चींटी और मधुमक्खी

गर्मियों के दिन थे। सूरज भगवान गुस्सा होकर मानो आग की वर्षा-सी कर रहे थे। जीव-जंतु सभी इस भीषण गर्मी से परेशान थे। परेशान मन्नू चींटी भी थी पर वह सुबह से लगातार काम कर रही थी।

इस भयंकर गर्मी के बाद निश्चित रूप से वर्षा होने वाली थी। मन्नू के बिल का सारा राशन समाप्त हो चुका था। अचानक ही एक सप्ताह के लिए उनके यहाँ खूब-सी मेहमान चींटियाँ जो आ गई थीं।

उनका सत्कार तो करना ही था। मेहमानों के आते ही सारी चींटियाँ राशन इकट्ठा करने के लिए जुट पड़ी थीं। यही कारण था, गर्मी में उनके सारा दिन काम करने का।

एक दिन मन्नू कार्य करते-करते अचानक बेहोश हो गई। न जाने वह कितनी देर तक ऐसे ही पड़ी रही। हो सकता है उसे मरी समझ कर कोई खा ही जाता, पर सहसा ही एक मधुक्खी की निगाह उस पर पड़ी। उसने देखा कि साँस चल रही है। मधुमक्खी पलभर में समझ गई कि गर्मी के कारण चींटी बेहोश हो गई है। वह सुबह से ही उसे लगातार काम करते हुए देख रही थी।

मधुमक्खी थी बड़ी दयालु । वह झट से गई और अपनी सूँड़ में पानी भर लाई। चींटी के मुँह में वह बार-बार पानी डालने लगी। थोड़ी-सी देर में मन्नू को होश आ गया। आँखें खुलीं तो उसने देखा कि उसके सिरहाने एक मधुमक्खी बैठी है, वही पानी पिला रही है।

कृतज्ञता से मन्नू की आँखों में आँसू भर आए। मधुमक्खी का हाथ, अपने हाथों में पकड़ कर वह बोली- बहिन तुमने मुझ अपरिचित की सहायता की है, प्राणों की रक्षा की है, मैं हृदय से तुम्हारी कृतज्ञ हूँ।”

‘धत् पगली ! हँसते हुए मधुमक्खी कहने लगी- दुःखियों की सेवा-सहायता तो सभी को करनी चाहिए। उसमें परिचय अपरिचय का भेद कैसा ? जो दीन-दुःखी, असहाय को सामने देखकर भी उसकी सहायता करने से झिझकता है, पहले परिचय- अपरिचय के रिश्ते ढूँढ़ता है, वह नीच है, दुष्ट है।’

मधुमक्खी के ऊँचे विचार सुनकर चींटी गद्गद् हो गई। वह कहने लगी- बहिन, सदा ही तुम्हारे यह सद्विचार बने रहें। तुम ऐसे ही सदैव पीड़ितों की सहायता करती रहो।’

‘अभी तुम थकी हुई हो, ज्यादा मत बोलो’ ऐसा कहकर मधुमक्खी ने चींटी को चुप कर दिया। फिर वह थोड़ा-सा शहद उसे देती हुई बोली-लो झपट इसे खा लो, जल्दी ही ठीक हो जाओगी।’

मन्नू चींटी प्रसन्नता और कृतज्ञता से भर उठी। उसने धीरे-धीरे शहद खाया। वह बड़ा ही मीठा और स्वादिष्ट था। उसे खाकर मन्नू जल्दी ही स्वस्थ हो उठी। फिर मन में कुछ सोचते हुए वह मधुमक्खी से बोली- ‘बहिन, क्या आज से तुम मेरी मित्र बनोगी ?”

मधुमक्खी स्वयं ही मन्नू से, उसके श्रम से बड़ी प्रभावित थी और उसे मित्र बनाना चाहती थी। वह अच्छी तरह जानती थी कि हम जैसे व्यक्तियों के साथ रहते हैं, धीरे-धीरे वैसे ही बनते चले जाते हैं। इसलिए सदा अच्छे व्यक्तियों को ही मित्र बनाना चाहिए।

वह हँसते हुए बोली- ‘बनेंगे क्या, बन ही गए। चलो इसी उपलक्ष्य में तुम्हारी दावत हो जाए।’ और हाँ, अपना नाम बताना तो गई मुझे रानी कहते हैं।’ भूल ही मन्नू के बहुतेरा ‘न न करने पर भी रानी नाम की वह मधुमक्खी उसे अपने छत्ते पर ले गई। वहाँ अनेक मधुमक्खियों ने उसका स्वागत किया। चलते समय उन्होंने मन्नू को ढेर-सा शहद दिया।

अब मन्नू और रानी नित्यप्रति मिलती थीं। उनकी मित्रता धीरे-धीरे घनिष्ठ होती चली जा रही थी। वे निस्संकोच एक-दूसरे से अपने सुख-दुःख की बातें कहतीं, एक-दूसरे से सलाह लेतीं। सच्चा मित्र सही सलाह देकर मित्र का उपहार ही करता है।

रानी प्रायः ही मन्नू को रोज शहद लाकर देती – ताजा और स्वादिष्ट शहद। मन्नू को रोज-रोज शहद लेते शर्म आती। पर रानी तुम्हें मेरी कसम है बहिन, यह तो तुम्हें लेना ही होगा।’ कहकर हर बार उसे शहद खिला ही देती। एक दिन मन्नू ने कहा- तुम तो रोज-रोज ही मुझे शहद खिलाती हो पर मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दे पाती क्या यह अच्छा लगता है ?

