ज्योतिषी सियार की करामात
एक बार भासुरक सिंह अपने राजदरबार में बैठा था । सभा जुड़ी हुई थी, बानर, हाथी, चीता आदि सभी सभासद अपने-अपने आसनों पर बैठे थे। तभी द्वारपाल ने प्रवेश किया और कहा- ‘महाराज ! दूर देश से कोई जानवर आपके दर्शन करने आया है ।’
सिंह ने उसे अन्दर बुलाने की आज्ञा दे दी । द्वारपाल रीछ उसे लेकर अन्दर आया । आगन्तुक एक सियार था। एक गेरुए रंग के वस्त्र पहिने था । उसके माथे पर लम्बा-सा तिलक लगा हुआ था ।
गले में बड़े-बड़े काले दानों की माला पड़ी हुई थी । वेशभूषा से वह पण्डित लग रहा था ‘कहिये ! आपका आगमन कहाँ से हुआ है ? आपका शुभ नाम क्या है ? आप क्या कार्य करते हैं ?’ भासुरक ने उसके वेष से प्रभावित होते हुए और आसन देते हुए कहा । ‘महाराज ! मेरा नाम कुप्पू कपिल है ।
यहाँ से सात जंगल पार से अस्थि बहुल नाम के जंगल से मैं आया हूँ। हमारे वन में बड़ा अकाल पड़ गया है । मेरे बाल-बच्चे भूखे हैं, इसलिये जीविका की खोज में यहाँ तक आ गया हूँ। पेशे से मैं ज्योतिषी हूँ । अस्थि बहुल वन के राजा हमेशा मेरे कहने से कार्य किया करते हैं। उन्हें हर कार्य में सफलता मिलती है ।’
भासुरक कुप्पु की बातों से बड़ा प्रभावित हुआ । उसने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम किया । फिर अपना हाथ आगे बढ़ा कर बोला- ‘पण्डितजी ! मेरा हाथ देखकर भी कुछ बताइये ?’
असल में भासुरक बड़ा आलसी था । वह पड़ा-पड़ा खाता रहता था । वह सोचता था कि परिश्रम करने से क्या लाभ ? भाग्य में जो होगा वह मिलेगा । कपिल से वह यही जानना चाहता था कि उसको जीवन में धन और सुख मिलेगा या नहीं ।
कुप्पू तो पहले से ही भासुरक के विषय में जानता था । उसने भासुरक का हाथ अपने हाथ में लिया, नाक पर चश्मा चढ़ाया और ध्यान से देखने का ढोंग रचने लगा ।
दो-चार मिनट तक वह मुँह में धीरे-धीरे बुदबुदाता रहा और सिर हिलाता रहा । अब सिंह से न रहा गया । वह बोला-‘जोर से स्पष्ट बताइये ।’
‘राजन् ! आप तो बड़े ही प्रजा-वत्सल, न्यायप्रिय हैं, परोपकारी हैं, दूसरों के लिये सर्वस्व त्यागने वाले हैं ।’ कुप्पू ने सिंह की प्रशंसा के पुल बाँधना प्रारम्भ कर दिया ।
सिंह अपनी तारीफ सुनकर खुशी से फूल कर कुप्पा होने लगा । वह अपनी पूँछ को जोर-जोर हिलाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने लगा ।
कुप्पू ने मंत्री-सेनापति आदि के विषय में भी पहले से पता कर लिया था। राजा का भी हाथ देखकर उसने सभी के विषय में सच-सच बातें बता दीं । अब तो वे सभी मंत्र मुग्ध देखते ही रहे । सभी उसकी योग्यता की बड़ी प्रशंसा करने लगे । सारा दरबार वाह-वाह कर उठा ।
बताते-बताते कुप्पू अचानक रुक गया । भासुरक ने सोचा न जाने क्या बात हुई ? उसने कहा- ‘बताइये ! आप बताते जाइये ।’
‘….। छोड़िये राजाजी !’ हकलाते हुए कुप्पू कपिल ने कहा और राजा का हाथ छोड़ दिया । अपना चश्मा भी उतारकर थैले में रख लिया ।
सिंह घबरा उठा । उसे लगा कि न जाने क्या बात गयी है ? वह जल्दी-जल्दी बोला- ‘क्या बात है आखिर । हमें भी ! कुछ तो बताइये ।’
‘बात कुछ ऐसी ही है । आपको विश्वास न होगा । आप मुझ पर व्यर्थ ही कुपित होंगे। भगवान न करे कि ऐसा हो ।’ कुप्पू बड़ा गम्भीर तथा उदास होते हुए बोला । ‘अरे ! जो भी कुछ हो आप निःसंकोच होकर कहिये ।’ भासुरक घबराया-सा बोला ।
