घमंडी कजरी
यों उस घर में अनेक पशु-पक्षी पले हुए थे। पिंजरे में बैठा हरियल तोता हर समय राम-राम कहता रहता था। सोनू कुत्ता बड़ी सजगता से घर की चौकीदारी करता था। गंभीर गौरी गाय सबको समझाया करती थी।
लड़ाई होने पर वही न्याय करती थी। सफेद कबूतरों का जोड़ा बड़ी शान से इठलाता सारे घर में घूमा करता था, पर मालिक की न जाने क्यों सबसे प्यारी थी, तो कजरी बिल्ली।
उसकी दौड़ सीधी मालिक की गोद थी। काले-सफेद गुदगुदे रोंये वाली यह कजरी देखने में बहुत सुंदर थी। मालिक उस पर प्यार से हाथ फिराते, पुचकारते, गुदगुदाते और खेल खिलाते। इन सब बातों से कजरी को घमंड होने लगा।
वह सारे दिन सभी से अपनी प्रशंसा करती रहती । सुबह- सुबह जब हरियल तोता पूरी तन्मयता से राम-नाम का गान कर रहा होता तो कजरी वहाँ पहुँच जाती । वह पूछती – “अरे तोते ! क्या मालिक कभी तुझसे भी बोलते हैं ?”
“हाँ! मालिक रोज सुबह-शाम मेरे पास आते हैं।”
तोता कहता ।”फिर ?”
फिर क्या, मुझसे कहते हैं- “मिट्ठू ! कहो राम-राम । ”
तोता कहता। बस इतना ही कजरी मुँह बिचकाते हुए कहती – “मुझे तो सदैव मालिक गोद में बिठाकर प्यार करते हैं।” और तेजी से वहाँ से दौड़ जाती।
कभी कजरी गौरी गाय के पास जाती और पूछती- “अरी गौरी! क्या कभी मालिक तुम पर प्यार से हाथ भी फिराते हैं ?”
“हाँ-हाँ रोज ही तो फिराते हैं।” गौरी गर्व से अपनी गरदन उठाकर, बड़ी-बड़ी काली कजरारी आँखों को ऊपर करके यही उत्तर देती।
“पर क्या वे तुझे गोद में भी बिठाते हैं ?” कजरी फिर पूछती । गौरी को मन ही मन हँसी आने लगती। वह इस मूर्खता भरे प्रश्न का कोई उत्तर न देती। अपनी गरदन एक ओर फिरा लेती। गौरी जानती थी कि कजरी बहुत घमंडी होती जा रही है। घमंडी के मुँह भी क्या लगा जाए ?
कजरी यही प्रश्न सफेद कबूतरों के जोड़े और सोनू कुत्ते से भी करती, फिर वह उनको नीचा दिखाने की कोशिश करती । सोनू कुत्ते से तो कजरी की बिलकुल न बनती थी।
वह हरदम उसको छेड़ा ही करती, पर सोनू कुत्ता भी बड़ा गंभीर था । कजरी सामने भी आती, उसे चिढ़ाती भी रहती तो भी एक ओर मुँह करके बैठा रहता। कजरी की बात को अनसुना कर देता।
घर के बाड़े में सारे जानवर बैठे-बैठे बतियाते रहते, पर कजरी उनके बीच कभी न बैठती। वह ऐसा करना अपना अपमान समझती थी। वह अपने को उन सबसे अच्छा और बड़ा समझती थी। वह तो बस रात को सोने को ही उनके बीच में आती थी।
एक दिन कजरी जब सुबह-सुबह उठी तो उसे चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा दिखाई देने लगा। उसकी आँखें दुःख रही थीं और किरकिरा रही थीं।
उसने जोर से पंजों से आँखों को मला, पर आँखें और भी दरद करने लगीं और उनसे पानी निकलने लगा। कजरी म्याऊँ म्याऊँ करके चीखने लगी।
गौरी गाय, सफेद कबूतर, सोनू कुत्ता सभी की आँखें खुल गईं। वे कजरी के चारों ओर घिर आए। सभी पूछने लगे- ” कजरी क्या हो गया ?”
पर कजरी “कुछ नहीं कहकर मुँह फिराकर धीरे-धीरे बाड़े से निकल गई। कजरी के इस व्यवहार से सभी जानवर अपना सा मुँह लेकर रह गए। ” कजरी सोच रही थी- “यह बेवकूफ जानवर मेरी क्या कोई सहायता करेंगे? मालिक बुद्धिमान है, उन्हीं को जाकर मैं अपनी आँखें दिखाऊँगी।”
म्याऊँ म्याऊँ, म्याऊँ म्याऊँ करती हुई, गंध सूँघती हुई कजरी मालिक के पास गई। उन्होंने उसे पुचकारा, कजरी फिर से म्याऊँ- म्याऊँ करने लगी। मालिक ने पूछा – “क्या बात है कजरी ? क्यों चीख रही हो?”
“कजरी ने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की कि आँखों में तकलीफ हो गई है, पर मालिक कजरी बिल्ली की भाषा न समझ सकते थे और न समझे।”
हारकर, मन मसोसकर फिर कजरी को जानवरों के बाड़े में ही जाना पड़ा। सोनू कुत्ते ने उस घमंडी बिल्ली को देखकर अपना मुँह फिरा लिया। सफेद कबूतर उसे देखकर फुर्र से उड़ गया।
कजरी जानती थी कि गौरी गाय सबसे अधिक उदार है। वह जरूर उसकी सहायता करेगी। कजरी लड़खड़ाती सी उसके पास पहुँची और बोली – “काकी काकी ! मुझे बचाओ, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”
‘क्या बात है री कजरी ?” गौरी ने पूछा।
‘काकी देखो तो मेरी आँखों में क्या हो गया है ? कुछ भी तो दिखाई नहीं दे रहा । “
गौरी ने ध्यान से देखा । कजरी की आँखों में घास के तिनके चिपके हुए थे। गौरी ने जीभ से तुरंत चाट-चाटकर उन्हें निकाल दिया। सारे तिनके निकल जाने पर कजरी का दरद भी दूर हो गया।
उसकी आँखें खुलने लगीं और दिन का प्रकाश उसे साफ भी दिखाई देने लगा।
कजरी को अब बड़ा ही पश्चात्ताप होने लगा। वह सोचने लगी , “देखो ! मैं व्यर्थ ही अभिमान करती थी। सभी से दूर रहा करती थी। दुःख-मुसीबत में हम सब ही एकदूसरे के काम आते हैं। हम सभी को मिल-जुलकर रहना चाहिए।”
अब कजरी बिल्ली सभी से अच्छा व्यवहार करती है। सभी के साथ मिल-जुलकर रहती है। पहले की तरह घमंड भरी बातें भी नहीं किया करती ।