सोनी की धूर्तता

अमरकंटक वन में पीपल का एक बड़ा पुराना पेड़ था। उस पर कनु नाम का एक बंदर रहा करता था। कनु बड़े ही अच्छे स्वभाव का था। सबसे मीठी वाणी बोलता था। किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करता था।

दूसरों की सहायता किया करता था, इसलिए उस पेड़ पर रहने वाले सभी प्राणी कनु को बहुत प्यार करते थे।

जंगल में कनु के बहुत से दोस्त बन गए। एक बार कनु की मित्रता एक खरगोश से हो गई। हुआ यह कि भानु नाम का एक खरगोश भेड़िये के चंगुल में फँस गया। वह सहायता के लिए पुकार रहा था।

तभी कनु वहाँ आ पहुँचा। अपनी बुद्धिमानी से कनु ने भानु को छुड़ा लिया। तभी से भानु कनु बंदर का पक्का दोस्त बन गया।

भानु खरगोश को कनु बंदर के बिना चैन नहीं पड़ता था। वह सुबह-सुबह पीपल के पेड़ के नीचे आ जाता और कनु को पुकारने लगता। फिर दोनों घूमने निकल पड़ते।

सुबह-सुबह ठंढी हवा में वे टहलते और अपना स्वास्थ्य बनाते। रास्ते में कनु कभी किसी बूढ़े जानवर की सहायता करता तो कभी किसी असहाय पक्षी की सेवा करता। भास्कर नाम का एक बूढ़ा हाथी जंगल में रहता था।

वह बड़ा ही दुर्बल था । अपना कुछ भी काम नहीं कर पाता था । कनु प्रतिदिन उसके लिए खाना जुटाकर रख आता था । इस प्रकार कनु बंदर का सुबह का सारा समय दीन-दुखी जानवरों की सेवा करने में ही व्यतीत होता था ।

इसके बाद दोनों मित्रों को भूख लग आती थी । कनु कभी किसी जामुन के पेड़ पर चढ़ जाता तो कभी अमरूद के । वह खूब सारे फल तोड़ता। कनु बंदर और भानु खरगोश दोनों मिलकर उन्हें खाते। फिर टहलते हुए वापस घर आते।

पीपल के उसी पेड़ पर एक सोनी नाम की गिलहरी भी रहा करती थी। वह कनु और भानु की मित्रता देखकर बड़ी चिढ़ती थी। खुद तो उसकी किसी से बनती नहीं थी। उसका कोई भी मित्र नहीं था।

इसका कारण सोनी का स्वभाव था। वह जरा सी बात में गुस्सा हो जाती थी। चाहे जब चाहे किसी को उलटी-सीधी-कड़वी बातें कहने लगती थी । इसीलिए सभी उससे बचते थे ।

सोनी गिलहरी फूट डलवाने में बड़ी चतुर थी। वह इस प्रकार बातें करती थी कि सुनने वाला पूरी तरह उसकी बातों में आ जाता था। सोनी ने कनु बंदर को भी खरगोश के विरुद्ध बहुत भड़काया।

वह बोली – “कनु तुम्हें पता नहीं है कि वह भानु खरगोश कितना चालाक है। यह तुम्हारी पीठ पीछे बुराई करता है।”

कनु बोला- “दीदी ! मुझे भानु पर विश्वास है । उसे मेरा जो भी व्यवहार बुरा लगेगा, उसके बारे में मुझसे कहेगा। वह कभी मेरे पीछे मेरी बुराई नहीं करेगा।”

इसी प्रकार प्रतिदिन ही सोनी कनु बंदर को भानु खरगोश के विरुद्ध भड़काती, पर कनु समझदार था। उसकी बात एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता।

जब कनु पर कोई वश न चला तो सोनी गिलहरी ने चुपके- चुपके भानु खरगोश के कान भरने शुरू कर दिए। वह कहने लगी- “देख लेना कनु के चक्कर में तुम किसी दिन अपने प्राण गँवा बैठोगे। कनु की दोस्ती नंदू भेड़िये से है। वह किसी दिन तुम्हें उसके हवाले जरूर कर देगा। इसलिए वह तुम्हें पाल रहा है।”

