दो भाई

आगरा में लाल किला के पीछे नीम का एक पुराना पेड़ है उस पेड़ पर कौवे रहते थे । बड़े का नाम था किशनू और छोटे का नाम था- विशू । यद्यपि वे दोनों सगे भाई थे, पर उनके स्वभाव में काफी अन्तर था । बड़ा भाई जितना सज्जन था तो छोटा उतना ही दुर्जन ।

भोर होते ही दोनों भाई भोजन की तलाश में उड़ चलते । किले के पीछे ही यमुना नदी बहती है । वहाँ प्रतिदिन स्नान करने वालों की भीड़ लगी रहती थी । स्नान करने वालों में महिलायें भी होतीं ।

दोनों भाई वहीं बैठते । वे अपने बच्चों को भी साथ-साथ नहलातीं । नहाने के बाद बच्चों के हाथ में रोटी, पूड़ी- मिठाई आदि दे देतीं और स्वयं पालथी मारकर, आँखें बन्द कर पूजा-पाठ करने बैठ जातीं ।

विशू तो बस इसी मौके की ताक में रहता । वह पत्तों में चुपचाप छिपकर बच्चों के खाने को घूरता रहता । अपनी एक पुतली को कभी दाँयी आँख में घुमाता तो कभी बाँयी आँख में । जैसे ही उसे किसी बच्चे के हाथ में मिठाई, पूरी, पापड़, अचार आदि दीखते तो वह झट से चुपचाप झपट्टा मारकर उन्हें छीन लाता ।

बेचारा बच्चा इस आकस्मिक हमले से भौंचक्का रह जाता । वह टुकुर-टुकुर कौवे को ऊँची डाल पर बैठकर अपना खाना खाते कुलबृ | देखता रहता । छोटे बच्चे तो जोर-जोर से रोने ही लगते ।

उनके मुँह का गस्सा दूसरे के मुँह में चला जाये, उनके पेट भूख से लाते रहें, तो भला वे रोयेंगे नहीं तो और क्या करेंगे ? किसी न किसी बच्चे के तो विशू चोंच मारकर खून भी निकाल आता था । बच्चा जब कसकर चीजें पकड़े होता तो विशू उसे झपटने के लिये यह तरकीब अपनाया करता था ।

किशन को विशू की यह बात तनिक भी न भाती थीं । जब विशू मासूम बच्चों के हाथ से चीजें छीनकर चटकारे भरकर खाता तो किशनू का मन जल उठता । उसने उसे लाख बार समझाया था कि किसी को सताकर अपना पेट न भरो । दुखियों की आहें शाप ही देती हैं । ले सकते हो तो दूसरों की शुभकामनायें और उनके आशीर्वाद ही लो ।

पर विशू पर इन सब बातों का कोई असर न होता । उल्टे वह बड़े भाई की बात सुनकर मुँह बिचकाने लगता और कहता- ‘अरे छोड़ो भी ! क्या रखा है इन सब बातों में। थोड़ी-सी ही तो जिन्दगी है ।

जब तक जीओ खाओ, पीओ और मौज मनाओ । चीज जिसके हाथ में हो उसी की हो गयी । दूसरे की वस्तु जब हमारे हाथ में आ गयी तो हमारी ही हो गयी ।

किशनू को उसकी ये बातें सुनना बहुत बुरा लगता । लगता भी क्यों नहीं, उसका स्वभाव तो इसके बिल्कुल विपरीत था । उसे किसी को सताना तनिक भी अच्छा नहीं लगता था ।

उसे तो अपने परि श्रम से कमायी गयी सूखी रोटी ही मीठी लगती थी । जो भी कुछ उसे मिल जाता, उसी को खाकर खुश रहता । उसने कभी किसी के हाथ से कोई चीज नहीं छीनी थी । वह कितना भी भूखा होता सन्तोष से चुपचाप बैठा रहता ।

बच्चे कभी-कभी उसे एक-आध टुकड़ा डाल देते या पीछे से बचा खुचा जो भी जमीन पर बिखर जाता उसी को खाकर वह मस्त घूमता । उसे कभी भरपेट खाना मिल जाता तो कभी वह भूखा ही रह जाता था, पर वह उसमें भी कभी असंतुष्ट नहीं होता था । अब तो बच्चे भी किशनू और विशू को अच्छी तरह पहिचान गये थे ।

वे इन दोनों का स्वभाव जान गये थे। बच्चे एक लम्बा-सा बाँस लेकर बैठते । जैसे ही विशू को आते हुए देखते बाँस फटकार देते । विशू भी कम चालाक न था । वह उड़ता हुआ आता और चुपचाप चीज छीनकर भाग जाता ।

इस काम में विशू बड़ा ही निपुण हो गया था । वह इतना खाना छीन लाता था कि हँस-हँस कर दिन में कई बार खा लेता । इतना ही नहीं काँव-काँव करके दूसरे कौवों को इकट्ठा कर लेता और बचा खुचा खाना उन्हें दे देता ।

फल यह हुआ कि सब विशू के आगे-पीछे फिरते, उसकी खूब झूठी प्रशंसा करते । अपनी ही तारीफ – प्रशंसा सुनकर विशू मन ही मन में फूलकर कुप्पा हो जाता था और तब दूसरे कौवे उसे और भी चीजें हड़पने के लिये प्रोत्साहित करते ।

एक बार एक चालाक बच्चे ने विशू को मारने का उपाय सोचा। वह घर से लाल-लाल फूले हुए रस भरे मालपुआ लाया था । उसने बड़ी सावधानी से थोड़ा-थोड़ा करके कटोरदान से निकालकर पुए खाये ।

