तो आता नहीं । इस बाढ़ में अगर कहीं गिर गये तो बच भी न पाओगे । तुम ऐसा करो कि मेरी पीठ पर बैठ जाओ ।’
कौवा अपने बच्चे को पीठ पर बैठा कर उड़ने ही वाला था कि चुहिया फिर बोली- ‘कौवे भाई ! हमको भी यहाँ से ले चलो । हम तुम्हारे इस उपकार का बदला अवश्य चुका देंगे । दूसरों की देता है ।’
सहायता करने वालों को भगवान भी आशीर्वाद कुछ सोचकर कौवा रुक गया । मीठी वाणी में बोला- ‘चुहिया रानी आखिर तुम समझती नहीं । दूसरों की सहायता करना और उनके प्राण बचाना आखिर किसे बुरा लगेगा ? पर मेरी परेशानी तो यह है कि मैं तुम सबको ले कैसे जाऊँगा ।
पीठ पर तो मेरा बच्चा बैठा है । वह खुद उड़ना नहीं जानता इसलिये उसे मैं उतार नहीं सकता । तुम लोग एक-दो होते तो मैं ले भी जाता । तुम हो भी तो संख्या में पाँच । आखिर में तुम्हें यहाँ से ले भी जाऊँ तो कैसे ?’
रानी को सहसा ही एक तरकीब सूझी । कौवे से वह बोली- ‘सुनो जरा रुको । तुम्हें इस विषय में अधिक चिन्ता नहीं करनी होगी ।’
रानी ने जल्दी से बरगद की एक मजबूत जटा अपने पैने दाँतों से कुतर डाली । फिर उसे जल्दी से ऊपर खींच लिया । एक-एक करके अपने चारों बच्चों के और अपने पंजे उसमें कसकर बाँध दिये | अब वह जटा का आगे का भाग कौवे को पकड़ाती हुई बोली-“लो इसे पकड़कर ले चलो ।’
कौवे ने उसे अपनी चोंच में पकड़ा ही था कि चुहिया बोल उठी- ‘न भाई न ! इसे चोंच में न पकड़ो। रस्सी में पाँच जानें बँधी हैं । तुम जरा-सा भी बोले तो रस्सी छूटी और हम सब मरे । इसे तो तुम अपने पंजों में पकड़ लो, आखिर एक पंजे से रस्सी छूटेगी, तो दूसरे से कसकर पकड़ तो लोगे ।’ कोवे ने रानी चुहिया की बात मान ली। वह यह रस्सी को
अपने पंजों में मजबूती से पकड़कर पीठ पर लल्लू को बिठाकर बरगद के उस पेड़ से उड़ चला । कौवे को यों इस प्रकार जाते देखकर अनेकों निगाहें उस पर पड़ीं । एक गिद्ध ने भी उसे देखा और उसके मुँह में पानी भर आया ।
उसने अपने मन में सोचा कि आज तो खूब छककर दावत होगी । गिद्ध भी छिपकर कौवे के पीछे-पीछे उड़ चला ।
जब पानी खतम हो गया ओर सूखी जमीन आ गयी तो कौवा आसमान से उतरा । रानी बोली- ‘कौवे भाई ! तुमने मेरे परिवार की जान बचाई है । मैं तुम्हारे उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकती ।
मैं कभी न कभी तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी । अब अपने पंजों से रस्सी खोलो जिससे हम सब जल्दी ही अपने रहने का ठिकाना खोज लें ।’ तभी लल्लू बोला- ‘पिताजी! मुझे तो बहुत ही जोरों की भूख लग रही है ।’ कौवा कहने लगा- ‘आज तो मैं और तुम छककर खायेंगे । माल सामने है ।’
कौवे की बात सुनकर रानी सचेत हो गयी थी । अतएव जैसे ही कौवे ने रानी के बच्चे के चोंच लगायी, उसने जोर से अपनी पूँछ घुमाकर उसके मुँह पर दे मारी । पूँछ कौवे की पुतली पर जोर से लगी, वह तिलमिला उठा ।
रानी बोली–‘ओह ! विपत्ति में पड़े हुए प्राणियों की रक्षा के बहाने तुम अपना ही स्वार्थ पूरा करना चाहते हो । धिक्कार है तुम्हें । याद रखो ! कभी तुम पर भी मुसीबत आ सकती है और तुम्हें भी दूसरों की सहायता की जरूरत पड़ सकती है ।
मत भूलो हम भी समाज में रहते हैं । दूसरों की सहायता की आवश्यकता हमें पड़ती रहती है । कौवे भाई, मुसीबत में तुम्हारे साथ भी कोई ऐसा ही व्यवहार करे, तो कैसा लगेगा तुम्हें ?’
कौवा तुनककर बोला- ‘मैं न तो परोपकारी हूँ, न कोई महान् आत्मा – जो सबकी सेवा करता फिरूँ । गलती मेरी नहीं तुम्हारी है, जो तुमने मुझ पर इतना अधिक विश्वास किया । अब तुम सबको हमारे पेट में जाने से कोई बचा नहीं सकता ।’
रानी ने सोचा कि अन्तिम बार इससे विनती करके देखती हूँ । दुष्ट को पहले बातों से ही मनाना चाहिये । यदि कहे हुए का उस पर कोई असर न हो तो फिर चतुराई से कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा।
रानी दोनों पंजों को जोड़कर विनम्रता -पूर्वक कहने लगी- ‘कौवे भाई ! आखिर कुछ तो लिहाज करो। मैं तुम्हें भाई कहा है, ये छोटे-छोटे बच्चे तुम्हारे भानजे हुए । अपने इन भानजों को क्या खा पाओगे तुम ?’
पर धूर्तों और स्वार्थियों के लिये कोई रिश्ता नहीं होता । कौवे ने रानी की एक न सुनी और सबसे पहले उसे ही खतम करने लिये चोंच आगे बढ़ायी । कोवा सोच रहा था कि यह मर जायेगी तो इसके बच्चों को बचाने वाला कोई न रहेगा और वह चैन से उन्हें खा सकेगा ।
कौवे की चोंच रानी तक पहुँची भी न होगी कि गिद्ध बीच में ही चुहिया को खाने लपका। हड़बड़ाहट में उसके पंजे से बरगद की जटा छूट गयी, पर पल भर में ही उसकी समझ में सारी बात आ गयी । वह गुस्से में भरकर गिद्ध से बोला- ‘इसे यहाँ तक लाने में मैंने मेहनत की है, इस पर मेरा हक है । तुम चोर-डकैत की तरह बीच में लूटपाट क्यों करते हो ?’
गिद्ध अपनी लाल-लाल आँखें घुमाकर कह रहा था- ‘तुम में साहस हो तो मेरे सामने इसे खाकर तो देखो ।’ फिर गिद्ध ने जोर से कौवे के पेट में अपनी चोंच मारी और बोला-‘चलो हटो यहाँ से! मुझे खाते समय किसी की बकवास सुनना पसन्द नहीं ।’
कौवे और गिद्ध की लड़ाई का रानी ने उठाया । उसने अपने बच्चों से धीरे से कुछ कहा । सभी ने तेजी पूरा फायदा से अपने दाँतों से जटा कुतरकर अपने पंजे छुड़ा लिये और जल्दी से भागकर पास की झाड़ी में जाकर छिप गये । कौवे और गिद्ध की निगाह जब यहाँ गयी तो उन्होंने पाया कि
शिकार का कहीं अता-पता ही न था । दोनों एक-दूसरे को लाल-लाल आँखों से घूरते हुए, हाथ मलते हुए वहाँ से उड़ गये । यह देखकर झाड़ी में छिपे रानी चुहिया के बच्चों ने जो अभी तक डर से काँप रहे थे, चैन की साँस ली ।
वे उससे पूछने लगे–‘ माँ ! क्या दुनियाँ में सभी ऐसे ही स्वार्थी होते हैं ?’ चुहियाउन्हें समझाने लगी-‘बच्चो ! संसार में अच्छे प्राणी भी हैं और बुरे भी । कौन कैसा होगा ?
यह उससे बार-बार व्यवहार करने के बाद ही पता लगता है । किसी को परखे बिना उस पर विश्वास न करो । विश्वास होने पर भी अन्धा विश्वास न रखो । दूसरों से अधिक, अपने पुरुषार्थ पर, अपनी बुद्धि पर भरोसा रखो और उसका प्रयोग करो । तभी तुम जीवन में सफलता पा सकते हो, कठिन स्थिति से उबर सकते हो ।
तभी छोटा बच्चा बोल पड़ा- ‘तुम्हारी बात हम सदैव ध्यान में रखेंगे । अब खाना लाओ, जोरों से भूख लगी है । ‘तुम सभी छिपकर झाड़ी में ही बैठे रहना इधर-उधर नहीं जाना ।’ यह कहकर चुहिया उनके लिये खाने की खोज में दोड गयी ।