घास की चोरी और जमाखोरी

ऐक बहोत बडा अभयारण्य था । अभयारण्य में खरगोशों की एक बस्ती थी । वहाँ अनेकों खरगोश अपने परिवारों के साथ रहा करते थे । उनका मुखिया भी बड़ा दयालु, परोपकारी और सबकी सहायता करने वाला था । सभी सुख-शान्ति से रहा करते थे ।

खरगोशों का मुखिया पुनीत सभी खरगोशों को अनेक अच्छी बातें बताया करता था । वह कहता था- ‘भाइयो ! चाहे हमारे पास सुख-सुविधा की कम सामग्री हो, पर हम सभी मिल-जुलकर प्रेम से रहें । दुःख – मुसीबत में एक-दूसरे की सहायता करें । सभी की भलाई चाहें । कभी किसी का बुरा न सोचें । जीवन का यही सबसे अच्छा मार्ग है ।’

मुखिया की बात को अधिकतर खरगोश बड़े ध्यान से सुनते थे और वैसा ही बनने की कोशिश भी किया करते थे। ठीक भी है जो अच्छी बात सुनी भर जाये, पर उसका पालन न किया जाये वह निरर्थक ही है ।

एक बार अभयारण्य में बरसात के मौसम में एक बूँद भी पानी नहीं पड़ा । इसका फल यह हुआ कि सारी की सारी घास और वनस्पति सूखने लगीं, खैर वहाँ पर इतनी घास थी कि पर सूखा पड़ने पर भी सभी खरगोश थोड़ा-बहुत खा सकते थे । उनके बिल्कुल भूखा रहने की स्थिति नहीं आयी ।

पूरी बस्ती में चन्द्र खरगोश अपनी चालाकी लिये प्रसिद्ध था । वह बड़ा ही धूर्त था । काम करने में आलसी था । चालाकी से दूसरों की चीजें हड़पता रहता था । अतएव उससे सभी दूर रहना चाहते थे ।

चन्द्र ने सोचा कि सूखा पड़ रहा है । यही अच्छा मौका है, जब मैं अमीर बन सकता हूँ । बस दूसरे ही दिन से उसने अपनी योजना शुरू कर दी । रात के अन्धेरे में और | सन्नाटे में जब सारे खरगोश अपने- अपने बिलों सोये पड़े रहते तो

चन्द्र अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ निकल पड़ता । रात भर वे अपने पैने दाँतों से घास काटते । फिर अंधेरे में ही गट्ठर बनाकर अपनी-अपनी पीठ पर लाद कर घर की ओर चल देते । रोज उनका यही काम था । धीरे-धीरे चन्द्र के गोदाम में ढेरों घास जमा हो गयी ।

पहले अन्य खरगोशों ने घास के कम होने पर ध्यान नहीं दिया, पर जब वह बहुत कम हो गयी तो उनका ध्यान इस ओर गया । सभी आश्चर्य में थे कि उन्होंने इतनी घास इतनी जल्दी खा ली । एक दिन अचम्भे की सीमा न रही, जब उन्होंने देखा कि | सारी घास नदारद थी ।

अब तो सारे खरगोश बड़े परेशान हुए । वे खुद तो एक-दो दिन भूखे रह सकते थे, पर उनके बच्चे तो भूख से बिलबिला रहे थे । आखिर वे सब मिलकर मुखिया के पास जा पहुँचे और रो-रोकर कहने लगे- ‘बच्चों की भूख हमसे तो देखी नहीं जाती और हम भी कब तक भूखे रहेंगे ? लगता है अब हम सभी की मौत आने वाली है ।

वर्षों से हम इस वन में रह रहे हैं, पर ऐसा | अकाल तो न कभी देखा और न सुना । अब आप ही बताइये कि हम क्या करें, कहाँ जायें ?’ सभी खरगोशों की बात सुनकर मुखिया भी रो पड़ा । वह

बोला’ – ‘भाइयो ! जो स्थिति तुम्हारी है वही मेरी भी है, पर दुःख में। घबराने से काम नहीं चलेगा । संकट का जब हम मन को स्थिर बनाकर बहादुरी से सामना करते हैं, तभी उस पर विजय पाते हैं ।’ ‘सो तो है ही !’ खरगोश एक साथ बोले । फिर आगे कहने लगे- ‘आप बताइये हम क्या करें ?’