उस दिन विशू की एक न चली। वह ललचाई आखों से उसे पुए खाते हुए देखता रहा । जब अन्तिम पुआ बच गया तो बालक ने उसमें कुछ दवा लगा दी और जमीन पर रख दिया । विशू तो बस इसी मौके की ताक में था । उसने आव देखा न ताव, पुआ पंजों में दबाया और पेड़ पर आकर बैठ गया ।

पुआ उसे इतना अधिक स्वादिष्ट लगा था कि दो ही बार में गपागप कर गया । विशू आज इतना मीठा मालपुआ खाकर बड़ा ही खुश था, पर थोड़ी ही देर में उसकी सारी खुशी घरी की धरी रह गयी ।

धीरे- ‘धीरे उसका जी जोरों से मिचलाने लगा । गला प्यास से बुरी तरह सूखने लगा । विशू अब जोर से तड़फड़ाने लगा । उसने काँव-काँव करके सारे ही कौव ने कहा ।

उसकी बात सुनकर विशू जोर-जोर से रोने लगा । ‘ओह ! मैं मरा, मुझे बचा लो।’ वह विलाप करने लगा, पर अफसोस कि किसी कौवे का दिल न पसीजा । आँख बचाकर चुपचाप धीरे-धीरे एक-एक करके वे सभी कौवे वहाँ से उड़ने लगे ।

दर्द और अपमान से विशू छटपटा रहा था । कराहते हुए बोला-‘ओह ! मैं तुम सबको खिलाने के चक्कर में इतना खाना इकट्ठा करता था । न ऐसा करता न मेरी जान जाती ।’

हमने कब कहा था कि तुम हमें दूसरों को सता कर खिलाओ । अपनी करनी का पड़ेगा ।’ तुनक कर एक कौवी बोली । फल तो अब तुम्हें ही भोगना आँखें बन्द किये विशू सोच रहा था-‘ये वही हैं, जिनके लिये मैंने सब करनी-अकरनी की । इनसे वाहवाही पाने के लिये मैं दूसरों की चीजें हड़पता रहा ।

इनकी चापलूसी को मैंने अपनी प्रतिष्ठा, इनका प्यार और आदर समझा, पर आज मेरी आँखें -खुल गयी हैं । मृत्यु की इस घड़ी में इनकी सचाई मेरे सामने आ गयी है। ओह, कितना अच्छा होता कि मैं किशनू दादा की बात मानता ।

सच्चाई के रास्ते पर चलता । बिना किसी का दिल दुखाये, रूखी-सूखी खाकर सन्तोष करता, पर अब पछताने से होता भी क्या है ?’ दुःख और पश्चाताप से विशू की आँखों से आँसू झरने लगे।

अब उस पर बेहोशी छाती चली जा रही थी। उसी स्थिति में विशू को लगा जैसे कोई सिर को सहला रहा है । वह सोचने लगा यह मेरा भ्रम मात्र है । भला मुझ कुकर्मी की सहायता कौन करने लगा ?

सच है, बुरे काम का फल तुरन्त नहीं मिलता, पर राख में जैसे आग दबी रहती है और समय पाकर वह भयंकर रूप धारण कर लेती है, वैसे ही कुकर्मों का फल कुछ समय बाद मिलता है, पर भयंकर रूप में मिलता है ।

तभी विशू को लगा जैसे कोई आवाज दे रहा है–‘विशू ! आँखें खोलो ।’ हड़बड़ाकर आँखें खोलीं। देखा कि सामने किशनू बैठा था । सहानुभूति पाकर विशू की आँखों से आँसुओं की धारा वह निकली ।

‘लो इसे जल्दी से खा लो ।’ कहकर किशनू ने पंजे में दबायी हुई कोई जड़ी-बूटी विशू को दे दी । विशू बेहोशी की सी हालत में उसे खाने लगा ।

बात यह हुई थी कि जब किशनू नदी के किनारे खाना खा रहा था, उसने दूसरे कौवों से यह बात सुनी कि विशू को किसी ने जहर खिला दिया है । वह मुँह का गस्सा वहीं छोड़कर तुरन्त तेजी से उड़ा । जल्दी-जल्दी में जड़ी-बूटी ढूँढ़कर तोड़ी और हाँफता- हाँफता विशू के पास पहुँचा ।

इतने में विशू को उल्टी हुई और विषैला खाना पेट से निकल गया । धीरे-धीरे बेहोशी भी दूर होने लगी । किशनू ने उसकी बहुत सेवा की । दूर-दूर से खोजकर सप्ताह भर उसके लिये जड़ी-बूटी और खाना लाया । विशू तो इतना कमजोर हो गया था कि अपनी जगह से हिल भी न पाता था । यदि किशनू सहायता न करता तो वह मर ही गया होता ।

इस घटना के बाद से तो विशू का स्वाभाव एकदम ही बदल गया है । वह अच्छी तरह से समझ गया है कि धूर्तता और चालाकी से नहीं, ईमानदारी और सचाई से चलने में ही अन्त में सुख मिलता है ।

जीवन का सच्चा आनन्द वही पा सकता है, जो सहानुभूति और प्रेम भरे व्यवहार से दूसरों का स्नेह और आशीष पाता है । अपने बुरे व्यवहार से औरों का दिल दुखाने वाला अन्त में स्वयं भी कष्ट निश्चित ही भुगतता है ।

अब जब भी किशनू और विशू की कोई बात चलती है, तो सभी कौवे यही कहते हैं कि दोनों भाई रंग-रूप में ही नहीं, स्वभाव और गुणों में भी एक से ही हैं। यह सब सुनकर विशू गर्व से अपना शरीर फुला लेता है ।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *