1 | घास की चोरी और जमाखोरी | यदि मुखिया बुद्धिमान हो, कर्तव्य परायण हो, ईमानदार हो तो चोरी-चोरबाजारी पनप नहीं सकते । |
2 | नन्दू की नौकरी | ईमानदारी और सूझबूझ व्यक्ति का सदैव ही आदर कराती है । |
3 | न्यायी राजा | राजा को ऐसा ही न्यायी होना चाहिये |
4 | माँ और बच्चे | बचपन में हम जैसे बन जाते हैं, बड़े होकर वैसे ही रहते हैं । बचपन के संस्कार ही तो हमारे भविष्य को बनाते हैं । |
5 | आलसी को सजा | आलसी चींटी को मिली बिल छोड़ने की सजा |
6 | ज्योतिषी सियार की करामात | जो पुरुषार्थ में नहीं भाग्यवाद में विश्वास रखते हैं, ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ते हैं, उनका यही नतीजा बुरा होता है । |
7 | पोल खुल गयी | पोल कभी न कभी तो खुलती ही है । अच्छा यही है कि जैसे हम अन्दर से हैं, बाहर से भी अपने आपको वैसा ही दिखलायें । |
8 | कहानी एक चित्र की | वह सौन्दर्य, जिसके मूल में प्राणों की बलि हो उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती । |
9 | गायों की गोष्ठी | भगवान् इन मनुष्यों को सद्बुद्धि दे कि वे जीवों पर दया करें। |
10 | मित्रता का अन्त | जीवन में कोई सच्चा मित्र न बन पाये, यह उतना बुरा नहीं है । इससे बुरा तो यह है कि हम बिना परखे किसी अयोग्य और दुष्ट से मित्रता कर लें। |
11 | सपने की सीख | दुःख देने में हमारा गौरव नहीं है । अगर कुछ कर सकते हैं, तो हम सब इनकी सुरक्षा |
12 | दो भाई | अपने बुरे व्यवहार से औरों का दिल दुखाने वाला अन्त में स्वयं भी कष्ट निश्चित ही भुगतता है । |
13 | बुद्धिमती चुहिया | संसार में अच्छे प्राणी भी हैं और बुरे भी । |
14 | चुलबुल का जन्मदिन | मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि सभी की सहायता किया करूँगा । |
15 | पक्षियों की पंचायत | ज्ञान की सार्थकता इसी में हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह दूसरों को भी सिखायें । |
16 | गुस्से का फल | क्रोध में जो कार्य किया जाता है उसका फल सदा बुरा ही मिलता है । |
17 | लल्लू कैसे बदला | एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिये । तभी वे संकट के समय भी हमारी सहायता करेगे । |
18 | जुगनओं की कैद | आपत्ति में पड़े हुए की सेवा-सहायता करना हम सभी का धर्म है । |
19 | मित्र की पहिचान | मित्र की सहायता करना मित्र का धर्म है । जो समय पड़ने पर मित्र की सहायता नहीं करता, वह सच्चा मित्र नहीं हुआ करता । |
20 | नन्दू को दण्ड | बुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है। आज नहीं तो कल वह भुगतना पड़ता है । |
21 | शाल बकरी | जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे हमेशा दुःख पाते हैं । |
22 | कपिला लोमड़ी | इस मूर्खता से दूसरों की कम और अपनी हानि अधिक होती है । |
23 | बर्र का उपदेश | न कोई छोटा है न बड़ा। सभी की अपनी अलग-अलग शक्ति-सामर्थ्य है । हम अपने अहंकार के गर्व में किसी का भी तिरस्कार न करें । |
24 | मीठे अंगूर | उसने सभी के सामने प्रतिज्ञा की कि अब वह सभी से सज्जनता का व्यवहार करेगी । सभी के साथ मिल-जुलकर रहेगी, दूसरों की सहायता करेगी । |
25 | श्वेता की उतावली | किसी ने सच ही कहा है कि जल्दबाजी और उतावलेपन में काम सदैव ही बिगड़ता है। जो धैर्य और शान्ति से कार्य करता है वही सफलता पाता है । |
