शाल बकरी

शालू बकरी की माँ रोज सुबह जंगल की ओर चली जाती थी । घर पर रह जाती थी अकेली शालू । शालू का मन करता था कि वह भी बाहर घूमे । शालू चाहती थी कि उसके भी मित्र बनें, पर शालू की माँ की आज्ञा थी कि वह घर से बाहर कहीं भी न जाये ।

उसकी माँ कहती थी कि वह अभी छोटी है और घर से बाहर निकलने पर उसकी सुरक्षा नहीं है । उसे कालू भेड़िया खा सकता है, भासुरक सिंह पकड़ सकता है और भी न जाने किस-किस के नाम माँ गिनाती थी । । इन सबसे शालू बकरी इतनी डर गयी थी कि वह घर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं करती थी ।

एक दिन माँ ने शालू को डाँट दिया । शालू मन ही मन खूब गुस्सा हुई । सोचने लगी- ‘ठीक है आज मैं बाहर चली चाऊँगी । आज मैं माँ की बात नहीं मानूँगी ।’

उस दिन माँ के घर से निकलते ही शालू भी गुफा से बाहर आ गयी । आज घूमकर मानो माँ से बदला लेना चाहती थी । उसे उसकी माँ ने डाँटा जो था ।

शालू बकरी को गुफा से बाहर निकलकर बहुत अच्छा लगा । ठण्डी-ठण्डी हवा बह रही थी । मीठी-मीठी खुशबू आ रही थी । हरे-भरे वृक्ष खड़े थे । उसने जी भरकर ताजी-ताजी पत्तियाँ खूब ही खायीं । फिर वह ठण्डा – ठण्डा पानी पीने एक झरने पर चली गयी ।

झरने पर भेड़ का बच्चा भी बैठा था । शालू ने उससे नमस्ते की, फिर पानी पिया । भेड़ के बच्चे ने पूछा- ‘तुम यहाँ रोज आती हो क्या ? क्या नाम है तुम्हारा ?’ ‘मेरा नाम शालू है । मैं आज यहाँ पहली बार आयी हूँ। मेरी माँ मुझसे घर से निकलने को मना करती है ।’

शालू यह सब एक साँस में कह गयी । ‘ओह ! मेरी माँ भी मुझसे रोज मना करती है, पर मैं तो हर रोज घूमने आता हूँ । उन्हें पता भी नहीं लगता । खुली हवा में घूमने से मेरी सेहत भी अच्छी हो गयी है ।’ भेड़ का बच्चा शान से अपने शरीर पर निगाह डालते हुए बोला ।

शालू ने भी अपने शरीर पर निगाह डाली । वह तो बहुत ही दुबली-पतली थी । तभी भेड़ का बच्चा तुरन्त बोल उठा – ‘शालू ! तुम भी इसी तरह रोज-रोज घूमने आया करो । मेरी ही भाँति खूब मोटी हो जाओगी ।’

‘पर मेरी माँ तो मना करती है ।’ शालू बोली ।

‘ओह ! तो माँ के पीछे आ जाया करो | मैं भी तो ऐसा ही करता हूँ ।’ भेड़ के बच्चे ने समझाया ।

अब तो शालू हर रोज यह प्रतीक्षा करती थी कि कब माँ घर से निकले और कब वह बाहर जाये । माँ को उसने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था ।

तीन-चार दिन तक दोनों सुरक्षित घूमते रहे । अब उनका भी साहस बढ़ गया था । दोनों ही सोचते थे कि अब हम बहुत होशियार हो गये हैं । हम जब चाहें कहीं अकेले आ-जा सकते हैं । अब वे दूर-दूर तक घूमने जाने लगे ।

एक दिन दोनों घूमते-घूमते अचानक शेर की गुफा की ओर जा पहुँचे । वहाँ शेरनी अपने चार छोटे-छोटे बच्चों को शिकार करना सिखा रही थी । उसका सबसे छोटा बच्चा शालू को देखकर बोला-माँ ! इस पर बार करके बताओ ।’

