स्नेह की शक्ति
छोटू और मोती खरगोश दोनों घूमने निकले। उनकी माँ कहने लगी – ” बच्चो ! बहुत दूर तक मत जाना। बहुत जल्दी ही घर वापस आ जाना।”
“माँ तुम हमारी चिंता न करना।” हम जल्दी ही घर वापस आ जाएँगे। छोटू ने कहा । छोटू और मोती दोनों अभी छोटे थे। इसलिए उनकी माँ
उन्हें अकेले घूमने कम ही भेजा करती थी। दोनों घूमते-घूमते गाजर के खेत में घुस गए। लाल-लाल गाजर देखकर दोनों बड़े खुश हुए और जल्दी-जल्दी गाजर खाने लगे। वे खाते भी जाते थे और चारों ओर देखते भी जाते थे ।
मीता लोमड़ी ने छोटू और मोती दोनों को खेत में घुसते हुए देख लिया था। मोटे-ताजे खरगोश देखकर मुँह में पानी भर आया। ‘आज तो सुबह-सुबह बड़ी अच्छी दावत हो गई। उसने मन ही मन कहा और अपनी मूँछों पर हाथ फिराया।’
मीता चुपके-चुपके दबे पाँव छोटू के पीछे जा पहुँची। वह अभी उसे पकड़ने के लिए लपकी ही थी कि सामने बैठे मोती ने मीता को देख लिया। तुरंत उसने छोटू को अपनी ओर पकड़कर खींचा और वे वहाँ से भाग छूटे।
छोटू और मोती के दिल जोर-जोर से धड़क रहे थे । वे तेजी से भागते ही जा रहे थे, पर मीता लोमड़ी भी शिकार हाथ से छूट जाने से खिझलाई हुई थी। वह भी बराबर उनके पीछे ही दौड़ रही थी। दोनों बार-बार पीछे मुड़कर देख लेते और फिर दौड़ने लगते।
छोटू और मोती दोनों गीली घास पर दौड़ रहे थे। मीता लोमड़ी को भीगी घास पर दौड़ने का अभ्यास न था, इसलिए वह पीछे रह गई। भागते-भागते छोटू और मोती दोनों नदी के किनारे पहुँचे। थोड़ी देर बैठकर दोनों सुस्ताए ही थे कि तभी उनकी दृष्टि दूर से आती मीता पर पड़ी।
‘अब क्या करना चाहिए ?” छोटू ने कहा। “घबराने से तो काम चलेगा नहीं भाई। हमें धैर्यपूर्वक अपने बचाव का उपाय सोचना है। जो आपत्ति आने पर घबरा उठते हैं, वह कभी उन पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते ?” मोती बोला ।
तभी सहसा मोती की निगाह घास में बने एक गड्ढे पर गई । “चलो ! हम दोनों इसमें छिप जाते हैं।” मोती ने छोटू से कहा।
दोनों तुरंत जाकर गड्ढे में बैठ गए। ऊपर से उन्होंने गड्ढे को घास से ढक लिया, जिससे वे बिलकुल दिखाई न पड़ें। मीता लोमड़ी वहाँ आई तो चारों ओर देख-देखकर थक गई,
पर कहीं भी उसे छोटू और मोती दिखाई नहीं पड़े। वह बड़ी निराश हुई। दुखी मन से वापस लौटने लगी। वह बार-बार अपने को धिक्कारती जा रही थी- “कैसी अभागी हूँ मैं ? दो-दो मोटे-ताजे शिकार खो बैठी। एक को भी पकड़ न पाई ।”
निराश और खीझ भरे विचार से सदैव शक्ति का ह्रास ही होता है।
मीता का पैर भी चलते-चलते एक गड्ढे में जा फँसा और वह मुँह के बल गिर पड़ी। गिरने से उसके पैर की हड्डी टूट गई। मीता ने उठने की लाख कोशिश की, उसका पैर जमीन पर सीधा रखा ही नहीं जा रहा था।
अब मीता लोमड़ी अपनी सहायता के लिए चिल्लाने लगी – ” अरे ! जो भी यहाँ पर हो, वह मुझ पर पड़ी विपत्ति में सहायता करे।”
उसकी आवाज छोटू और मोती ने भी सुनी। छोटू बोला-“लगता है मीता लोमड़ी मुसीबत में फँस गई है। ” “मुसीबत में पड़े की सहायता करना हमारा धर्म है। चाहे वह शत्रु हो या मित्र ।” मोती बोला।
“चलो! चलकर देखते हैं कि हम क्या सहायता कर सकते हैं।” छोटू ने भी अपना सिर हिलाते हुए कहा।
दोनों ने जाकर देखा तो लोमड़ी पड़ी कराह रही थी। छोटू और मोती को देखते ही बोली – ” भाइयो! अब मैं तुम्हें कभी नहीं सताऊँगी। मेरी सहायता करो। “
मोती बोला- “वायदा करो कि आज से तुम हम जैसे छोटे जीवों को नहीं सताओगी।” “तुम ठीक कहते हो। दीन-दुर्बल प्राणियों को सताना कोई
अच्छी बात नहीं।” मीता लोमड़ी बोली । छोटू और मोती जाकर डॉक्टर को बुला लाए। उसने घास रखकर लोमड़ी के पैर पर पट्टी बाँधी, जिससे वह चलने-फिरने लायक हो जाए।
“धन्यवाद भाई छोटू और मोती। तुमने मुझे शिक्षा दी है कि आपत्ति में पड़े हुए की बैर भाव भूलकर भी रक्षा करनी चाहिए। तुम आज यदि मेरी सहायता न करते तो मैं न जाने कब तक पड़ी कराहाती रहती। मैं भी आज प्रतिज्ञा करती हूँ कि सदैव दूसरों की सहायता किया करूँगी।” मीता लोमड़ी ने कहा।
“यदि तुम्हारा मन बदल गया तो हमारी सेवा-सहायता सार्थक हो गई।” मोती बोला। मोती और छोटू दोनों खुशी-खुशी अपने घर वापस आ गए। स्वार्थी मीता लोमड़ी की भावनाओं को बदलने में उन्हें सफलता मिली है, यह सोच-सोचकर वे रास्ते भर प्रसन्न होते गए।
छोटू खरगोश बोला- “देखा ! तुमने मोती भाई। किसी को डाँट-डपटकर नहीं, वरन स्नेह और सद्भावना सकते हैं। ”
मोती कहने लगा—“हाँ! तुम ठीक कहते हो, प्यार और से बदल भाईचारे से सभी कुछ संभव है।”