26 | चंगू-मंगू चले घूमने | अब दोनों भाइयों ने अपने कान पकड़े और निश्चय किया कि जब तक वे बड़े नहीं हो जायेंगे और जब तक पिताजी उन्हें आज्ञा नहीं देंगे तब तक वे बिल से बाहर नहीं निकलेंगे । |
27 | नकल का फल | अनुकरण सोच-समझ कर ही करना चाहिये । सब काम सबके अनुकूल नहीं हुआ करता । बिना अकल के जो नकल की जाती है वह सफल नहीं हुआ करती । |
28 | प्रायश्चित | तुम्हारे व्यवहार से लोगों को तुम्हारा नहीं हमारा परिचय मिलता है कि हम कैसे ? |
29 | भूत का भय | कायर व्यक्ति कभी किसी काम में सफल नहीं होता । तुम बहादुर बनो । बेकार का डर छोड़ो । |
30 | अपना काम अपने आप | स्वयं परिश्रम करके जो कार्य किया जाता है, उसी में सच्चा आनंद मिलता है । |
31 | सच्ची कमाई | ईमानदारी से अपने हाथ-पैरों से मेहनत करके जो चीज पा सको, उसी का उपयोग करो, इसी में सुख है, इसी सफलता है और इसी में शांति है। |
32 | राजा की सनक | मूर्ख स्वामी की सेवा करने वाले कर्मचारी भी धीरे-धीरे मूर्ख बन जाते हैं। |
33 | पोखर का जादू | जादू-टोनों में विश्वास नहीं करेंगे, जिससे कि उन्हें कोई ठग और छल न सके। |
34 | घमंडी कजरी | देखो ! मैं व्यर्थ ही अभिमान करती थी। सभी से दूर रहा करती थी। दुःख-मुसीबत में हम सब ही एकदूसरे के काम आते हैं। हम सभी को मिल-जुलकर रहना चाहिए। |
35 | सुंदर की उदारता | जो जैसा होता है, वह दूसरों के प्रति भी वैसा ही सोचता है। मैं बुरे के साथ बुरा नहीं किया करता । मैं तो सदैव सबकी अच्छाई की बात ही सोचा करता हूँ।” |
36 | स्वावलंबन | जो चीज तुम्हें चाहिए, उसे अपनी मेहनत से प्राप्त करो। |
37 | मित्रता की कला | केशू अब पहले जैसा नहीं रहा। वह बहुत अच्छा बन गया है।” |
38 | परिश्रमी सदा सुखी | प्रसन्नता है दत्ता ! तुम सही रास्ते पर आ गई हो। तुम्हारा स्वागत है, सभी के साथ मिल-जुलकर रहो। |
39 | स्नेह की शक्ति | मुसीबत में पड़े की सहायता करना हमारा धर्म है। चाहे वह शत्रु हो या मित्र । |
40 | तीन मित्र | जीवन में सच्चे मित्र बड़ी कठिनाई से मिलते हैं। जो सच्चे मित्र पा लेता है, वह बड़ा भाग्यवान होता है। उसे विपत्तियाँ भी विपत्ति जैसी नहीं लगा करतीं। सुख-दुःख दोनों ही स्थितियों में उसके मित्र भागीदार होते हैं। |
41 | बंदर की नादानी | छोड़ दो मुझे, अब मैं कभी भी किसी का बुरा नहीं करूँगा- कहते हुए चुन्नू रोने लगा। |
42 | सबक | जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे सदैव आपत्ति में पड़ते हैं। तुम्हारी शक्तियाँ अभी सीमित हैं। तुम्हारा अनुभव अभी कम है, इसलिए बड़ों की बात मानकर काम करो। |
43 | सोच-विचार कर काम करें | अपने से जो ज्यादा अनुभव रखता हो, उसकी बात पर विचार करना चाहिए। उसके कहने के अनुसार काम करना चाहिए। जो उतावली में थोड़े से लोभ में आकर काम करता है, वह बाद में दु:ख ही पाता है । |
44 | सही रास्ता | गलती तो सभी से होती ही रहती है। बुरा वह नहीं है जो कभी गलती नहीं करता । बुरा वह है जो गलत करके भी उसे स्वीकार नहीं करता। जो अपनी गलती मानते हैं, वही उसे दूर कर पाते हैं । “ |
45 | संगठन की शक्ति | दुःख-सुख में एकदूसरे से सहारा मिलता है। सभी मिल-जुलकर रहें, इसी में आनंद है |
