न्यायी राजा
अभयारण्य में प्रताप नाम का सिंह राज्य करता था। राजा को राजकार्य में सहायकों की, मंत्रियों की जरूरत होती ही है। प्रताप के भी अनेक मंत्री थे । प्रताप मंत्रियों का चुनाव बड़ा ही सोच-विचार कर करता था ।
जो अच्छे विचार वाला, सदाचारी, प्रजा का हित चाहने वाला होता था, वही प्रताप का मंत्री बन सकता था। प्रताप का विचार था कि जिनके जैसे साथी होते हैं, वैसे ही उनकी बुद्धि हो जाती है और वैसे ही काम करते हैं। अतएव साथी सदैव योग्य रखने चाहिये ।
प्रताप के मंत्रिमण्डल में न जाने कैसे चेतू नाम का एक सियार भी आ गया था । वास्तव में प्रताप उसे समझने में गलती कर गया था। वह बड़ा कपटी, स्वार्थी और धूर्त था, पर बाहर से बड़ा विनम्र और परोपकारी होने का ढोंग रचा करता था ।
यही कारण था कि प्रताप को धोखा हो गया था, पर सच्चाई भला कितने दिनों तक छिप सकती है। एक न एक दिन तो सामने आनी ही थी ।
कुछ शासक ऐसे होते हैं, जो दूसरों की बातों में आ जाते हैं । बिना परीक्षा किये ही उन पर विश्वास कर लेते हैं। वे अपनी आँख बन्द रखते हैं और कान खुले । परिणाम यह होता है कि वे सच्चाई नहीं देख पाते ।
ऐसे शासक अच्छे मित्रों से, सहायकों से दूर हो जाते हैं। उन्हें हर समय चापलूस, स्वार्थी और कामचोर घेरे रहते हैं और शासक को भी गुमराह कर देते हैं, पर प्रताप उनमें से न था । वह निष्पक्ष होकर अपने प्रत्येक मंत्री के गुण-दोषों का ध्यान रखता था ।
चेतू जानवरों की बुराई प्रताप से करता । प्रताप उसे सुन लेता था, बिना स्वयं परखे उस पर विश्वास नहीं करता था । चेतू सदैव प्रताप का विश्वासपात्र बनने का प्रयास करता ।
वह उसके आगे-पीछे घूमता, उसकी झूठी प्रशंसा करता, चापलूसी करता, पर प्रताप मन से इनसे प्रभावित नहीं होता था, मात्र सुन भर लेता था । प्रताप के दूसरे मंत्री और जासूस भी चेतू की निन्दा करते थे।
उन्होंने प्रताप को बताया था कि चेतू मंत्री होने का अनुचित लाभ उठाता है । वह प्रताप का नाम लेकर दूसरे जानवरों को डराता है, उनसे अपनी सेवा कराता है और चीज छीनता है, पर प्रताप ने उनकी एक बात पर भी पूरा-पूरा विश्वास न किया ।
उसने सोचा कि हो सकता है कि ये ही चेतू के विरुद्ध कोई षड्यंत्र रच रहे हों । बिना परखे हुए किसी को पहिचाना भी कैसे जा सकता है ? वे शासक को बिना स्वयं परखे दूसरों की बात पर पूरा विश्वास कर लेते हैं, सच्चाई जानने से वंचित ही रहते हैं ।
प्रताप ने चेतु पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी । और कोई होता तो अपनी झूठी प्रशंसा से ही खुश हो जाता, कभी उस पर शंका न करता, पर वह प्रताप था योग्य और गुणी शासक, जो सुयोग्य सहायकों को ही चाहता था, चापलूसों को नहीं ।
एक दिन प्रताप घनी झाड़ियों में विश्राम कर रहा था । संयोगवश झाड़ियों के बाहर पगडण्डी पर चेतू सियार भी आ बैठा । प्रताप चेतु को अपनी जगह से अच्छी तरह देख-सुन सकता था, पर चेतू को प्रताप के वहाँ होने का कुछ पता न था ।
