वेद ज्ञान के प्रसारक मैक्समूलर
जर्मनी के डेजी इलाके में जन्मे मैक्समूलर उपयुक्त अध्ययन के उपरांत कट्टरवादी बिल्कुल न रहे । सत्य की शोध में जहाँ भी यथार्थता दीख पड़ी, वहाँ से उसे ढूँढ़ निकालने का मन में निश्चय वे निकल पड़े ।
वेदों को ज्ञान का भंडार जाना जाता था । वे वेदों को ढूँढ़ने और उस ज्ञान को सर्वसाधारण तक पहुँचाने के लिए व्याकुल हो उठे । हिन्दुस्तान आये, तो यहाँ बड़ी अजीब स्थिति देखी । पंडित लोग अपनी बिरादरी के
अतिरिक्त वह ज्ञान किसी को बताना-सुनाना नहीं चाहते थे । इस कारण उन्हें भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा । जो कार्य कम समय में हो सकता था, वह अत्यधिक समय में हुआ, फिर भी वे निराश न हुए ।
उनने वेदों को जर्मन भाषा में टीका सहित प्रकाशित किया । फिर वह अंग्रेजी में भी अनुवादित हुए । इसके उपरांत भारतीयों को भी अपनी उपेक्षा और संकीर्णता पर लज्जा आयी और वेदों की चर्चा, शिक्षा तथा छपाई होने लगी ।
स्त्री और शूद्र भी उस ज्ञान को मनुष्यों की तरह प्राप्त करने लगे ।