तब तक शेरनी के दूसरे बच्चे ने अपने पंजे से उस पर प्रहार कर दिया । यह देखकर भेड़ का बच्चा शालू चुपचाप वहाँ से भाग गया । आपत्ति में पड़े मित्र की ओर से उसने मुँह फिरा लिया । उस दिन शेर का बच्चा शालू बकरी को फाड़ ही डालता, पर उसके सौभाग्य से तभी शेर आ गया ।

वह एक बड़ा-सा भेड़िया घायल करके लाया था । शेरनी और उसके बच्चों का सारा ध्यान उस ओर बँट गया । शालू बकरी सबकी आँच बचाकर चुपचाप ही वहाँ से खिसक आयी ।

पेड़ों की आड़ में छिपती हुई, सिर पर पैर रखकर वह तेजी से भागी जा रही थी । उसका नन्हा दिल भय के कारण तेजी से धड़क रहा था। उसकी पीठ से खून निकल रहा था। जैसे-तैसे वह झरने के किनारे पहुँची ।

वहाँ भेड़ का बच्चा पहले से ही बैठा था । उसे देखकर शालू ने मुँह फिरा लिया । भेड़ का बच्चा बोला-‘मैं तो तुम्हें उससे बचा नहीं सकता था । इसलिए मैं हाथी दादा को बुलाने आया था ।’

शालू बोली- ‘रहने दो भाई ! अब झूठ बोलने की जरूरत नहीं । सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत में काम आता है । जो अपने साथी को दुःख – मुसीबत में छोड़कर चला जाता है, वह नीच है, दुष्ट है, कायर है । ऐसे मित्र से तो मित्र का न होना ही अच्छा है । आज से हमारी तुम्हारी मित्रता खत्म हुई ।’

इतनी ही देर में झाड़ियों के पीछे से श्यामा बिल्ली निकल आई । वह भेड़ के बच्चे की ओर इशारा करते हुए बोली- ‘तुम ठीक ही कह रही हो । यह तो दोस्ती के लायक है ही नहीं । इसने मेरे से भी घोखा किया है ।’

श्यामा ने शालू की पीठ का खून झरने से पानी ला–लाकर धोया । फिर पेड़ों की पत्तियाँ रखकर पट्टी बाँधी । तब कहीं जाकर खून निकलना बन्द हुआ । श्यामा शालू को घर तक छोड़कर आयी ।

शालू मन में सोच रही थी- ‘श्यामा मुझसे अपरिचित है । फिर भी मेरी कितनी सहायता कर रही है । यह तो इसकी बड़ी महान् सज्जनता । सज्जनता और मधुरता का व्यवहार ही दूसरे को अपना मित्र बनाते हैं ।’

शालू को घर छोड़कर श्यामा लौट आयी । शालू की माँ आई तो बोली- ‘मुझे रास्ते में ही पता लग गया था कि आज हमारी बिटिया घूमने निकली थी और बच कर आ गयी है ।’

‘माँ ! मुझे माँफ कर दो । अब मैं तुम्हारी आज्ञा के बिना कहीं भी नहीं जाऊँगी ।’ शालू माँ के पैर पकड़कर बोली |

‘शालू ! जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे हमेशा दुःख पाते हैं । हम डाँटते हैं तो तुम्हारे भले के लिये ही डाँटते हैं । जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना मानते हैं वे ही अच्छे बनते हैं ।’ शालू की माँ उससे कह रही थी ।

‘माँ मैं अब सदा तुम्हारा कहना मानूँगी । अब मैं अच्छी बनूँगी ।’ शालू माँ से लिपटते हुए बोली ।

अब शालू सदा अपनी माँ का कहना मानती है । श्यामा बिल्ली अब उसकी पक्की सहेली बन गयी है और उसके घर आती-जाती रहती है ।

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