46 | नदी पार की दावत | जो भी कार्य हम करें, सोच-समझकर करें। कोई कार्य ऐसा न करें, जिससे दूसरे का कोई अहित हो। अपने लाभ के साथ-साथ दूसरे के लाभ का भी ध्यान रखें। |
47 | मित्र का कर्त्तव्य | तुम हमारे सच्चे मित्र हो, सच्चे हितैषी हो। सच्चा मित्र अपने मित्र का दुःख नहीं देख सकता। तुम्हारे परिश्रम और योजना से ही आज हम कैद से छूट पाए हैं। |
48 | सोनी की धूर्तता | जो दूसरों की बातों में आकर बहक जाता है, मित्र पर अविश्वास करने लगता है, वह जीवन में सच्चा मित्र कभी नहीं पा सकता।” |
49 | जातीय गौरव | धिक्कार है इन अभागे मूर्खों को जो अपनी मातृभाषा का गौरव भूलकर औरों की भाषा की नकल ही करते हैं और खुश होते हैं। |
50 | शक्ति की पहिचान | जो अपने को पहिचान लेते हैं, अपनी आंतरिक शक्तियों को जानकर उनका सदुपयोग कर लेते हैं, वही अपने जीवन को ऊँचा उठा लेते हैं, औरों के लिए भी खुशहाली लाते हैं।’ |
51 | होनहार बालक | ऐसे बच्चे ही तो समाज और देश के गौरव हुआ करते हैं |
52 | कूबड़ी बुआ | यदि वह सच्चाई को पहले पहचान लेती, अपनी गंदी आदत छुड़ा लेती तो क्यों यह दुर्दिन देखना पड़ता। |
53 | मोटा गुल्लू | अधिक खाने की आदत छुड़ाने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ा, मन को कठोर बनाना पड़ा। पर अंत में चंदो अपने काम में सफल ही रही। |
54 | व्यक्तित्व की परख | ‘संसार में न धूर्तों की कमी है न महान् आत्माओं की। हमें अच्छे व्यक्तियों का ही अनुकरण करना चाहिए जिससे यह जीवन सफल और सार्थक बने । |
55 | बीमारियों की जड़ | ईर्ष्या, द्वेष, घमंड, कुढ़न, काम, क्रोध, लोभ आदि भी रोग हैं। ये मन के रोग शरीर के रोगों से अधिक भयानक हैं। |
56 | समाज के शत्रु | यह हमारे स्वभाव की विशेषता होती है कि दूसरों की अच्छाई तो हम देर से ग्रहण कर पाते हैं पर बुराई जल्दी ही सीख लेते हैं। इसीलिए तो अच्छे व्यक्तियों की संगति को इतना महत्त्व दिया जाता है। |
57 | चींटी और मधुमक्खी | ‘संकट की घड़ी ने हमारी मित्रता को और अधिक निखार दिया है।’ |
58 | यात्रा | गंगोत्री की यात्रा ने प्रशांत का न केवल शरीर और मन ही स्वस्थ बना दिया था। अपितु जीवन की परिस्थितियों के प्रति उसका दृष्टिकोण भी आशावादी बना दिया था। |
59 | स्वर्ग का सुख | स्नेह और त्याग से भरा परिवार ही स्वर्ग का सुख देता है |
60 | भाइयों का स्नेह | संगठन से ही सुरक्षा और बल मिलता है। अपने शुभ चिंतकों से, आत्मीयजनों से लड़-झगड़ कर रहने से तो दुर्जनों को लाभ उठाने का अवसर मिल जाता है और हमारी परेशानियाँ ही बढ़ती हैं। |
61 | संकल्प | जिस आदत को हम सच्चे मन से बदलने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं, वह निश्चित ही बदल जाती है। |
62 | सफल और लोकप्रिय शासक | ऊँचा पद पाकर अभिमान नहीं करना चाहिए अपितु सद्गुणों से ही अपने आपको ऊँचा उठाना चाहिए। |
63 | पांडव बनाम कौरव | जो मार्ग चुना गया, अनुरूप गति मिली । |
64 | स्वार्थी इक्कड़ की दुर्गति | एकाकी स्वार्थ-परायणों को इसी प्रकार नीचा देखना पड़ता है। |
65 | चुहिया ने चुना चूहा | मनुष्य को भी इसी तरह अच्छे से अच्छे अवसर दिए जाते हैं, पर वह अपनी मन:स्थिति के अनुरूप ही चुनाव करता है । |
