तीन मित्र
काली कौवा आज बड़ा उदास था। किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। कभी वह इस पेड़ पर बैठता तो कभी उस पेड़ पर। काँव-काँव करता हुआ बेचैन सा घूम रहा था। “आओ! घूमने चलें।” बूढ़े गिद्ध ने कहा।
“नहीं काका अभी नहीं जाऊँगा।” कहकर काली कौवा फिर उदास सा बैठ गया। असल में वह अपने मित्र सुंदर हिरण का इंतजार कर रहा था। दो घंटे हो गए, पर सुंदर नहीं आया।
काली कौवा घबराहट से भर उठा। कहीं ऐसा तो नहीं कि सुंदर हिरण किसी शिकारी के चंगुल में फँस गया हो ? हिरणों के पीछे शिकारी पड़े ही रहते हैं। जंगल के जानवर और पशु-पक्षियों का जीवन उनके कारण बड़े खतरे में रहता है। तभी काली कौवे ने देखा कि सामने से सुंदर हिरण चला आ रहा है।
“नमस्ते! कौवे भाई।” सुंदर बोला।
काली ने मुँह फिरा लिया, उसे बड़ा गुस्सा आ रहा था। “क्या बात है, आज तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो ?” सुंदर हिरण ने फिर पूछा।
काली अब भी कुछ न बोला। “लो मैं तुम्हारे लिए तो इतनी दूर से दौड़ता- हाँफता चला आ रहा हूँ। रास्ते में कहीं रुका तक नहीं। मेरी साँस फूल रही है और एक तुम हो कि मुँह फुलाए बैठे हो।”
अब सुंदर को भी बहुत गुस्सा आने लगा था। “तो क्यों आए थे तुम ? न आते। आने की जल्दी ही क्या थी ?” काली ने कहा ।
“मुझे क्या पता था कि तुम बोलोगे तक नहीं। नहीं तो मैं न आता।” सुंदर कहने लगा ।
“सुबह से तो आँख फाड़-फाड़कर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ । कहाँ चले गए थे तुम ? इतनी देर क्यों लगा ?” काली का गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था ।
‘आज मुझे अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती घूमने जाना पड़ा। घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गए। वहाँ से लौटने पर सीधा तुम्हारे ही पास दौड़ता-दौड़ता आ रहा हूँ।” सुंदर बोला।
‘ओह! तो जाओ पत्नी के साथ ही घूमो। दोस्त की तुम्हें चिंता भी क्या है ?” काली बड़े गुस्से में बोला और मुँह फिराकर बैठ गया। ‘अब सुंदर को भी गुस्सा आ गया। ठीक है, नहीं बोलना तो मत बोलो, मैं चला।” उसने कहा और पास की झाड़ी में मुँह लटकाकर बैठ गया।
सुंदर बहुत थका था। बैठते ही उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली तब उसने अपने गले में रस्सी का फंदा पड़ा पाया। एकाएक वह समझ नहीं पाया कि यह क्या हुआ ? तभी उसकी निगाह झाड़ी के पास खड़े शिकारी पर गई। अब सुंदर की समझ में आ गया कि वह शिकारी की गिरफ्त में फँस चुका है।
शिकारी अपने हाथ में रस्सी की डोर थामे बढ़ रहा था। उसके पीछे-पीछे उदास सुंदर मुँह लटकाए चला जा रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ?
तभी काली कौवे ने पेड़ पर बैठे हुए यह दृश्य देखा। वह तुरंत उड़ता हुआ सुंदर के पास जा पहुँचा। सुंदर सोच रहा था कि वह काली से कुछ देर पहले बड़े कडुवे ढंग से बातें करके आया है, इसीलिए काली उससे नहीं बोलेगा, पर यह उसका भ्रम ही निकला। काली काँव-काँव करता हुआ कह रहा था-घबराना नहीं मित्र ! मैं तुम्हें छुड़ाने का कोई उपाय सोचता हूँ ।
काली तुरंत उड़ता हुआ भासुर हिरण के पास गया। भासुर ने पूरी कथा सुनकर कहा -“पर काली! मैं सुंदर की सहायता कैसे कर सकता हूँ? काली ने उसे बड़ा अच्छा उपाय सुझाया। उसे सुनकर भासुर बड़ा ही प्रसन्न हुआ। दोनों सुंदर को छुड़ाने के लिए चल पड़े।”
काली आगे-आगे चलकर रास्ता दिखा रहा था। दोनों ने देखा कि शिकारी धीरे-धीरे चल रहा है। भासुर हिरण रास्ते में साँस रोककर लेट गया, शिकारी की निगाह भासुर पर पड़ी। अरे आज खूब शिकार मिल रहे हैं। आज तो बड़ा ही शुभ दिन है। वह खुशी से चिल्लाया।
जिस रस्सी में सुंदर हिरण बँधा था, उसी के दूसरे सिरे से उसने भासुर को बाँधना चाहा। पर तभी एकाएक भासुर छलांग लगाकर भाग गया। शिकारी चौंक उठा, उसके हाथ से रस्सी का सिरा छूटने लगा। तभी काली कौवे ने जाकर तेजी से उसकी नाक पर अपनी चोंच मारी।
शिकारी की नाक से खून निकलने लगा। वह दरद के कारण कराह उठा। उससे हाथ से रस्सी छूट गई। सुंदर हिरण रस्सी सहित तेजी से जंगल में भाग गया।
यह देखकर शिकारी विलाप करने लगा – “अरे! मैंने जरा से लोभ के कारण हिरण भी खो दिया और रस्सी भी। न मैं दूसरे हिरण के लालच में पड़ता और न ऐसा होता । सच ही है कि लालची का हमेशा नुकसान ही होता था । लोभ के कारण हानि उठानी पड़ती है।”
सुंदर और भासुर हिरण तथा काली कौवा जब खूब दूर पहुँच गए तो एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे। सुंदर कहने लगा- “मैंने तो सोचा था कि काली तुम मुझसे बोलोगे भी नहीं, क्योंकि मैंने कटु वचन बोले थे।”
काली कहने लगा, पर तुम संकट में थे। विपत्ति में बैर-भाव भुलाकर मित्र की सहायता करनी चाहिए। जो मित्र की जरा सी बात का बुरा मान जाता है, आपत्ति पड़ने पर मुँह फिरा लेते हैं, वे सच्चे मित्र नहीं होते। वे तो मात्र केवल मित्रता का ही ढोंग रचते हैं।
” भासुर बोला—“जीवन में सच्चे मित्र बड़ी कठिनाई से मिलते हैं। जो सच्चे मित्र पा लेता है, वह बड़ा भाग्यवान होता है। उसे विपत्तियाँ भी विपत्ति जैसी नहीं लगा करतीं। सुख-दुःख दोनों ही स्थितियों में उसके मित्र भागीदार होते हैं।”
“हमारी मित्रता ऐसी ही पक्की हो।” कहकर तीनों ने हाथ मिलाया। फिर सभी प्रसन्न मन से अपने-अपने घर लौट गए।