सिद्धांतवादी वर्नार्ड शॉ

सिद्धांतवाद की जीती-जागती मूर्ति का नाम है, जार्ज बर्नार्ड शॉ । वे आयरलैंड के माने हुए लेखक थे। उस देश में मांसाहार और सुरा-सुंदरी का साधारण प्रचलन है । बर्नार्ड शॉ ने इन तीनों से आजीवन बचे रहने का प्रयास किया और उसे पूरी तरह निभाया । उनकी आजीविका अच्छी थी । ख्याति भी विश्वव्यापी थी ।

एक युवती ने विवाह का प्रस्ताव रखा, तो उनने चकित होकर इसका कारण पूछा । युवती ने कहा- “मैं चाहती हूँ कि मेरी संतान मुझ जैसी सुंदर और आप जैसी विद्वान हो ।” शॉ समझ गए कि यह सुंदरी मुझे शब्दों के जाल में फँसाना चाहती है । उनकी आदर्शनिष्ठा बुद्धि ने तुरंत मार्ग खोजा ।

वे बोले-“देवी आप जैसा सोचती हैं यदि उसका ठीक उलटा हो गया तब कैसा होगा ? मुझ जैसा कुरूप और आप जैसी मूर्ख संतान भी तो हो ही सकती है ।” निरुत्तर होकर महिला लौट गई । शॉ अपने सिद्धांत पर अडिग रहे ।

शॉ ने जो भी कमाया सार्वजनकि कार्यों के लिए दान कर दिया । मरने के बाद उनके जनाजे में पशु-पक्षियों का जुलूस चले, ऐसी वे वसीयत कर गए । वे कहते थे कि पशु-पक्षियों का मांस मैंने कभी नहीं खाया और कुटुंबियों की तरह उन्हें माना है सो वे ही जनाजे के साथ चलने के अधिकारी हैं। उनकी विद्वत्ता, उनकी आदर्शनिष्ठा के सहारे ही इतनी निखरी और लोकप्रिय हुई ।

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