66 | दुःखी आम | न उसके फल किसी के लिए उपयोगी बन पाते हैं और न कोई उसके पास जाता है । |
67 | मलीन पोखरी | स्वार्थ के ऐसे ही परिणाम निकलते हैं । |
68 | दो मुँह वाला जुलाहा | साधारण स्तर बनाये रहने में ही भलाई है। |
69 | सोने का अंडा | उतावली में एक अंडा मिलने का लाभ भी हाथ से चला गया |
70 | जल्दबाजी का दुष्परिणाम | धनवान बनने की जल्दबाजी में मैंने स्वयं अनर्थ मोल ले लिया। |
71 | दुर्योधन का दर्प | दुर्योधन को शर्म से सिर झुकाना पड़ा । |
72 | विदुर का भोजन और श्रीकृष्ण | ऐसी सुविधाएँ न भगवान ही स्वीकार करते हैं, न उनके भक्त । |
73 | अहंकारिता और जल्दबाजी का दुष्परिणाम | विद्वत्ता और उदारता जितनी सराहनीय है, उतनी ही अहंकारिता और जल्दबाजी हानिकर |
74 | विलासी हारते हैं | अहंकार दोष से मुक्ति पाने का तप करो । उसके बिना समस्त वैभव अधूरे हैं । |
75 | दान बना अभिशाप | यदि कर्तव्य की मर्यादा में ही वह वरदान का उपयोग करता, तो शिव के स्नेह और संस्कार के यश का भागीदार बनता । |
76 | बिच्छू और केकड़ा | दुष्ट को सज्जन बनाने का काम संतों पर छोड़कर साधारण लोगों को तो उनसे बचे रहने में ही खैर है । |
77 | चरवाहे की सम्पत्ति | युवा बादशाह आदर्शनिष्ठा को देखकर नत मस्तक हो गया । |
78 | दास चीरित्र एवं बुद्ध | अर्हत ही बनना हो तो अहंता गलानी और छोटे श्रम को भी गरिमा प्रदान करनी चाहिए । |
79 | राजेन्द्र बाबू की सरलता | – |
80 | फोर्ड जिनने अपनी कमाई परमार्थ में लगाई | फोर्ड फाउंडेशन द्वारा अनेक परमार्थ-कार्य चलते हैं। |
81 | परमहंस की विनम्रता और सादगी | सत्परामर्श द्वारा अपनी ब्राह्मण वृत्ति की शिक्षा अन्यान्यों को भी देकर सन्मार्ग का पथ प्रशस्त करते हैं । |
82 | हजारी किसान | उस क्षेत्र का नाम उस किसान की स्मृति में हजारीबाग पड़ा । |
83 | पाप का प्रायश्चित | एक क्रूर और आतताई कहा जाने वाला अशोक बदला तो प्रायश्चित की आग में तपकर वह एक संन्यासी जैसा हो गया । |
84 | दृढ़ निश्चयी मीरा | मीरा को दृढ़ निश्चयी और साहसी भक्तों में गिना जाता है । |
85 | मंत्री भद्रजित की देवकृति | राजा समझ गए सत्पुरुष पद से नहीं, अपनी देवोपम प्रवृत्तियों से सम्मान पाते हैं । |
86 | सिद्धांतवादी वर्नार्ड शॉ | उनकी विद्वत्ता, उनकी आदर्शनिष्ठा के सहारे ही इतनी निखरी और लोकप्रिय हुई । |
87 | वुड्रेज की सफल श्रम साधना | सारे विश्व में उसका और उसकी खेल योजना का नाम गौरव के साथ लिया जाता है । |
88 | पाखंड उन्मूलक सच्चे संन्यासी दयानंद | आर्य समाज की खदान में से बहुमूल्य मणि-माणिक्य निकले जिनकी कृतियों को कभी भुलाया न जा सकेगा । |
89 | वेद ज्ञान के प्रसारक मैक्समूलर | स्त्री और शूद्र भी उस ज्ञान को मनुष्यों की तरह प्राप्त करने लगे । |
90 | आदर्श चिकित्सक | उस पिछड़े क्षेत्र को हर दृष्टि से डॉक्टर साहब ने इतना समुन्नत बनाया कि लोगों के लिए वह दर्शनीय तीर्थ बन गया । |
91 | गोस्वामीजी की समाज-निष्ठा | उद्देश्य हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान की भावना को प्रबल बनाना था। |
92 | महानता का मापदंड | इस तरह से अपने कार्यों द्वारा वसंत वायु ने अपनी शक्ति का परिचय आँधी को करा दिया। |
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