बंदर की नादानी

उस बरगद के पेड़ पर बहुत से प्राणी रहते थे, पर वे सभी चुन्नू बंदर की शैतानी से बहुत ही तंग आ गए थे। बात भी तंग होने की ही थी। चुन्नू कभी पीछे से चुपचाप जाकर किसी बूढ़े बंदर की पूँछ खींचकर भाग जाता।

बंदर पीछे मुड़कर देखे, इतनी देर में चुन्नू गायब। कभी वह किसी डाल को जोर से हिला जाता। इससे घोंसले में बैठी चिड़ियों के नन्हे बच्चे जोर-जोर से डरकर चीं-चीं करने लगते। चिड़ियाँ उड़कर देखने आतीं कि क्या हुआ ?

इतनी ही देर में चुन्नू भाग खड़ा होता । सोनू गिलहरी के तो चुन्नू पीछे ही पड़ गया था। कभी कहता – “अरी छुटकी ! शीशे में अपना शरीर तो देख! भगवान ने तुझे कितनी छोटी सी देह दी है।” कभी कहता—“वाह! तू कैसी धारीदार, रोंयेदार है ? जैसे ओढ़ने का कंबल ही हो। “

चुन्नू की बातें सुनते-सुनते सोनी गिलहरी तंग आ गई। कभी- कभी उसका खून खौलने लगता। कभी-कभी वह सोचती थी कि इस दुष्ट को ऐसा सबक दूँ कि यह दूसरों को तंग करना ही भूल जाए, पर सोनी सोचकर मन मसोसकर ही रह जाती थी।

क्योंकि उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। वह जानती थी कि गुस्सा आने पर चुन्नू अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं देखता है। गुस्से में आकर यह बच्चों को बहुत परेशान कर सकता है।

बरगद के उसी वृक्ष पर एक वृद्ध लंगूर भी रहता था। वह इतना बूढ़ा था कि उसे न तो ठीक से कुछ दिखाई देता था, न वह कुछ काम ही कर सकता था। उसके हाथ-पैर काँपते रहते थे।

वह सारे दिन बैठा-बैठा भगवान का भजन करता रहता था। भगत लंगूर के नाम से वह सारे जंगल में प्रसिद्ध था। उस जंगल के सारे जानवर रोज शाम को बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठे हो जाते थे। भगत लंगूर सभी को उपदेश देता था ।

अच्छी-अच्छी बातें सिखाता था । भगत की इस सेवा के बदले पक्षी उसे अपने-अपने भोजन में से थोड़ा सा अंश निकालकर दे जाया करते थे। वह भी दिन में बस एक बार प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करता था। शेष भोजन वह वृक्ष के सभी पक्षियों में बाँट देता था ।

एक दिन भगत लंगूर बैठा भोजन कर रहा था कि तभी अचानक चुन्नू बंदर वहाँ से निकला। उसने देखा कि भगत के खाने में दो मोटे-मोटे रस भरे फूले-फूले मालपुए भी रखे हुए हैं। उन्हें देखकर चुन्नू के मुँह में पानी भर आया ।

वह समझ गया कि ये मालपुए जरूर कालू कौवे ने दिए होंगे। चुन्नू उससे मालपुए माँगता रहा, पर कालू कौवा उसे दिखा-दिखाकर सारे पुए चट कर गया था। चुन्नू ने गरदन घुमाकर चारों ओर देखा।

इस समय वहाँ कोई न था। बस फिर क्या था, वह अपने लालच को न रोक पाया। उसने चुपचाप भगत लंगूर के आगे से एक मालपुआ उठा लिया।

जैसे ही वह उसे मुँह में रखने वाला था कि उसने सुना कि सोनी गिलहरी जोर-जोर से चीख रही थी- ” चोर-चोर ! पकड़ो।” सोनी की पुकार पर सारे पक्षी वहाँ जमा हो गए थे। वास्तव में हुआ यह था कि सोनी चुपचाप पत्तों की आड़ में छिपी सारी बातें देख रही थी।

पक्षियों को सोनी गिलहरी ने सारी बातें बताईं कि किस प्रकार भगत के खाने से यह चुन्नू चोरी कर रहा था। यह सुनकर सभी पक्षी बड़े नाराज हुए, वे लगे चुन्नू को धिक्कारने । चुन्नू बेचारा शरम से गढ़ गया। मालपुआ उसके हाथ में धरा धरा रह गया।

