दान बना अभिशाप
शिवजी ने संस्कारित व्यक्तियों की ही भस्म खोजकर लाने के लिए एक स्नेह पात्र गण को नियुक्त किया । वह निष्ठापूर्वक अपना कार्य समय पर पूरा करने लगा ।
एक बार उसने कहा-“प्रभु ! आपके भक्त अधिकांश आप जैसे अलमस्त फक्कड़ होते हैं । कई बार उनके दाह की भी व्यवस्था नहीं जुट पाती । उनका दाह करने के लिए ईंधन जुटाने, भस्म प्राप्त करने में बड़ी कठिनाई होती है । शिवजी ने उसकी निष्ठा से प्रसन्न होकर वरदान दिया, कहा-“परेशान मत हुआ करो । अब से उसके ऊपर अपना दाहिना हाथ कर दिया करो, वह भस्म हो जाया करेगा ।”
वरदान ने काम को सुगम बना दिया । एक बार आत्म रक्षार्थ उस शक्ति का प्रयोग किया तो वह क्रम चल पड़ा । शक्ति का घमंड उभरा और वासनापूर्ति के लिए भी उसका प्रयोग होने लगा । निर्धारित कर्तव्य के लिए दी गयी शक्ति अकर्तव्य में लगाने से वह असुर भस्मासुर कहलाया और बाद में शिवजी की युक्ति से स्वयं अपने सिर पर हाथ रखने के कारण भस्मीभूत हो गया ।
सीख: यदि कर्तव्य की मर्यादा में ही वह वरदान का उपयोग करता, तो शिव के स्नेह और संस्कार के यश का भागीदार बनता ।