समाज के शत्रु

दंडकारण्य में जब सिंहों का राजा मर गया तो उन्होंने नए राजा का चुनाव किया। दिवाकर को सभी सिंहों ने अपना राजा चुना । नए पद पर आकर दिवाकर ने सोचा कि अब मुझे इनके विश्वास की रक्षा करनी चाहिए, मुझे अपना अधिक से अधिक समय प्रजा की भलाई में ही व्यतीत करना चाहिए।

दिवाकर ने अपने राज्य की सर्वांगीण प्रगति के लिए अनेक योजनाएँ बनाईं। उन योजनाओं की पूर्ति करने और कराने के लिए उसे अनेक राजकर्मचारियों की नियुक्ति की आवश्यकता अनुभव हुई। उसने पूरे जंगल में यह घोषणा करा दी कि कल महाराज मंत्रियों और अन्य राजकर्मचारियों की नियुक्ति करेंगे। अतएव जंगल के सभी जानवर प्रातः १० बजे नदी के पास उत्तर दिशा वाले मैदान में इकट्ठे हो जाएँ ।

दिवाकर राजकर्मचारियों के चुनाव को लेकर कुछ चिंतित-सा था। यह बात वह बहुत अच्छी तरह जानता था कि राजकर्मचारी राजा की बहुत बड़ी शक्ति होते हैं। राजा इन्हीं के माध्यम से राजकार्य चलाता है।

वे जैसा अच्छा या बुरा काम करते हैं वैसे ही विचार प्रजा राजा के विषय में बना लेती है। ईमानदार और कर्त्तव्य परायण ही राज्य की उन्नति करते हैं। भ्रष्ट और चरित्रहीन राजकर्मचारी तो राजा को पूरे के पूरे राजतंत्र को बदनाम ही कर दिया करते हैं।

दिवाकर ने राजकर्मचारियों का खूब सोच-समझकर, ठोक-बजाकर चुनाव किया था। उसे अपनी निरीक्षण शक्ति पर दूसरों को परखने के गुण पर विश्वास था । दिवाकर का यह विश्वास काफी सीमा तक सही भी सिद्ध हुआ । उसके अधिकांश मंत्री और कर्मचारी बड़े ही परिश्रमी, ईमानदार और प्रजा के हित के लिए निरंतर जुटे रहने वाले थे।

राजकर्मचारियों के उस समूह में भूल से एक धूर्त गीदड़ भी आ गया था। गलती इसमें दिवाकर की भी नहीं थी। वह गीदड़ जग्गू बात करने में बड़ा ही कुशल था। उससे बातें करते समय लगता था कि वह बड़ा ही योग्य और ज्ञानी है। उसकी व्यावहारिकता और बात करने की कला दूसरों को बड़ी जल्दी प्रभावित कर लेती थी। उसकी बातें सुनकर लगता था कि वह न जाने कितना आदर्शवादी है।

पर अंदर से जग्गू इससे बिलकुल भिन्न था। वह बड़ा ही धूर्त, कपटी और आलसी था। जब उसने देखा कि महाराज दिवाकर और प्रजा दोनों ही उस पर विश्वास करने लगे हैं तो अपना वास्तविक रूप दिखाना प्रारंभ किया। अब वह काम बहुत थोड़ा नाम मात्र को करता था।

सारे दिन वह आराम करता और छोटे-छोटे जीव-जंतुओं से अपनी सेवा कराया करता। जब चाहे किसी को डरा धमकाकर उसका माल हड़प जाता। जग्गू चाहे किसी को अपमान कर देता, चाहे किसी पर अपना रौव गाँठने लगता।

यह तो महाराज का विश्वासपात्र है उनसे न जाने कब जाकर क्या कह दे इस भय से उसके सामने कोई नहीं बोलता था। इसका परिणाम यह हुआ कि जग्गू और अधिक मनमानी करने लगा। अत्याचारी का यदि विरोध न किया जाए तो उसे और शोषण करने के लिए बढ़ावा मिलता ही है।

दूसरे कर्मचारियों को प्रारंभ में ही जग्गू के सारे दुर्गुण तो पता नहीं लगे पर उसकी कामचोरी की आदत ही उनके सामने आ गई। उन्होंने कई बार जग्गू को टोका भी कि तुम ठीक से काम किया करो, पर जग्गू उनकी बात कानों पर उतार देता।

एक दिन मंत्री गजराज ने जब जग्गू को कामचोरी के लिए डाँटा तो जग्गू भड़क उठा।’ तुम कौन होते हो मुझे टोकने वाले ?’ उसने बड़ी ही धृष्टता से कहा। गजराज ने उसके मुँह लगना उचित न समझा।

जग्गू के स्वभाव का प्रभाव अब कुछ दूसरे जानवरों पर भी पड़ने लगा था, वे भी उसी की भाँति कामचोरी करते, खाते और पड़े रहते। कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। फिर यह सूचना महाराज दिवाकर के पास भी पहुँची। उन्हें कर्मचारियों के विषय में जब यह बात पता लगी तो उनको बड़ा दुःख हुआ ।

दिवाकर ने स्वयं इस विषय की जाँच पड़ताल की और इस बात को सच पाया। तब उन्होंने जग्गू और सभी कामचोर जानवरों को काम से निकाल दिया। यही नहीं अपितु दो दिन के अंदर उन्हें जंगल छोड़कर चले जाने का आदेश भी सुना दिया।

गजराज और अन्य मंत्रियों ने महाराज दिवाकर से अनुरोध भी किया कि वे जग्गू और अन्य कर्मचारियों को इतना कठोर दंड न दें। पर दिवाकर ने भयंकर गर्जना करते हुए कठोर स्वर में कहा ‘मुझे कामचोर रिश्वत लेने वाले कर्मचारी बिलकुल भी पसंद नहीं। ये राजद्रोही हैं, इन्हें तो जितना दंड दिया जाए, उतना ही कम होगा।

बुरे विचार वाले, बुरी आदतों वाले व्यक्ति का समाज से हटाया जाना ही अच्छा है। ऐसा व्यक्ति न केवल स्वयं बुरे विचार रखता है अपितु अपने संपर्क में आने वाले अन्यों में भी उस विचार का प्रसार करता है।

यह हमारे स्वभाव की विशेषता होती है कि दूसरों की अच्छाई तो हम देर से ग्रहण कर पाते हैं पर बुराई जल्दी ही सीख लेते हैं। इसीलिए तो अच्छे व्यक्तियों की संगति को इतना महत्त्व दिया जाता है। महाराज, बात तो ठीक ही है आपकी। गजराज तथा अन्य मंत्रियों ने कहा।

जग्गू और दूसरे जानवर दिवाकर के सामने बहुत गिड़गिड़ाए कि अब वे ऐसा कार्य नहीं करेंगे। पर दिवाकर ने स्पष्ट ही कह दिया- ‘यह दंड तो भुगतना ही होगा। हाँ, यह हो सकता है कि यदि तुम अपनी गलतियाँ सुधार लो तो परीक्षा लेने के बाद तुम्हें फिर इस जंगल में रहने की अनुमति मिल सकती है।’

हारकर जग्गू और उसके साथी अपना सा मुँह लेकर उस जंगल में चले गए।

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