रानी गंभीर होते हुए बोली- ‘देखो बहिन, मित्रता व्यापार नहीं होती। तुम मुझे सच्चे हृदय से प्यार करती हो, वही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। घबराती क्यों हो, कभी तो समय आएगा ही जब तुम्हें मेरे लिए कुछ करने का अवसर मिलेगा। इन छोटी-मोटी चीजों के लेन-देन में भला क्या रखा है।

और जल्दी ही वह अवसर भी आ गया। एक दिन संध्या के झुटपुटे में थकी हुई मन्नू, पेड़ के नीचे विश्राम कर रही थी। उसी पेड़ पर रानी का छत्ता था। कुछ ही देर बाद मन्नू ने देखा कि वहाँ दो आदमी आ खड़े हुए। उनके हाथ में डंडे थे। वे बार-बार रानी के छत्ते की ओर इशारा करके कुछ कह रहे थे। मन्नू पल भर में ही सारी बात समझ गई।

वह वहाँ से तुरंत तेजी से दौड़ी और अपनी पूरी सेना बुला लाई । तब तक वे आदमी पेड़ पर चढ़ चुके थे और छत्ता तोड़ने ही वाले थे। सैकड़ों चींटियाँ उन आदमियों के शरीर पर चढ़-चढ़कर जोरों से काटने लगीं।

वे उछल-कूद करके तंग आ गए पर चींटियाँ थीं कि उनके शरीर पर यहाँ-वहाँ लगातार चढ़े ही चली जा रही थीं। ‘अरे बाप रे, चींटियों के समुंदर में यहाँ-कहाँ आ फँसे हम ! कहकर वे दोनों आदमी अपना-अपना शरीर झाड़ते कूद पड़े। हु वहाँ से

आदमियों की चीख-पुकार से तब तक रानी और दूसरी मधुमक्खियाँ भी जग गई थीं। वे सभी की सभी उन आदमियों पर टूट पड़ी। मन्नू ने उन्हें सारी बात बता दी थी। मधुमक्खियों ने उन मनुष्यों को खूब काटा और दूर तक पीछा किया, जिससे वे वहाँ दुबारा आने की बात भी न सोच सकें।

संकट की स्थितिदूर हो जाने पर रानी ने मन्नू को गले लगा लिया। फिर चैन से बैठकर उसने मन्नू से सारी बातें पता कीं । मन्नू और उसकी सहेलियों ने अपने प्राण संकट में डालकर भी मधुमक्खियों की रक्षा की थी।

रानी और दूसरी मधुमक्खियों ने उनका बहुत-बहुत आभार माना। फिर रानी ने सभी चींटियों को शहद की जोरदार दावत खिलाई। रानी हँसकर मन्नू से पूछने लगी- ‘कहो, अब तो तुम्हें हमारे लिए जी भरकर कुछ करने का अवसर मिल गया न ! तुम तो रोज-रोज इसी चिंता से दुबली हुई जाती थीं ‘

रानी की इसी बात पर सभी चींटियाँ और मधुमक्खियाँ भी हँस पड़ीं। एक बूढ़ी मधुमक्खी कहने लगी- बेटी, सच्चे मित्र से सहायता माँगनी नहीं पड़ती। वह तो सहायता के अवसर ढूँढ़ता रहता है और बिना कहे ही मित्र की सहायता करता है।’

मधुमक्खियों की रानी उसकी बात का समर्थन करते हुए बोली- हाँ काकी, ठीक ही कहती हो तुम। इसके विपरीत दिखावटी मित्रता वाला झूठा मित्र तो सहायता का अवसर देखकर मुँह छिपा लेता है।

मित्र की विपत्ति की बात जानकर भी वह ऐसे दीखता है जैसे उसे कुछ पता ही नहीं है।’ ‘ओह, संकट की घड़ी में ही तो हम अपने मित्र, परिचित और संबंधियों की परख कर पाते हैं, एक मधुमक्खी गंभीरता पूर्वक बोली ।

रानी मधुमक्खी कहने लगी- ‘त्याग और बलिदान ही प्रेम की कसौटी है। हमारे स्नेहीजन हमें कितना चाहते हैं इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि वे हमारे लिए कितना कष्ट सहने को, किंतना त्याग करने को तैयार रहते हैं।

मन्नू बहिन, हम सब धन्य हैं जो तुम्हारा और तुम्हारे माध्यम से तुम्हारी सभी बहिनों का सच्चा स्नेह पा सके हैं रानी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सारी मधुमक्खियों ने सिर हिला-हिलाकर जोरों से पंख फड़फड़ाकर उसकी बात का समर्थन किया।

विनय से सिर झुकाकर मन्नू बोली- ‘ओह, यह तो हमारा कर्त्तव्य था। क्या हम आपके लिए इतना भी नहीं करते ?”

रानी कहने लगी- ‘संकट की घड़ी ने हमारी मित्रता को और अधिक निखार दिया है।’

फिर से एक बार सभी मधुमक्खियों ने कृतज्ञता व्यक्त की और मन्नू तथा उसकी सहेलियों की प्रशंसा करते हुए वे अपने छत्ते की ओर बढ़ चलीं।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *