महानता का मापदंड

“क्या तुम मेरे समान शक्ति नहीं चाहतीं ?”-यह कहकर ‘आँधी’ अपनी छोटी बहन मंदवायु की ओर देखने लगी ।

कुछ उत्तर न पाकर वह फिर कहने लगी- “देखो, जिस समय मैं उठती हूँ, उस समय दूर-दूर तक लोग तूफान के चिह्नों से मेरे आने का संवाद चारों ओर फैला देते हैं। समुद्र के जल के साथ ऐसा किलोल करती हूँ कि पानी की लहरों को पर्वत के समान ऊपर उछाल देती हूँ। मुझे देखकर मनुष्य अपने घरों में घुस जाते हैं, पशु-पक्षी अपनी जान बचाकर भागते-फिरते हैं। कमजोर मकानों के छप्परों को भी उड़ा कर फेंक देती हूँ; मजबूत मकानों को पकड़ कर हिला देती हूँ। मेरी साँस से राष्ट्र के राष्ट्र धूल में मिल जाते हैं। क्या तुम नहीं चाहतीं कि तुममें भी मेरे सामन शक्ति आ जाय ?”

यह सुनकर वसंत की मंदवायु ने कुछ उत्तर न दिया और अपनी यात्रा को चल पड़ी । उसको आते देखकर कर नदियाँ, ताल, जंगल, खेत सभी मुस्कराने लगे । बगीचों में तरह-तरह के फूल खिल उठे । रंग-बिरंगे फूलों के गलीचे बिछ गए । सुगंधि से चारों ओर का वातावरण भर गया । पक्षीगण कुंजों में आकर विहार करने लगे । सभी का जीवन सुखद हो गया ।

इस तरह से अपने कार्यों द्वारा वसंत वायु ने अपनी शक्ति का परिचय आँधी को करा दिया।

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