पुनीत बोला- ‘मुझे बड़ा आश्चर्य है कि इतनी सारी घास आखिर गयी तो गयी कहाँ ? मैं सोचता था कि उससे हम सभी का काम चल जायेगा ।’

‘हमें भी बड़ा अचम्भा है, हम भी यही सोचते थे ।’ सब के सब खरगोश बोले । ‘खैर । मैं कोई न कोई हल निकालने की कोशिश करूँगा ।’

पुनीत बोला । फिर उसने सभी खरगोशों को शाम को इकट्ठा होने की बात कहकर विदा किया । पुनीत ने अपने मित्र अभय को बुलाया । उसके कान में कुछ समझाया ।

अभय एक-एक करके सभी खरगोशों के घर गया । सभी को उसने मुखिया का यह संदेश दिया कि शाम को प्रत्येक खरगोश को अपने पूरे परिवार के होना है । साथ उत्तरी मैदान में इकट्ठा वहाँ सभी की एक सभा होगी और उसमें संकट से निपटने का उपाय सोचा जायेगा ।

पूरी बस्ती का चक्कर लगाने के बाद अभय पुनीत के पास गया और बोला- ‘दोस्त ! तुम्हारा चन्द्र के ऊपर संदेह ठीक ही लगता है । जब मैं उसके घर पहुँचा तो घास की बहुत तेज महक आ रही थी । साथ ही रास्ते में काँटों की झाड़ियों के पीछ यह भी सुना था कि चन्दू का बेटा दूसरे खरगोशों के बच्चों से कह रहा था कि मेरे पिताजी बहुत दूर से थोड़ी-सी घास लाये हैं । यदि तुम्हें जरूरत हो तो ले सकते हो, पर इसके बदले घर का कीमती सामान तुम्हें हमें देना होगा ।’

अब तो पुनीत के संदेह की और भी पुष्टि हो गयी । शाम को भरी सभा में पुनीत ने कहा – ” मित्रो ! हमें संदेह है कि किसी ने घास की चोरी की है । यदि कोई ऐसे सज्जन यहाँ हों तो तुरन्त बता दें । उनका अपराध क्षमा कर दिया जायेगा ।

पुनीत की बात सुनकर सभी चुप बैठे रहे । पुनीत फिर बोला-‘देखिये ! गलती को मानना दोष नहीं होता । गलती तो सभी से हो जाती है, पर उस गलती को स्वीकार न करना अपराध है । इस समय जब हम सभी के प्राण संकट में हैं तो जमाखोरी करना भयंकर पाप है ।’

सभी खरगोश हाथ हिला-हिलाकर कहने लगे कि उन्होंने घास की चोरी नहीं की है । पुनीत को बड़ा गुस्सा आया । वह बोला- ‘ठीक है ! अब आप एक-एक करके खड़े होकर यह बात दुहरायें ।’

अब एक-एक करके प्रत्येक खरगोश अपने दोनों पैरों पर खड़ा होता, दोनों हाथ जोड़ता और कहता- ‘मैं अपनी पत्नी और बच्चों की कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने यहाँ चुराई है और वह मेरे पास नहीं है ।’

अन्त में बारी आयी चन्दू खरगोश की । बेधड़क होकर उसने भी यही बात दुहरा दी । पुनीत को बड़ा गुस्सा आया । उसकी गुलाबी आँखें गुस्से से और भी लाल हो गर्यो । थुने फड़क वह बोला-‘सच कहते हो तुम ?’

‘बिलकुल सच कहता हूँ ।’ चन्द्र गरदन तानकर बोला । ‘आप सभी इसकी सचाई अभी जान जायेंगे, मेरे पीछे-पीछे आइये ।’ पुनीत ने कहा और तेजी से आगे बढ़ गया ।

सभी खरगोश उसके पीछे-पीछे चल दिये । पुनीत की आज्ञा से अभय ने चन्दू और उसके परिवार के सदस्यों के पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं जिससे वे कहीं भागने न पायें ।

पुनीत ने चन्द्र के घर के सामने रखा बड़ा-सा पत्थर हटाया और सभी अन्दर घुसे । गोदाम की किवाड़ें खुलते ही । सभी की आँखें फटी की फटी रह गयीं। वह घास से खचाखच भरा था । पूरी बस्ती के खरगोश एक महीने तक आराम से खा सकते थे ।

सभी खरगोश गुस्से से भड़क उठे । उछल-उछलकर हाथ के पंजे उठा-उठाकर वे कहने लगे- ‘इस नीच विश्वासघाती चन्द्र को जान से मार डालेंगे हम । देखो ! इस कमीने को, यहाँ जानें जा रही हैं और यह जमाखोर बना बैठा है ।’

यह तो गनीमत थी कि चन्दू वहाँ नहीं था, नहीं तो अब तक उसकी बोटी-बोटी नुच गयी होती । पुनीत सभी को शान्त करके बोला- ‘ मित्रो ! हमें किसी के प्राण लेने का तो अधिकार नहीं है । हाँ, पर चन्द्र को दण्ड तो मिलेगा ही । ‘अपराधी को दण्ड न देकर यों ही छोड़ देना अपराध को बढ़ावा देना ही है । आप ही बताइये कि चन्द्र को क्या दण्ड दिया जाये ?’