सोनी की बातें धीरे-धीरे भानु के मन पर असर करती गईं। उसके मन में कनु बंदर लिए मित्रता जैसा कोई भाव न रहा। दोनों साथ घूमने जाते, पर भानु खरगोश पहले की भाँति प्रसन्न मन से बातें न करता ।

कनु समझ गया कि जरूर कुछ दाल में काला है। हो न हो सोनी गिलहरी ने ही भानु के कान भरे हैं। वह भानु से बोला- ” मित्र ! मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारे मन में मेरे लिए पहले जैसा स्नेह नहीं है। मन में स्नेह न रहने पर कैसी मित्रता ? फिर अच्छा हो कि हम अपनी मित्रता ही समाप्त कर दें।”

सह सुनकर भानु सकपका गया। फिर गुस्से में भरकर कहने लगा-‘ “मित्र को कभी अपने मित्र का बुरा नहीं सोचना चाहिए।” मैंने तेरे लिए क्या बुरी बात सोची है ?

कनु ने पूछा – “तुम मुझे नंदू भेड़िये को खिलाने की बात सोचते हो।” भानु ने कहा । कनु पूछने लगा-” यह तुमसे किसने कहा है? मैं तो मित्र के साथ धोखा करने की बात सोच भी नहीं सकता।”

“सोनी गिलहरी ने मुझे यह बात बताई।” भानु बोला ।

कनु कहने लगा—“दोस्त ! तुम्हें अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए। सोच-विचारकर कदम उठाना चाहिए । कुछ प्राणी ऐसे ही होते हैं जो दूसरों को सुखी नहीं देख सकते। वह बिना किसी कारण के उनकी बुराई करते हैं, उनमें फूट डलवाते हैं, उनमें लड़ाई कराते हैं। ऐसे नीचता के कार्यों में उन्हें सुख मिलता है। उनकी बातों में आकर हमारा कुछ भी भला नहीं होगा ।”

“तो क्या सोनी गिलहरी झूठ कर रही थी ?” भानु पूछने लगा।

कनु ने उसे बताया कि सोनी गिलहरी ने उसे भी भानु के विरुद्ध बहुत भड़काया था, पर उसने सोनी की बातों को कोई महत्त्व नहीं दिया। वह सोनी के स्वभाव से परिचित था, सोनी का काम ही यही है।

भानु की समझ में भी सोनी की चालाकी आ रही थी। वह कहने लगा- “तुम ठीक ही कहते हो। दूसरे की बातों में आकर मित्र पर अविश्वास करना ठीक नहीं। एक ही बार सोच-समझकर मित्र बनाना चाहिए, फिर मित्रता का हमेशा निर्वाह करना चाहिए।

मित्रता की आड़ में धोखे की बात तो नीच और दुष्ट ही सोचा करते हैं। तुम्हें मुझे भेड़िये को ही खिलाना होता तो फिर पहले ही क्यों बचाता ?”

फिर वह कनु के पैरों पर गिरते हुए बोला- “मैंने तुम पर अविश्वास किया है। मुझे माफ कर दो।”

भानु को उठाकर उसकी पीठ सहलाते हुए कनु बोला- “मैंने माफ किया, पर आगे ध्यान रखना। कभी दूसरों की बातों में न आना। तुम्हें मुझसे जो शिकायत हो सीधे-सीधे मुझसे ही कहना । जो दूसरों की बातों में आकर बहक जाता है, मित्र पर अविश्वास करने लगता है, वह जीवन में सच्चा मित्र कभी नहीं पा सकता।”

अब मैं कभी भी दूसरों के बहकावे में नहीं आऊँगा । अच्छा हुआ जो बात साफ हो गई अन्यथा तुम्हारे जैसे सच्चे मित्र से मैं वंचित हो जाता।” भानु ने कहा ।

चलो इस खुशी में आज मैं तुम्हें बढ़िया सी दावत खिलाता हूँ। कहकर कनु जामुन के पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ से वह रसभरी पकी हुई मीठी-मीठी जामुन गिराता रहा। पेड़ के नीचे बैठे भानु ने उन्हें खूब छककर खाया ।

फिर दोनों मित्र खुशी-खुशी अपने-अपने घर चले। सोनी गिलहरी ने देखा कि उसकी दाल नहीं गली तो वह मन मसोसकर रह गई।

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