पक्षियों की पंचायत
अमरकण्टक जंगल में पीपल के एक पेड़ पर बहुत से पक्षी रहा करते थे । चित्रग्रीव कबूतर, सोनी चिड़िया, हरियल तोता मानी मैना, नन्दा कौवा एवं और भी अनेकों पक्षी वहाँ आ सभी अपने-अपने घर का काम पूरा करके वहाँ आते थे । खाली समय में वे आपस में बतियाते थे ।
एक दिन मानी मैना बोली- ‘हम यों आपस में बातें करते रहते हैं, उसमें बहुत-सा समय यों ही बीत जाया करता है । क्यों न खाली समय में कुछ काम ही सीखा जाये ।’
मानी की यह बात सभी पक्षियों को बहुत पसन्द आयी । चिताग्रीव कबूतर ने अपनी गर्दन हिलाकर, सोनी चिड़िया ने पंख फड़फड़ाकर, हरियल तोता ने टें टें करके और नन्दा कौवे ने काँव-काँव करके उसकी इस बात का समर्थन किया ।
अब सभी आपस में मिलकर यह विचार करने लगे कि क्या काम सीखा जाये जिससे खाली समय का उपयोग हो । तय यह हुआ कि हर पक्षी एक-एक दिन सभी को काम सिखायेगा ।
सबसे पहले चित्रग्रीव कबूतर की बारी आई । चित्रग्रीव बोला- ‘भाइयो और बहिनो ! मैं चाहता हूँ कि आज तेज उड़ने का अभ्यास किया जाये। कई बार ऐसा होता है कि तेज न उड़ सकने के कारण हम शत्रु के मुँह में फँस जाते हैं ।’ और उस दिन मानी मैना की बारी आयी ।
वह बोली- ‘आज मैं आप सभी पक्षियों को आदमियों की बोली में बात-चीत करना सिखाऊँगी ।’
मानी मैना ने सभी को आदमियों की भाषा में बात करना सिखाया, पर बस एक हरियल तोता ही ऐसा था जो मानी का पाठ सीख सका । उस दिन हरियल तोता को प्रथम स्थान मिला ।
तीसरे दिन हरियल तोता की बारी आयी वह बोला- ‘मित्रो! मैं आज आप सभी को भगवान का भजन करना सिखाऊँगा । मैं आज जब उड़ते-उड़ते नगर के पास से निकल रहा था तो मैंने एक मन्दिर से इस मन्त्र की आवाज सुनी थी- ‘ॐ भूर्भुवः स्वः….।’ मन्दिर में इकट्ठे आदमी कह रहे थे कि इस मन्त्र का जप करने से बुद्धि शुद्ध होती है, विपत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं ।
चित्रग्रीव कबूतर, सोनी चिड़िया, हरियल तोता आदि सभी पक्षियों ने मिलकर, अपने-अपने स्वरों को मिलाकर कहा – ‘ॐ भूर्भुवः स्वः ।’
फिर नन्दा कौवा हँसते हुए बोला- ‘लगता है तोतेराम ! तुम हम सबको पण्डितजी बनाकर छोड़ोगे । पर ध्यान रखना कि बगुला भगत की भाँति मत बनना ।’ कौवे की इस बात पर सभी पक्षी जोर से हँस पड़े ।
अगले दिन नन्दा कौवे की बारी थी । कौवा कहने लगा- ‘भाइयो और बहिनो ! मेरा अपना अनुभव है कि प्रसन्न
रहने के लिये गाना गुनगुनाना आवश्यक है । इसलिये में आज आप सभी को गाना सिखाना चाहता हूँ ।’ कौवे ने काँव-काँव करके किसी गीत की पहली पंक्ति गाई । फिर सभी से दुहराने के लिये कहा ।
‘माफ करना कौवे भाई ! तुम्हारी आवाज तो बड़ी कठोर है । गाना सिखाने के लिये तो मीठी आवाज चाहिये ।’ हरियल तोता कह रहा था । ‘हाँ भाई ! आज गला कुछ खराब-सा मालूम पड़ता है । सर्दी-जुकाम का कुछ असर हो गया लगता है ।’
अपने पंजे से गले को पकड़कर कौवा बोला । ‘अरे ! आज तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है तो रहने भी दो । मत सिखाओ आज गाना, फिर कभी सिखा देना ।’ सभी पक्षी एक स्वर में कहने लगे ।
तभी नन्दा कौवे की नजर कलिया कोयल पर पड़ी । वह उड़ते-उड़ते अभी-अभी पास के आम के पेड़ पर आ बैठी थी । वह बहुत अच्छी गायिका थी । पूरे अमरकण्टक वन में | उसके बराबर अच्छा कोई नहीं गाता था ।
नन्दा कौवा बोला- ‘कलिया दीदी ! हमने तुम्हारे गाने की बड़ी प्रशंसा सुनी है । आज तुम इन सभी पक्षियों को अच्छा-सा गाना सिखा दो ।’
.. कलिया कोयल अपनी प्रशंसा सुनकर घमण्डी हो गयी थी । नन्दा की बात सुनकर बोली- ‘हुँ-हुँ ! अभी तो मैं थकी हूँ। अभी तो आकर यहाँ बैठी हूँ, भूखी भी हूँ । थोड़ा सुस्ता लूँ और कुछ खा-पी लूँ । तब मैं तुम्हारी कोई बात सुनूँगी ।’
‘अरे दीदी ! तुम भूखी हो तो पहले से तुमने क्यों नहीं बताया ? हम भी तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेकर आते हैं ।’ वे सारे के सारे पक्षी कहने लगे ।
हरियल तोता उड़ा और एक मीठा-सा अमरूद लेकर आया । चित्रग्रीव कबूतर अनाज के दाने लाया । नन्दा कौवा मिठाई का एक टुकड़ा लाया । सोनी चिड़िया रोटी लाई । कलिया कोयल ने उस दिन खूब छककर खाना खाया ।
खाना खाने के बाद वह बोली- ‘अब मुझे नींद आ रही है । मैं थोड़ा-सा सोऊँगी ।’
‘अच्छा दीदी ! तुम सो जाओ । हम सभी तुम्हारे जगने की प्रतीक्षा करेंगे ।’ सब पक्षी कहने लगे ।
कलिया कोयल फिर आम के पेड़ पर जाकर सो गयी । इधर पीपल के पेड़ पर बैठे पक्षी बतियाने लगे । हरियल तोता बोला-‘आज तो हम बहुत अच्छा गाना सीखेंगे ।’
चित्रग्रीव कबूतर बोला- ‘ और गाना सीखने के लिए कितना कष्ट भी तो उठा रहे हैं हम ।’
मानी मैना और सोनी चिड़िया बोलीं- ‘ऐसा न कहो भैया ! गुरु की सेवा करके ही विद्या मिलती है ।’ हरियल तोते ने अपना सिर हिलाकर समर्थन किया- ‘हाँ ! जो गुरु के प्रति श्रद्धा रखता है वही सच्चा ज्ञान पाता है । उसी की विद्या सफल होती है ।’
नन्दा कौवा समझाने लगा- ‘जो गुरु की निन्दा करते हैं उनसे बुरा और कोई नहीं है ।’
इतनी देर में कलिया कोयल भी वहाँ उड़कर आ गयी । वास्तव में वह सोई हुई नहीं थी । वह आँखें बन्द करके आम के पेड़ पर बैठी थी । सभी की बातें उसने सुनीं ।
मन ही मन वह अपने को धिक्कार रही थी कि मैं क्यों अपनी विद्या का इतना घमण्ड कर रही हूँ । ये सभी पक्षी मेरे प्रति इतना श्रद्धा भाव रखते हैं । मुझे इन्हें गाना सिखाना ही चाहिये ।
कलिया कोयल ने प्रसन्न मन से सभी को गाना सिखाया । उसकी मधुर आवाज सुनकर सभी पक्षी बड़े खुश हुए । शाम कलिया कोयल ने उन्हें कई गीत सिखा तक दिये ।
सूर्य अस्त होने तक पक्षी गाने का अभ्यास करते रहे । अन्त में उन्होंने कलिया कोयल को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया । कलिया फिर आने का वायदा करके वहाँ से उड़ गयी ।
रात घिर रही थी । सारे पक्षी भी अपने-अपने घरों के लिये उड़ चले । रास्ते भर वे कलिया कोयल की प्रशंसा करते गये ।
नन्दा कौवा कह रहा था – ‘ज्ञान की सार्थकता इसी में हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह दूसरों को भी सिखायें । जो ऐसा करता है उसकी विद्या बढ़ती ही जाती है । वही सफलता प्राप्त करता है, वही प्रसिद्धि पाता है और उसी का ज्ञान सार्थक होता है ।