क्या बताऊँ राजन् ! अरे यह बात भी मुझे अपने मुँह से ही बतानी थी । बात यह है …….बात यह है कि…….कुप्पू हकलाते हुए कहने लगा- ‘आपके राज्य पर घोर विपत्ति आने वाली है ।
यदि आपके राज्य में दो-चार दिन में ही आसमान पर धनुष दिखाई देगा तो सभी बरबाद हो जायेंगे । घोर तबाही आयेगी…। अरे मेरे भाग्य में यह देखना भी बदा था …..।’ ऐसा कहकर कुप्पू सियार झूठे आँसू बहाने लगा ।
यह सब सुनकर तो भासुरक बड़ा ही घबरा उठा । काँपती आवाज में वह बोला- ‘इससे बचने का कोई भी उपाय बताइये,महाराज ।’
‘उपाय…..उपाय तो एक ही है।’ अपने माथे पर हाथ रखता हुआ सोचने की मुद्रा में कुप्पू बोला- ‘वह यह है कि जैसे ही धनुष दिखाई दे तो आप जंगल से सभी जानवरों को लेकर यहाँ से निकल जायें।
यहाँ से उत्तर दिशा में आप चलते जायें। दस मील चलने के बाद जो भी जंगल मिले उसी में बस जायें। वहाँ आपकी बहुत ही अधिक उन्नति होगी । इस राज्य से भी अधिक उन्नति होगी । इस राज्य से भी अधिक सुख-सुविधायें मिलेंगी ।
सभी के सभी जानवर कुप्पू की बातें सुनकर भयभीत हो रहे थे। एक शब्द भी उनके मुँह से निकल नहीं रहा था । ‘अच्छा अब मैं चलता हूँ, आपका पथ मंगलमय हो ।’
कुप्पू ने कहा और अपना झोला उठा कर चलने लगा । भासुरक ने आगे बढ़कर अपने गले से कीमती हार उतारा और पारिश्रमिक रूप में कुप्पु के गले में डाल दिया ।
‘हरि ॐ, हरि ॐ ।’ कहता हुआ कुप्पू ज्योतिषी वहाँ से जाने के लिये उठ खड़ा हुआ, गयी थी । पर तब तक घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो अतएव भासुरक ने उससे राजभवन में अतिथि बनने का निवेदन किया । कुप्पू को और क्या चाहिये था । प्रसन्नतापूर्वक इसके लिये तैयार हो गया । वहाँ उसका खूब स्वागत हुआ । खा-पीकर वह गहरी नींद में सो गया ।
संयोग की बात ! कुप्पु सियार जब शाम को सोकर उठा तो आसमान पर धनुष छाया था । वास्तव में हुआ यह था कि वर्षा तो दोपहर में ही बन्द हो गयी थी । फिर हल्की-सी धूप निकल आयी थी और आकाश में इन्द्र धनुष छा गया था, पर बेचारे जंगल के भोले-भाले जानवर ने कभी आसमान की ओर गर्दन उठाकर इन्द्र धनुष देखा ही न था ।
इतने में राजा भासुरक दौड़ा-दौड़ा आया । उसने तुरन्त ही वहाँ । से भागने की सोच ली थी । भासुरक ने कपिल के चरणस्पर्श किये और अपनी सारी प्रजा को लेकर उस जंगल से विदा हो गया ।
कपिल कुछ देर तक खड़ा खड़ा उन्हें जाते देखता रहा । जब केवल धूल ही उड़ती दिखाई देने लगी, तो वह खूब अट्टहास करके हँसा । खूब बेवकूफ बनाया । मूर्ख! जीवन हाथ की रेखाओं से नहीं, कर्म से बनता है।’ मन ही मन कहने लगा ।
फिर सोचने लगा कि जो पुरुषार्थ में नहीं भाग्यवाद में विश्वास रखते हैं, ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ते हैं, उनका यही नतीजा होता है । ‘मैंने आज खूब उल्लू सीधा किया ।’ ऐसा कहकर सियार जोर से ताली बजा-बजाकर नाच उठा ।
फिर वह तुरन्त दौड़कर गया और रात में ही अपनी पत्नी और अपने बच्चों को लेकर उस जंगल में आ गया। सभी जानवरों के घर पूरे सामान से भरे तो पड़े ही थे । वह सियार वर्षों तक वहाँ आराम से रहा ।