प्रताप ने देखा कि पगडण्डी पर एक साही चली आ रही है । उसके पास बहुत से फल, कुकुरमुत्ते और मांस था । उन्हें देखकर चेतू के मुँह में पानी भर आया ।
उसने साही का रास्ता रोक लिया और बोला-‘ओह ! आजकल तुम बड़ी घमण्डी होती चली जा रही हो । राजा जी को कुछ उपहार भी नहीं देतीं । कई दिनों से उन्हें प्रणाम करने भी नहीं आर्यों । वह तुमसे बहुत नाराज हैं ।’
यह सुनकर साही घबरा गयी । बोली- ‘ओह चेतू भाई ! मेरा बेटा बीमार है इसलिये नहीं आ पायी, पर प्रताप जी को तो यह बात पता है ।’
चेतू उसके और निकट पहुँच गया और आँखें नचाकर बोला- ‘तुम तो जानती ही हो बहिन ! राजा आखिर होता है । वह किसी का भी कभी सगा नहीं होता ।उसे तो जैसे राजा ही भी हो प्रसन्न रखना ही चाहिये । नहीं तो न जाने कब, कैसे और कहाँ उसका गुस्सा सहना पड़े ।
यह सुनकर साही बड़ी परेशान हुई । बोली- ‘तुम्हीं बताओ मैं कया करूँ ? बच्चे की बीमारी से मेरा मन बड़ा परेशान है । कुछ सोच-समझ नहीं पा रही ‘
चेतू ने दिखाया मानो वह साही का कितना बड़ा हितैषी है । वह कहने लगा- ‘बहिन ! तुम्हारा दुःख देखकर मेरा कलेजा मुँह को आ रहा है । तुम्हारी सहायता करना मेरा कर्तव्य है । तुम ऐसा करो यह सामान मुझे दे जाओ । मैं तुम्हारी ओर से यह राजा प्रताप जी को दे दूँगा और उन्हें खुश करने की पूरी-पूरी कोशिश करूँगा ।’
साही ने निराश होकर अपना पूरा सामान चेतू को दे दिया । वह बोली- ‘मेरा बेटा चार दिन से भूखा है, बड़ी कठिनाई से मैं उसके लिये यह जुटा पायी थी ।’ ‘क्या किया जाय बहिन ! दुष्ट को शान्त तो करना ही होगा ।’
घेतू मुँह लटकाकर बोला । साही के पीठ फिरते ही चेतू ने उसका माल गपागप खाया । जो उसे अच्छा न लगा, वह वहीं फेंक दिया। फिर हाथ-मुँह साफ करके वहाँ से उठ खड़ा हुआ ।
चेतू को पता था कि साही अगले दिन भी उसी रास्ते से आयेगी । अतएव दूसरे दिन वह फिर वहाँ जाकर बैठ गया । उसके वास्तविक रूप को जानने के लिये प्रताप भी आया था । क्योंकि जो हम कहा करते हैं, उससे हमारा सच्चा परिचय नहीं मिलता । जो हम करते हैं, उससे हमारा वास्तविक रूप प्रकट होता है ।
अगले दिन जैसे ही साही आयी, चेतू बोला- ‘बहिन ! राजा तुमसे बहुत अधिक नाराज हैं । तुम्हारा उपहार देकर कल मैंने जैसे-तैसे उनका गुस्सा कम किया था। अभी तो उन्हें कुछ और दिया जाय तब कहीं जाकर राजा का गुस्सा दूर होगा ।
साही अपने हाथ के सामान को कसकर पकड़ते हुए बोली- ‘आज तो मैं कुछ भी देने से रही। कल मेरा बच्चा सारी रात भूख से तड़फता रहा और मैं असहाय-सी चुपचाप देखती
रही । यह राजा का प्रजा के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है ? अब और न सहूँगी मैं अत्याचार को ।’ चेतू बोला- ‘ठीक है तो फिर तुम्हीं जानो । उस आलसी राजा का गुस्सा जब सहना पड़ेगा, तब तुम्हें पता लगेगा ।’
