नन्दू को दण्ड
नन्द्र चूहे में एक बुरी आदत थी, वह थी बहुत बोलने की । हर समय वह कुछ न कुछ बोलता ही रहता था । उसकी माँ उसे समझाया करती थी कि बेटा ! बहुत बोलने की आदत ठीक नहीं है ।
व्यर्थ बोलने में बहुत-सी शक्ति खर्च होती है । काम की बात ही बोलो, पर नन्दू था कि मानता ही न था । धीरे-धीरे नन्दू में चुगलखोरी की आदत भी आ गयी । वह इधर की उधर लगाने लगा, झूठ भी बोलने लगा । वह झूठ बोलकर, चुगलखोरी करके दूसरों में लड़ाई भी कराने लगा । ऐसा करने में उसे मजा आने लगा ।
नन्दू रोज ही कुछ न कुछ शरारत करने लगा । एक दिन उसने देखा कि मीतू बतख अपनी चोंच में खाना दबाये चली आ रही है । मीतू यह खाना अपने बच्चों के लिये ले जा रही थी । खाना देखकर नन्दू को भी भूख लगने लगी ।
वह सोचने लगा कि वैसे तो मीतू कुछ देगी नहीं । इसलिये उसके पास पहुँच गया और बोला- “नमस्ते मीतू मौसी !” ‘नमस्ते बेटा ! खुश रहो ।’ मीतू कहने लगी ।
नन्दू बोला- ‘मौसी ! सारस मामा कह रहे थे कि तुम कुछ भी काम खोजते हैं ।’ नहीं करती हो । तुम्हारा खाना भी वे ही यह सुनकर मीतू एकदम भड़क उठी और बोली- ‘हाँ-हाँ। मैं तो निकम्मी हूँ, मैं क्यों ढूँढ़गी अपना खाना ?
फिर वह अपने मुँह से जोर-जोर से बक बक की आवाज निकालते हुए, आँखें नचाते हुए बोली- ‘यह सोना सारस भी न जाने अभी देखती हूँ उसे अपने आप को क्या समझता है । एक दिन खाना खिला दिया तो रोज-रोज गाता फिरता है । जाकर ।’ और वह पैर पटकती, अपना खाना छोड़कर तुरन्त चल दी ।
नन्दू चूहे ने बड़ी खुशी से वह खाना खाया । फिर संतोष से अपनी मूछों पर हाथ फिराया । इसके बाद वह मीतू बतख और सोना सारस की लड़ाई देखने चल दिया ।
सोना सारस को तो कुछ भी पता न था । मीतू बतख जोर-जोर से लड़ती ही जा रही थी । नन्द्र चूहे को उनकी इस लड़ाई में खूब मजा आया । ऐसी अनेक तरह की लड़ाइयाँ कराना नन्दू चूहे लिये।
बड़ी मामूली सी बात थी । उसकी माँ उसे हमेशा समझाती थी- ‘नन्दू तुम जैसा काम करोगे वैसा ही तुम्हें फल मिलेगा । बुरे काम करने वालों को सदैव बुरा फल मिलता है ।’
पर नन्दू को अभी तक कोई बुरा फल मिला न था । इसलिये वह बुरे काम छोड़ नहीं पाता था ।
एक दिन नन्दू घूमते-घूमते महाराज सिंह की गुफा तक जा पहुँचा । महाराज बैठे आराम कर रहे थे । नन्दू को यहाँ भी शरारत सूझी । उसकी झूठ बोलने की आदत यहाँ भी न छूटी । उसने हाथ जोड़कर महाराज के आगे झुककर नमस्कार किया और बोला- ‘राजन् ! आप जैसे प्रतापी राजा कभी-कभी ही भाग्य से मिलते हैं ।’
सिंह ने अपने नथुनों को जोर से हिलाया और मूछों को गर्व से फड़फड़ाया नन्द्र आगे कहने लगा- ‘महाराज ! कोई आपकी बुराई करे तो मुझसे सहन नहीं होता ।’
