मलीन पोखरी

दो छोटी-छोटी पोखरी थीं, इसका पानी उसमें, उसका पानी इसमें होता रहता था । कोई प्रयोग नहीं करता था । पानी में काई, कीड़े पड़ गए थे ।

उनका दु:ख सुनकर भी प्रभु ने कहा- ” पूर्व जन्म में यह सगी बहनें भी थीं और देवरानी-जेठानी भी । दोनों ही स्वार्थिनें थीं । कोई दान- पुण्य परमार्थ के लिए कहे तो बड़ी बहन, छोटी बहन को दान का सबसे श्रेष्ठ पात्र कहकर उसे दे आती थी । दोनों की स्वार्थ भावना अपने साधन अपने ही अधिकार क्षेत्र में रखने के ताने-बाने बुनती रहती थीं । वही प्रवृत्ति उनके साथ अभी भी लगी है । पानी उनकी स्वार्थ भावना जैसा ही दुर्गंध युक्त हो गया है। एक दूसरे की सीमा में ही चक्कर काटता है । स्वार्थ के ऐसे ही परिणाम निकलते हैं ।”

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *