आलसी को सजा

मनु चींटी बड़ी आलसी थी । उसके बिल की सारी चीटियाँ दिन-रात काम में जुटी रहती थीं, पर मनु कभी सिर दर्द का बहाना बनाती, तो कभी पेट दर्द का । कभी बुखार की शिकायत करती, तो कभी चक्कर आने की । इस प्रकार वह काम से बचने का कोई न कोई बहाना खोजती रहती ।

जब कोई बहाना न बना पाती, तो धीरे- धीरे बड़ी सुस्ती और लापरवाही से काम करती । काम को जान-बूझकर बिगाड़ने की कोशिश करती, जिससे आगे से उससे कोई काम करने को ही न कहे। वह यह नहीं सोचती थी कि ऐसा करने में उसकी अपनी हानि है । उल्टा-सीधा काम करेगी तो कोई भी उस पर विश्वास नहीं करेगा और ना ही कोई उसे प्यार ही करेगा ।

एक दिन रानी चींटी ने सभी चींटियों को आज्ञा दी कि वे सभी अण्डों को बरगद के पेड़ के पास जाकर कुछ देर धूप रखेंगी । मनु रानी के आगे कुछ न कह पायी । मन मारकर उसे जाना ही पड़ा ।

पेड़ के नीचे जब सारे अण्डे रख दिये गये, तो राधा नाम की चींटी, जो श्रमिक चींटियों की नेता थी, मनु से कहने लगी- ‘मनु ! हमारे खाने का भण्डार खतम होने जा रहा है। अतएव हम सब खाने की तलाश में जा रही हैं । तुम्हारे पास चीनू को छोड़े जा रही हैं । तुम दोनों मिलकर सावधानी से अण्डों की रक्षा करती रहना, लापरवाही न करना । तुम्हारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी छोड़ रही हूँ ।’

मनु ने बड़े नखरे से अपनी गरदन हिलाकर हाँ कहा और अण्डों के पास उनकी रखवाली के लिये जाकर बैठ गयी। थोड़ी देर तक वह आराम करती रही । चीनू से बात करती रही, पर जल्दी ही उसका मन भर गया । धूप में बैठना भी मनु को अच्छा नहीं लग रहा था । वह छाया में लेटकर सोना चाहती थी । मनु चीनू से कहने लगी- ‘चीनू ! मैं जरा-सा घूमने जा रही हूँ,अभी आती हूँ ।’

चीनू बोली- ‘मनु | इस समय तुम्हारा जाना ठीक नहीं है’।

हमारे ऊपर सारे अण्डों की सुरक्षा का दायित्व है ।”ओह । अभी बस पाँच मिनट में पानी पीकर आती हूँ ।” मनु कुपित-सी होकर आँखें नचाकर बोली । बिना चीनू की ओर देखे, उसकी बात बिना सुने वह तेजी से वहाँ से चल दी ।

बरगद के पेड़ के पास जाकर मन रुकी । ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही थी, उसका मन प्रसन्न हो गया । पेड़ के नीचे कुछ फल भी बिखरे पड़े थे । मनु ने जी भरकर उन पके स्वादिष्ट फलों को खाया । फिर वह पेड़ की जड़ में बने छेद में होकर नीचे घुसी । वहाँ ठण्डी-ठण्डी जगह में उसने अँगड़ाई ली और हाथ-पैर पसारकर आराम से सो गयी ।

अचानक आसमान में काले-काले बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे । चीनू चींटी को बड़ी चिन्ता हुई कि पानी आ जायेगा, तो सारे के सारे अण्डे बह जायेंगे । उसने सोचा कि अब इन्हें जल्दी से लेकर घर चलना चाहिये । चीनू ने मनु को खूब जोर-जोर से सैकड़ों आवाजें लगाय, पर मनु सुनती कहाँ से ?

वह तो बरगद की जड़ के अन्दर आराम से सो रही थी। आखिर चीनू थक गयी । उसने सोचा कि यह दुष्ट न जाने कहाँ चली गयी ? जल्दी ही कुछ करना चाहिये, नहीं तो सारे अण्डे पानी में बह जायेंगे ।

कुछ अण्डों को मुँह में दबाये, तेजी से दौड़ती- ‘हाँफती चीनू अपने बिल में पहुँची । वह रास्ते में इतना तेज दौड़ी थी कि उसकी साँस फूलने लगी थी, दम – सा घुटने लगा था । ‘क्या बात है चीनू ? उसे देखकर रानी चींटी चिन्ता भरे स्वर में पूछने लगी ।

चीनू ने सारी बात बताई कि किस प्रकार बरगद के पेड़ के पास अण्डे असुरक्षित पड़े हैं। पानी आने वाला है। जल्दी ही दूसरी चींटियों को भेजिये, नहीं तो सारे के सारे अण्डे बह जायेंगे ।

रानी ने तुरन्त ही चींटियों की एक लम्बी सेना अण्डे लेने के लिये भेज दी । फिर वह चीनू से बोली- ‘पर तुम वहाँ अकेली कैसे रह गर्यो ?’

‘सारी चींटियाँ खाने की खोज में गयी हैं। मेरे पास मनु को छोड़ गयी थीं, पर उसका कहीं पता नहीं । आधा घण्टे तक मैं उसे आवाज दे-देकर थक गयी । जब वह नहीं आयी तो मैं दौड़कर आयी हूँ ।’ चीनू हाँफते हुए बोली। इतना कहकर वह लड़खड़ा कर बेहोश होकर गिर गयी ।

चींटियों ने मिलकर बहुत कोशिश की, पर चीनू को होश न आया । धीरे-धीरे उसकी साँसों का आना-जाना बन्द हो गया । रानी चींटी को बहुत गुस्सा आया ।

वह बोली- ‘चीनू के मरने का कारण वह कामचोर मनु है । उसे कठोर दण्ड मिलना ही चाहिये । कामचोर, आलसी और निकम्मा अपनी ही हानि नहीं वरन् दूसरों को भी नष्ट कर देता है । ऐसे को तो अपने साथ कभी नहीं रखे ।

सभी चींटियाँ गरदन और हाथ हिला-हिलाकर कहने लगी- ठीक कहती हैं आप महारानी जी ।’ खूब पानी पड़ा। बिजली कड़की उसके भी बड़ी देर बाद मनु की आखें खुली ।

आँख मलते-मलते वह उठी और बोली- ‘अरे आज तो मैं बड़ी गहरी नींद सोयी ।’ संध्या का झुटपुट हो रहा था । मनु तेजी से अपने बिल की ओर बढ़ने लगी । रास्ते में वह मन में यह सोच कर प्रसन्न होती जा रही थी- ‘आज तो खूब मजा आया । | काम की बला खूब टली ।’

बिल में पहुँचते ही मनु की पेशी रानी चींटी के सामने हुई । ‘मनु तुम्हें बिल छोड़कर जाने की आज्ञा दी जाती है । तुरन्त ही यहाँ से चली जाओ ।’ रानी चींटी गुस्से में भरकर बोली और उसने मनु को देखकर मुँह फिरा लिया ।

मनु ने ऐसी कल्पना भी न की थी । यह आदेश सुनकर वह धक-सी रह गयी और फूट-फूट कर रोने लगी, पर रानी चींटी जरा भी न पिघली ।

मनु अपने माता-पिता के पास जाकर खूब रोयी, पर उन्होंने कह दिया कि गलती तुमने की है । हम तुम्हारा थोड़ा-सा भी पक्ष लेकर गलत बात का समर्थन नहीं करेंगे । रानी ही तुम्हें मांफी दे सकती है ।

मनु फिर रानी चींटी के पास गयी । उसकी रही-सही आशा भी टूट गयी थी । उसे उम्मीद थी कि उसके माता-पिता उसे बचाने की कोशिश करेंगे, वे तो कुछ भी न बोले थे ।

मन रोती हुई बोली- ‘महारानी जी! मुझे माफ कर दीजियेगा ।” ‘देखो मनु ! तुम बहुत ही निकम्मी लापरवाह और कामचोर होती जा रही हो । इन अवगुणों से जीवन में कभी कोई उन्नति कर ही नहीं सकता । वे सचमुच किसी एक को ही नहीं पूरे समाज को हानि पहुँचाते हैं।’ रानी चींटी बोली ।

मनु जब बहुत रोई – गिड़गिड़ाई तो रानी चींटी कहने लगी- दण्ड तो तुम्हें भुगतना ही होगा । तुम्हारे ही कारण हमें वफादार और मेहनती चीनू से हाथ धोना पड़ा है।

तुम कह रही हो कि आगे से ध्यान से काम करोगी, लापरवाही नहीं करोगी, इसलिये तुम्हारा दण्ड कम किया जाता है । तुम एक महीने बाद बिल में फिर आ सकती हो, पर अपनी आदत सुधार कर । जो बुराइयाँ तुम दूसरों मैं देखती हो, जिनके लिये उनकी आलोचना करती हो, उन्हें अपने | अन्दर भी न रहने दो ।

लाचार मनु चींटी को एक महीने के लिये बिल छोड़ना पड़ा । वह अकेली पुष्कर तालाब के किनारे घूमती रहती है । न कोई उससे बात करने वाला है, न उसका ध्यान रखने वाला ।

वह सारे दिन काम करती रहती है, जिससे कि उसका आलसीपन छूट जाये । मनु चाहती है कि जल्दी से जल्दी एक महीना पूरा हो और अपने परिवार में जाकर हँसी-खुशी से रहे। मनु ने प्रतिज्ञा कर ली है कि अब वह कभी भी आलसी और लापरवाह नहीं बनेगी ।

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