तेजू बाज ने चलते समय अपनी लाल-लाल आँखें निकालकर चुन्नू से कहा कि अबकी बार यदि उसने ऐसा किया तो उसकी खैर न होगी, उसे बरगद के पेड़ से निकाल दिया जाएगा।

इतना अपमान और लज्जा चुन्नू ने कभी न पाया था। उसने दिनभर कुछ भी नहीं खाया । रातभर वह भूखा बैठा रहा । क्रोध से वह भुनता रहा। उसने सोनी गिलहरी से बदला लेने का निश्चय किया। क्योंकि उसके कारण ही चुन्नू को इतना अपमान सहना पड़ा था।

सोनी को इसकी आशंका पहले से ही हो गई थी। वह मधु- मक्खियों से गुपचुप न जाने क्या बातें कर आई थी।

सुबह सारे पक्षी अपने-अपने काम पर चले गए। चुन्नू बंदर ने देखा कि सोनी गिलहरी भी खाने की खोज में चली गई है। बस फिर क्या था? वह चुपचाप दबे पाँव आया। सोनी गिलहरी के घर की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

बरगद के पेड़ की एक छोटी सी खोह में सोनी का घर था। चुन्नू को पता था कि वहाँ उसके छोटे- छोटे बच्चे होंगे। चुन्नू सोच रहा था कि हाथ डालकर उन बच्चों को उस खोह से निकाल लेगा, पर यह क्या ?

चुन्नू का हाथ तो खोह से बाहर ही नहीं आ रहा था। अब चुन्नू ने ध्यान से देखा कि खोह का छेद तो बड़ा सँकरा था। चुन्नू ने उस पर बिना ध्यान दिए आवेश में हाथ डाल दिया। अब चुन्नू बड़ा परेशान हुआ कि हाथ कैसे निकाले ? अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि मधु मक्खियों ने आकर हमला कर दिया।

छत्ते से सहस्रों मधु मक्खियाँ निकलकर उस पर चिपट पड़ीं। अब चुन्नू का एक हाथ तो पेड़ की कोटर में फँसा था और एक हाथ से वह मक्खियाँ उड़ाता हुआ इधर-उधर उछलता-कूदता फिर रहा था। मधु मक्खियाँ उसे खूब काटती रहीं । छोड़ दो मुझे, अब मैं कभी भी किसी का बुरा नहीं करूँगा- कहते हुए चुन्नू रोने लगा।

तभी फुदकती हुई सोनी गिलहरी भी वहाँ आ गई। उसने देखा कि मधुमक्खियों ने चुन्नू को चारों ओर से घेर रखा है। वे उसे खूब काट रही हैं, तंग कर रही हैं। चुन्नू चीख रहा है, रो रहा है। यह देखकर सोनी गिलहरी का हृदय पसीज उठा।

उसने मधु मक्खियों से अनुनय की — “बहनो! अब इसे छोड़ दो। यह मना कर रहा है कि कभी किसी को नहीं सताएगा।”

हाँ-हाँ सच कहता हूँ। अब मैं किसी को तंग नहीं करूँगा। एक हाथ से अपना कान पकड़ते हुए चुन्नू बोला। मधु-मक्खियों की रानी ने अपनी सेना को कुछ आदेश दिया और सारी की सारी मधु-मक्खियाँ तुरंत ही वहाँ से चली गईं।

अब सोनी गिलहरी चुन्नू के पास आई। उसने अपने तेज दाँतों से पेड़ की कोटर काटनी शुरू की। बड़ी कठिनाई से तब चुन्नू का हाथ वहाँ से निकला। इतनी ही देर में चुन्नू का सारा शरीर सूज गया था।

मधु-मक्खियों ने बड़े जोर से काटा था। सोनी दौड़कर नीतू लोमड़ी के यहाँ से दवा लाई। उसे कई दिनों तक चुन्नू के शरीर पर लगाया, तब कहीं जाकर वह ठीक हुआ।

उस दिन से चुन्नू ने दूसरों का मजाक बनाना, उन्हें सताना छोड़ दिया है। अब वह सबकी सहायता किया करता है। सभी उसे बहुत प्यार करते हैं, उससे प्रसन्न रहते हैं।

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