सभी खरगोश गर्दन हिलाकर आपस में खुस – फुस करने लगे । थोड़ी देर बाद अभय खड़ा होकर कहने लगा- ‘हम सभी ने यह निर्णय लिया है कि चोरी और जमाखोरी करके, चोरबाजारी की कोशिश करके चन्द्र ने जिस समाज के साथ विश्वासघात किया है, वह उसके साथ रहने योग्य नहीं है। अतएव उसे परिवार सहित अभयारण्य से बाहर निकाल दिया जाये ।’

‘ठीक कहते हैं आप ! समाज में सभी एक-दूसरे की सहायता से ही रहते हैं और उन्नति करते हैं। जो सभी के साथ विश्वासघात करना चाहता है वह साथ रहने योग्य नहीं ।’ पुनीत ने भी सहमति में अपनी गर्दन हिलाकर कहा ।

चन्द्र और उसके परिवार को सभी के सामने उपस्थित किया गया । मुखिया ने उसे देश निकाले का आदेश दे दिया । यह सुनकर चन्द्र बड़ा गिड़गिड़ाया, पर उन्होंने उसकी एक न सुनी । अन्त में अपनी रिश्तेदारी की दुहाई देते हुए बोला- ‘मुखियाजी ! आखिर मैं आपका साला हूँ, आपकी पत्नी का सगा भाई । क्या इस प्रकार का दण्ड देना आपको शोभा देता है ?’

पुनीत गम्भीर होकर बोला- ‘देखो चन्द्र ! दण्ड सभी के लिये समान होता है । वह मुखिया जो भाई-भतीजावाद फैलाता है, मुखिया के आसन पर बैठने के योग्य नहीं है । उस भ्रष्टाचारी के मुखिया होने से तो मुखिया का न होना अच्छा है । फिर मैंने तो तुम्हें न जाने कितनी बार समझाया था कि तुम गलत न चलो, बुरे काम न करो, पर तुमने मेरी बात मानी ही कब ?’

अब लाचार होकर चन्द्र को वहाँ से निकलना ही पड़ा । हाँ, मुखिया ने दया करके घास का एक-एक गट्ठर उन सभी को दिया, जिससे वे रास्ते में भूखे न मरें ।

घास का गट्ठर पीठ पर लादे अपने कुकर्मों को रोता, दुःखी होता चन्दू और उसका परिवार अभयारण्य छोड़कर आगे बढ़ गया । सच ही है कि कुकर्म जब किये जाते हैं तब तो वे बड़े मीठे और सुख देने वाले लगते हैं, पर जब उनका फल भोगते हैं तो वे कड़वे और असंतोष देने वाले बन जाते हैं ।

चन्द्र आँखों से ओझल होचुका था । तब तक अभय गोदाम से सारी घास निकलवाकर बाहर ला चुका था। सभी खरगोश भूखे तो थे ही तेजी से घास पर टूट पड़े ।

उस दिन खूब पेट भरकर उन्होंने घास खायी । फिर वे अपने-अपने घरों की ओर चल पड़े। रास्ते में सभी मुखिया की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे । कह रहे थे-‘यदि मुखिया बुद्धिमान हो, कर्तव्य परायण हो, ईमानदार हो तो चोरी-चोरबाजारी पनप नहीं सकते । भगवान हमारे मुखिया को लम्बी आयु दे और इसी प्रकार कर्तव्य पर आरूढ़ रहने की शक्ति दे ।’

अभय भी कहने लगा- ‘अपनी बुद्धिमानी से उन्होंने हम सबके प्राण बचाये हैं । ऐसे नेता के लिये तो जरूरत पड़ने पर हम अपने प्राण भी हँसते-हँसते दे देगे ।’ ‘जरूर – जरूर ! खरगोशों ने ताली बजाकर, खुशी से दाँत निकालकर कहा ।’ मुसीबत दूर हो जाने पर आज उनकी खुशी की सीमा न थी’।

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