‘किसमें है इतना साहस ?’ शेर दहाड़ा | नन्द्र ने दोनों हाथ जोड़ते हुए झुककर कहा- ‘महाराज ! आपका मंत्री भोलू भालू यह कह रहा था कि आप तो सारे ही दिन पड़े-पड़े आराम फरमाते रहते हैं । जनता के सुख-दुःख से आपको कोई मतलब नहीं है ।’
‘अच्छा! कहकर सिंह गरजा । उसने नन्दू को वहीं रुकने का आदेश दिया और एक सैनिक को हुक्म देकर भेजा भोलू भालू को बुलाने के लिये ।
नन्दू मन में सोचने लगा कि आज मैं अच्छा फँसा । उसने तो सोचा था कि सिंह को भड़का कर वह तो चला जायेगा, पीछे सिंह और भालू दोनों आपस में लड़ते रहेंगे । पर सिंह ने तो उसे यहीं पर बैठने का आदेश दे दिया था। अब तो वहाँ से बाहर निकलना भी संभव न था ।
तभी नन्दू के दुर्भाग्य से मीतू बतख और सोना सारस भी वहीं आ पहुँचे । अब उन दोनों में सुलह हो गयी थी । नन्दू की वह चालाकी उन्हें पता लग गयी थी । वे उसकी चुगल खोरी की महाराज से शिकायत करने आये थे ।
मीतू बतख ने विस्तार से सारी घटना बतायी । उसे सुनकर सिंह को नन्दू चूहे पर बड़ा गुस्सा आया । तभी दरबार में लोमड़ी, हाथी, ऊँट, भालू आदि और जानवर भी आ गये । वे भी कभी न कभी नन्दू की शरारतों को भुगत चुके थे । सभी ने नन्दू की बुराई की ।
भोलू भालू कह रहा था – ‘महाराज ! मैंने तो कभी किसी से आपकी बुराई नहीं की । यह नन्दू ही सभी की बुराई करता फिरता है ।’
ऊँट, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने अपनी-अपनी गर्दन हिलाकर इस बात का समर्थन किया । अब सिंह को बड़ी जोर का गुस्सा आ गया ।
‘नन् ! तुम्हारी इस आदत से सभी में झगड़ा होता है । दूसरों में लड़ाई कराकर तुम तमाशा देखते हो। मुझे तुम पर गुस्सा उसने नन्दू को दण्ड सुनाया- तो इतना आ रहा है कि तुम्हें फाँसी पर चढ़ा दूँ, पर अभी ऐसा नहीं होगा । एक बार तुम्हें सँभलने का मौका दिया | जायेगा । मैं अपने सैनिकों को आज्ञा देता हूँ कि तुम्हारी पूँछ और मूँछ काट लें ।’
सिंह के सैनिकों ने तुरन्त आगे बढ़कर ऐसा ही कर दिया । मीतू बतख बोली- ‘कितना ही समझाया था इस नन् को, पर यह अपनी चुगलखोरी और झूठ बोलने की आदत छोड़ता ही न था । आखिर में इसे इसका दण्ड तो मिल गया । अब यह अपनी सब गलत आदतें छोड़ देगा ।’
सोना सारस कर रहा था – ‘बुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है । आज नहीं तो कल वह भुगतना पड़ता है ।’ ‘न तो कोई प्राणी किसी का बुरा सोचें और न किसी का बुरा करें । हमेशा सबका भला सोचें और भला करें ।
इसी में बुद्धिमानी है ।’ भोलू भालू ने कहा । नन्दू चूहे का सिर शर्म से झुक गया था । कटी पूँछ और कटी मूछों को लेकर माँ के सामने वह धाड़ मारकर रो पड़ा । माँ सिर पर हाथ फिराती हुई बोलीं- ‘बेटा ! जो हुआ है उसे भूल जाओ । मूँछ और पूँछ तो दुबारा आ जायेंगी । अब तुम अच्छा बनने की कोशिश करो ।’
‘हाँ माँ ।’ ऐसा कहकर नन्दू अपनी माँ से चिपटकर बिलख पड़ा ।