स्वार्थी इक्कड़ की दुर्गति

एक हाथी बड़ा स्वार्थी और अहंकारी था । दल के साथ रहने की अपेक्षा वह अकेला रहने लगा । अकेले में दुष्टता उपजती है, वे सब उसमें भी आ गयीं ।

एक बटेर ने छोटी झाड़ी में अंडे दिए । हाथियों का झुंड आते देखकर बटेर ने उसे नमन किया और दलपति से उसके अंडे बचा देने की प्रार्थना की । हाथी भला था । उसने चारों पैरों के बीच झाड़ी छुपा ली और झुंड को आगे बढ़ा दिया । अंडे तो बच गए; पर उसने बटेर को चेतावनी दी कि एक इक्कड़ हाथी पीछे आता होगा, जो अकेला रहता है और दुष्ट है, उससे अंडे बचाना तुम्हारा काम है ।

थोड़ी देर में वह आ ही पहुँचा । उसने बटेर की प्रार्थना अनसुनी करके जान-बूझ कर अंडे कुचल डाले ।

बटेर ने सोचा कि दुष्ट को मजा न चखाया तो वह अन्य अनेक का अनर्थ करेगा । उसने अपने पड़ोसी कौवे तथा मेढ़क से प्रार्थना की। आप लोग सहायता करें तो हाथी को नीचा दिखाया जा सकता है । योजना बन गई । कौवे ने उड़-उड़ कर हाथी की आँखें फोड़ दी । वह प्यासा भी था । मेढ़क पहाड़ी की चोटी पर टर्राया । हाथी ने वहाँ पानी होने का अनुमान लगाया और चढ़ गया । अब मेढ़क नीचे आ गया और वहाँ टर्राया । हाथी ने नीचे पानी होने का अनुमान लगाया और नीचे को उतर चला । पैर फिसल जाने से वह खड्ड में गिरा और मर गया ।

सीख: एकाकी स्वार्थ-परायणों को इसी प्रकार नीचा देखना पड़ता है।

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