साही चेतू की बात अनसुनी करके तेजी से आगे बढ़ गयी । चेतू अपने होठों पर जीभ ही फिराकर रह गया ।’ दूसरे दिन प्रताप का दरबार लगा हुआ था। सभी मंत्री बैठे-बैठे गम्भीर समस्याओं पर विचार कर रहे थे ।
चेतू बोला-‘महाराज ! बड़े अफसोस की बात है कि जंगल के प्राणी आपकी निन्दा किया करते हैं । वे आपके शासन संचालन की भी आलोचना करते हैं ।’
प्रताप ने शान्त भाव से पूछा- ‘कौन है वह प्राणी ?’ चेतू झुककर बड़ी ही विनम्रता से बोला- ‘राजन् ! मैं बहुत समय से सुन रहा हूँ कि रानी साही और उसका परिवार आपकी बुराई करता है । यही नहीं रानी जंगल के दूसरे प्राणियों को भी आपके विरुद्ध भड़काती रहती है ।’
‘इस अपराध का क्या दण्ड दिया जाना चाहिये ?’ प्रताप ने पूछा । ‘रानी को प्राण दण्ड दिया जाना चाहिये ।’ चेतू जल्दी से बोला । “नहीं, यह तो उचित नहीं है ।’ सारे मंत्री एक साथ बोले ।
‘तो फिर उसे परिवार सहित देश निकाला दे देना चाहिये ।’ चेतू बोला ।
‘ठीक है ।’ प्रताप ने गर्दन हिलाकर कहा । फिर उसने अपने अंगरक्षक भालू को इशारा किया । भालू ने तुरन्त चेतू को बन्दी बना लिया । चेतू सकपका गया । वह कुछ समझ न पाया। जोर-जोर से चिल्लाने लगा ।
तब प्रताप ने अपने मंत्रियों को चेतू की सारी करतूत सुनाई । वे सब कह रहे थे ‘महाराज ! हम तो इसकी करतूतें पहले से ही जानते थे ।’
तब तक भालू प्रताप की आज्ञा से रानी साही को भी वहीं बुला लाया था । आते ही रानी गिड़गिड़ाने लगी- ‘मेरा बेटा ठीक हो जायेगा तब मैं आपको ढेर सारे उपहार दूँगी, तब तक के लिये मुझे माँफ कर दीजिये ।
प्रताप की आज्ञा से धावक चीते ने रानी के सामने चेतू की सारी पोल खोल दी । साही बोली- ‘ओह ! तभी तो मैं कहती थी कि हमारे राजा तो ऐसे नहीं हैं ।’
तब तक प्रताप की आज्ञा से जंगल के सारे जानवर वहाँ इकट्ठे हो गये थे । प्रताप ने चेतू और उसके परिवार को तुरन्त अभयारण्य छोड़ने की आज्ञा दी । चेतू अपने कुकर्मों पर पछताता चुपचाप वहाँ से चल दिया ।
सारे जानवर जोरों से घुसपुस कर रहे थे । रानी जोर-जोर से कहने लगी- ‘मैं तो आपकी सदैव आभारी रहूँगी । सारे जानवरों की ओर से मैं आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ । आप जैसा सुयोग्य और विचारशील शासक पाना हमारे लिये गौरव की ही बात है । हमें विश्वास है कि हम सदैव आपसे न्याय ही पायेंगे ।’
सभी जानवर प्रताप की जय-जयकार करने लगे । वे कह रहे थे- ‘राजा को ऐसा ही न्यायी होना चाहिये ।’ उन सबकी बात सुनकर प्रताप ने मन ही मन में कहा- ‘भगवान करे मेरी यह सुबुद्धि सदैव बनी रहे । अच्छे काम करके मैं अपने साथियों से सदैव सम्मान पाता रहूँ ।’
प्रताप ने सभी को धन्यवाद दिया । सभा समाप्त हो गयी । राजा की प्रशंसा करते हुए सभी अपने घर लौट गये ।