सबक

अमित के स्टोर की टाँड़ पर सोनी कबूतरी ने अपना घोंसला बनाया था। टाँड़ पर बहुत सा सामान भरा पड़ा था। एक बिस्तरबंद के पीछे, खिड़की के सहारे, सोनी ने कुछ आड़े-तिरछे तिनके रख लिए थे।

वहीं उसने दो अंडे दिए। सोनी कबूतरी और मोना कबूतर दोनों बारी-बारी से अंडों की देख-भाल करते ।

थोड़े दिन में ही अंडों से प्यारे-प्यारे दो बच्चे निकले। सोनी और मोना बच्चों को देखकर प्रसन्न होते। धीरे-धीरे वे बच्चे बड़े होने लगे। उनके छोटे-छोटे पंख भी निकल आए। अब उनकी भूख भी बढ़ गई थी, इसलिए सोनी और मोना अधिकतर बाहर रहने लगे। वे सुबह ही खाने की तलाश में निकल जाते ।

थोड़ी-थोड़ी देर बाद वे अपनी चोंच में खाने-पीने का सामान भरकर लाते। खिड़की के रास्ते से अंदर जाते। दोनों बच्चे अपनी छोटी-छोटी, लाल-लाल आँखें खोलकर देखते। माता-पिता को देखते ही वे खुशी से भर उठते और खुशी से चीं-चीं करके चिल्ला उठते।

सोनी या मोना उनकी चोंच में अपनी चोंच से दाना रखते। बच्चे उसे खाने को लपकते। उसके मुँह में दाना रखकर माता-पिता बाहर खाने की तलाश में निकल जाते। क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे।

सोनी और मोना की चोंच में थोड़ा सा खाना आता था। उससे उनका पेट नहीं भरता था। इसलिए उन्हें बार-बार जाना पड़ता था।

एक दिन की बात है, सोनी और मोना भोजन की तलाश में दूर निकल गए। इधर दोनों बच्चों को भूख लगी। बड़ा बच्चा बोला- “चलो ! आज हम खुद दाना तलाशते हैं।”

छोटा कहने लगा- भैया! माँ कहती है कि अभी हमारे पंख छोटे-छोटे हैं। उन्होंने हम से मना किया है कि यहाँ से कहीं उड़कर न जाएँ।

बड़ा बच्चा कहने लगा—“माँ तो ऐसे ही डरती हैं। वे भी हमें बहुत छोटा समझती हैं। देखो! खिड़की से झाँककर बाहर की दुनिया कितनी सुंदर है। मैं तो खुद आसमान में उड़ानें भरने को आतुर हूँ। चलो! हम आज बाहर चलें। “

“पर भाई माँ सुनेंगी तो नाराज होंगी, कहेंगी कि तुमने हमारा कहना नहीं माना। मैं तो माँ की आज्ञा का पालन करूँगा। जब तक वे नहीं कहेंगी, मैं यहाँ से उड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।”

“तो ठीक है। मैं आज अकेले ही सैर करके आऊँगा।” बड़े बच्चे ने कहा। फिर उसने अपने पंख फड़फड़ाए और स्टोर के दरवाजे से बाहर आ निकला।

कबूतर का बच्चा थोड़ी सी ऊँचाई पर कुछ देर ही उड़ पाया। जल्दी ही थक गया। उधर कमरे में अमित और उसके दोस्त भी आ गए। उन्होंने कबूतर के बच्चे को उड़ाया और कमरे में भगाना शुरू कर दिया।

एक कमरे से दूसरे कमरे में उड़ते-उड़ते वह तंग आ गया। अब तेजी से वह उड़ भी नहीं पा रहा था। अब उसकी समझ में आ रहा था कि माँ ने घोंसले से बाहर निकलने के लिए क्यों मना किया था।

काफी देर बाद बड़ी मुश्किल से कबूतर का बच्चा स्टोर में आ पाया। वह बच्चों के हुड़दंग से रास्ता भूल गया था। बच्चों ने कपड़ा मार-मारकर स्टोर की ओर भगाया था। उसके अंगों पर कई बार कपड़े की मार भी पड़ चुकी थी। उसके सारे शरीर में दरद हो रहा था ।

जैसे-तैसे कबूतर का बच्चा अपने घोंसले में पहुँचा। सोनी कबूतरी दाना लेकर अब वहाँ पहुँची थी। छोटे बच्चे ने सोनी को सारी बातें बता दीं।

कबूतर के बड़े बच्चे ने घोंसले में माँ को बैठे देखा । शरम के कारण उसकी गरदन झुक गई। उसने माँ का कहना जो नहीं माना था। वह बोला—“माँ! मैंने नादानी में तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन किया है। आज ठोकर खाकर मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि तुम हमारे भले के लिए ही हमें टोकती हो। बहुत से काम करने को मना करती हो। आज मैं बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आया हूँ।”

सोनी कबूतरी ने अपनी चोंच का खाना बड़े बच्चे के मुँह में रखते हुए कहा- “बेटा! जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे सदैव आपत्ति में पड़ते हैं। तुम्हारी शक्तियाँ अभी सीमित हैं। तुम्हारा अनुभव अभी कम है, इसलिए बड़ों की बात मानकर काम करो। “

बड़े बच्चे की समझ में माँ की बात आ रही थी । गुटरगूँ-गुटरगूँ करके उसने माँ की बात का समर्थन किया। सोनी कबूतरी ने कई दिनों तक बड़े बच्चे की मालिश की, तब कहीं जाकर वह ठीक हुआ। इसके बाद फिर उसने कभी अपनी माँ की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया।

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