रामकृष्ण परमहंस की विनम्रता और सादगी

डा० महेन्द्रनाथ सरकार कलकत्ता के प्रख्यात और संपन्न चिकित्सक थे । वे रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए । परमहंस जी बगीचे में टहल रहे थे । उन्हें माली समझा गया और कहा-‘ऐ माली, थोड़े से फूल तो लाकर दे । परमहंस जी को भेंट करने हैं।”

उनने अच्छे अच्छे फूल तोड़कर उन्हें दे दिए । थोड़ी देर में परमहंस जी सत्संग स्थान पर पहुँचे । डा० सरकार उनकी विनम्रता पर चकित रह गए। जिसको माली समझा गया था वे ही परमहंस जी निकले । यह एक सबसे बड़ी विशेषता देव मानवों की होती है कि वे स्वयं जिस परमार्थ कार्य को हाथ में लेते हैं, यह देख लेते हैं कि उसका सुनियोजन होगा अथवा नहीं । सत्परामर्श द्वारा अपनी ब्राह्मण वृत्ति की शिक्षा अन्यान्यों को भी देकर सन्मार्ग का पथ प्रशस्त करते हैं ।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर से एक लड़के ने एक पैसा माँगा जिससे वह अपना पेट भर ले । पूछा-“दो पैसा दूँ तो ?” तब एक पैसे के चने अपनी बूढ़ी माता के लिए ले जाऊँगा ।” फिर पूछा गया कि एक रुपया दूँ तो ?” बच्चे ने कहा- “तब बाजार में घूम कर सामान बेचूँगा और स्वावलंबन पूर्वक आजीविका चलाऊँगा ।” विद्यासागर ने उसे एक रुपया दे दिया । बहुत दिनों बाद वे उधर से निकले तो देखा कि एक युवक छोटी दुकान चला रहा है। युवक ने उन्हें पहचान लिया और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा- “यह आपके ही अनुदान का प्रभाव है कि भीख सदा के लिए छूट गई ।

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