सच्ची कमाई

सुंदर वन के सभी जानवर कालू कुत्ते से तंग आ गए थे। तंग होने का कारण उसका लालचीपन था। यों कालू कुत्ता सभी की भलाई किया करता था।

उसमें परोपकार की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह दूसरे जानवरों की भाँति औरों की बुराई करने में अपना समय नहीं बिताया करता था। अपने इन गुणों के कारण वह सभी को प्यारा लगता था। पर कालू के चटोरपन के कारण जंगल के जानवरों को परेशानी थी।

कालू की गंदी आदत थी कि वह खाने-पीने की कोई बढ़िया चीज देखता तो उसके मुँह से लार टपकने लगती। उसका विवेक समाप्त हो जाता, वह भूल जाता कि वह मेरी चीज है या दूसरे की । इसे मुझे खाना चाहिए या नहीं। पराये माल को वह लपालप खा जाता था।

एक दिन की बात है कि डॉक्टर नीतू लोमड़ी मरीजों को देख रही थी। वह बड़ी थकी थी, आते ही उसने खाने की पोटली खोली। किसी रोगी जानवर ने ठीक होने पर डॉक्टर नीतू लोमड़ी को वह पोटली उपहार में दी थी।

उसमें बड़े बढ़िया-बढ़िया पकवान थे। भीनी-भीनी गंद आ रही थी। लोमड़ी उन्हें खाने लगी कि न जाने कहाँ से कालू कुत्ता आ टपका। बिना नीतू से पूछे ही वह बहुत सारी मिठाई चट कर गया। नीतू लोमड़ी शिष्टाचारवश कुछ भी न कह पाई और उसे भूखा ही उठना पड़ा।

इसी प्रकार एक बार कुल्लू कौवा कहीं से खीर भरा पत्ता ले आया । वह घास पर बैठा चटकारे ले-लेकर उसे खा रहा था। तभी एकाएक कालू कुत्ता उसका पूरा का पूरा पत्ता लेकर तेजी से भाग गया। कुल्लू कौवा अपना सा मुँह लेकर रह गया।

कालू की इन शरारतों से तंग आकर जंगल के जानवरों ने एक सभा की। उसमें उन्होंने विचार किया कि जैसे भी हो कालू को सबक सिखाया जाए। जिससे वह इस प्रकार सभी को तंग करना भूल जाए। लंबू खरगोश जो बड़ा बुद्धिमान समझा जाता था, उसने कालू को सबक देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली ।

पाँच-छह दिन बाद की बात है। कलिया कोयल कुहुक कर जंगल के सभी पशु-पक्षियों के यहाँ निमंत्रण दे आई। उसने बताया कि कल लंबू खरगोश के बेटे का विवाह है। शाम को सभी उत्सव में जरूर सम्मिलित हों।

दूसरे दिन शाम को सभी जानवर नियत समय पर लंबू खरगोश के यहाँ पहुँच गए। लंबू ने उन सभी का बड़ा स्वागत किया। जब सभी विदा होने लगे लंबू खरगोश बोला- “भाइयो और बहनो! इस शुभ अवसर पर मैं सभी को कुछ उपहार देना चाहता हूँ।”

फिर लंबू खरगोश उपहारों के ढेर की ओर संकेत करके बोला- “कृपया मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें। आपको जो भी अच्छा लगे वह उपहार ले लें। “

कालू बड़ी लालची निगाहों से उपहारों के ढेर की ओर देख रहा था। जैसे ही लंबू की बात समाप्त हुई तो वह तेजी से सबसे पहले आगे बढ़ा। उसने उपहारों के ढेर से अलग रखे हुए पैकेट को उठा लिया। सभी को कालू का व्यवहार बुरा लगा।

लोमड़ी काकी ने तो कह भी दिया- “कालू ! तुम्हें बड़े-बूढ़ों का भी कुछ तो लिहाज करना चाहिए। पहले उन्हें उपहार लेने के लिए कहना चाहिए था । “

सभी जानवर अपने मन पसंद पैकेट उठाकर अपने स्थान पर लौट आए। वे यह खोलकर देखने लगे कि लंबू खरगोश ने उन्हें क्या-क्या भेंट दी है ?

तभी सहसा सबका ध्यान कालू की भों-भों पर गया। सभी पक्षियों ने देखा कि कालू बहुत ही परेशान होकर तेजी से इधर-उधर दौड़ रहा है और चीख-पुकार कर रहा है।

असल में बात यह हुई कि कालू ने जैसे ही पैकेट खोला तो उसके अंदर ढेर सारी मधुमक्खियाँ भनभनाती हुई निकलीं और कालू पर चिपट पड़ीं।

कालू उनसे बचाव करने के लिए कभी अपनी पूँछ हिलाता, कभी पंजों से उन्हें भगाता, तो कभी कान फड़फड़ाकर उन्हें मारने की कोशिश करता, पर मधुमक्खियाँ थीं कि भागने का नाम ही नहीं ले रही थीं। जगह-जगह काटकर उन्होंने कालू का बदन सुजा दिया था।

आखिर लंबू खरगोश ने मधुमक्खियों से विनती की- “बहनो! कालू ने गलती से आपको तंग किया है। कृपया अब इसे छोड़ दीजिए।”

मधुमक्खियों ने लंबू खरगोश की बात मान ली, वे उड़कर दूर जा बैठीं । कालू कुछ देर तक तो दरद से कराहता रहा, फिर गुस्से में आकर बोला- ” क्यों भाई लंबू ! क्या इस अपमान के लिए ही मुझे यहाँ बुलाया था ?”

लंबू कहने लगा-‘“देखो भैया! गलती तुम्हारी ही थी। मैंने तो उपहारों के ढेर में से कुछ लेने को कहा था। यह मधुमक्खियों का छत्ता तो मैं अपने बेटे और बहू के लिए शहद निकालने के लिए लाया था। यह तो ढेर से अलग पड़ा था। तुमने लालच में इसे क्यों उठाया? तुम्हारे लालच का ही तुम्हें फल मिला है।”

बूढ़ी लोमड़ी काकी भी कहने लगी- “कालू! तुम बहुत ही लालची होते जा रहे हो। तुम्हें जो खाना-पीना है, स्वयं कमाकर खाओ। दूसरों की चीज को देखकर कभी लालच न करो।

ईमानदारी से अपने हाथ-पैरों से मेहनत करके जो चीज पा सको, उसी का उपयोग करो, इसी में सुख है, इसी सफलता है और इसी में शांति है। जो दूसरों की चीज हड़पता है, वह अंत में दुःख ही पाता है । “

बूढ़ी काकी की बात कालू की समझ में आने लगी। उसने भरी सभा में प्रतिज्ञा की कि वह सदैव ईमानदारी और परिश्रम से कमाई चीज ही ग्रहण करेगा। दूसरों की चीजों को झपटने की कभी कोशिश नहीं करेगा।

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