मित्र का कर्त्तव्य
राधू खरगोश को अन्य खरगोशों के साथ अमिताभ की माँ ने पालतू बना लिया था। राधू और अन्य तीन खरगोश पिंजरे में रहते- रहते तंग आ गए। सभी को जंगल से पकड़कर लाया गया था । वे यही सोचते रहते कि किस प्रकार वापस जंगल को लौटें ?
एक बार राधू को मौका मिला और वह अमिताभ के घर से भाग निकला। पीछे फुलवारी में से होकर वह भागा और तेजी से दौड़ता ही गया। काफी देर तक दौड़ने के बाद जंगल में जाकर उसने सांस ली। उसे डर था कि मालिक के घर का कोई व्यक्ति कहीं उसे फिर न पकड़ ले जाए।
राधू लता के झुंडों के बीच बैठकर सुस्ता ही रहा था तभी झाड़ियों में से मुन्नू खरगोश निकला। राधू को देखते ही मुन्नू खुशी से उछल पड़ा। बड़े दिनों से राधू जंगल में गायब था। कहो मित्र! तुम कहाँ चले गए थे ? राधू के कंधे पर हाथ रखते हुए मुन्नू ने पूछा ।
अपने बिछुड़े हुए मित्र से मिलकर राधू भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपनी सारी कथा सुनाई कि किस प्रकार उसे बंदी बना लिया गया था और कैसे वह छूटकर आया है ?
“तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम मूर्ख हो । ठहरो मैं अभी दौड़कर तुम्हारे लिए खाना लाता हूँ।” मुन्नू बोला।
मुन्नू तेजी से वहाँ से चला और एक गाजर के खेत में घुस गया। उसने कई गाजर उखाड़ी, कुछ फल तोड़े और राधू ले गया। के पास खा-पीकर राधू को थोड़ी तसल्ली मिली। मुन्नू बोला- “चलो अब घर चलो।’
“मैं घर बाद में जाऊँगा। मैं पिंजरे में अपने तीन दोस्तों को छोड़कर भागा हूँ। जब तक मैं उन्हें छुड़ा नहीं लेता, तब तक मुझे चैन कहाँ? मित्र वही है जो दुःख-मुसीबत में साथ दे। अपने दोस्तों को आपत्ति में छोड़कर मैं सुख से रहूँ तो मुझे भी धिक्कार है।” राधू बोला।
“पर तुमने उन्हें छुड़ाने का क्या उपाय सोचा है ?” मुन्नू ने पूछा।
राधू अपने सिर पर हाथ रखकर कुछ देर तक बैठा-बैठा सोचता रहा, फिर सहसा वह उछल पड़ा। एक बड़ा अच्छा उपाय मेरी समझ में आया है। वह खुशी से बोला ।
“क्या ?” मुन्नू पूछने लगा। राधू बोला- “अपना जो मित्र है न कुटकुट चूहा, उसके पास चलते हैं। कुटकुट के दाँत बड़े पैने हैं। रात में चुपचाप जाकर कुटकुट पिंजरे के तारों को काट देगा। इस प्रकार तीनों बंदी खरगोश बाहर निकल आएँगे।”
मुन्नू को भी राधू का यह उपाय पसंद आया। दोनों तुरंत कुटकुट चूहे के घर गए । कुटकुट को उन्होंने सारी बातें बताईं – ” अरे! मैं अपने मित्रों की कुछ सहायता कर पाऊँ, यह मेरा सौभाग्य ही होगा।” कुटकुट अपनी मूँछ और पूँछ हिलाता हुआ बोला । वह तुरंत चलने को तैयार हो गया।
“अभी नहीं, रात को चलेंगे। जब घर के सदस्य सो जाएँगे, तब तुम्हें काम करने में सुविधा रहेगी।” राधू ने समझाया।
रात में अचानक बहुत तेज पानी पड़ने लगा। “मुन्नू! अब कैसे चलेंगे कुटकुट भाई ?”
कुटकुट बोला—“मनस्वी एक बार जिस काम को करने की सोच लेते हैं, उसे कठिनाइयों में भी पूरा किया करते हैं। संकल्प दृढ़ रहना चाहिए, फिर बाहरी कठिनाइयाँ हमारा रास्ता नहीं रोक सकतीं। हम आज ही अपने मित्रों को मुक्त कराएँगे।”
पानी और आँधी में भी कुटकुट चूहा, राधू और मुन्नू खरगोश निकल पड़े। पानी से जैसे-तैसे बचाव करते हुए वे अमिताभ के घर तक पहुँचे। आगे-आगे राधू खरगोश चलकर रास्ता दिखा रहा था। घर की नाली में होकर तीनों घुसे।
राधू उस कमरे में उन्हें ले गया, जहाँ तीनों खरगोश पिंजरे में बंद थे। कमरे में कोई घर का सदस्य नहीं था। इसलिए कुटकुट चूहे ने बड़े आराम से अपना काम प्रारंभ कर दिया। पिंजरे में बंद तीनों खरगोश राधू और मुन्नू को देखकर उछल पड़े।
“ठहरो! अभी थोड़ी से देर में तुम सब कैद से छूट जाते हो।” राधू बोला।
राधू, मुन्नू और कुटकुट चूहा तीनों ने मिलकर पिंजरे को काटना प्रारंभ किया। तार पतले-पतले थे, पर थे बड़े-बड़े । इन तीनों के दाँत दुःखने लगे। थोड़ी सी देर की बात है, बस यह अभी कटा जाता है।
ऐसा कहकर राधू खरगोश सभी का उत्साह बढ़ा रहा था। “हमने जो काम सोचा है उसे हर हालत में पूरा करके ही दम लेंगे।” कुटकुट चूहा कह रहा था।
लगन और परिश्रम से कौन सा काम पूरा नहीं होता ? थोड़ी सी देर में उन्होंने पिंजरे के कुछ तार काट डाले और कुछ टेढ़े कर दिए। पिंजरे में बैठे तीनों खरगोश तेजी से बाहर निकल आए।
बाहर आकर वे मुसीबत में काम आने वाले इन तीनों साथियों से गले मिले। बार-बार उन्हें धन्यवाद दिया। एक खरगोश बोला- “मित्रो ! धन्य है तुम तीनों का साहस जो इतने आँधी-पानी में भी तुम निकल पड़े।”
तीनों खरगोश राधू से कहने लगे- “राधू भैया! तुम हमारे सच्चे मित्र हो, सच्चे हितैषी हो। सच्चा मित्र अपने मित्र का दुःख नहीं देख सकता। तुम्हारे परिश्रम और योजना से ही आज हम कैद से छूट पाए हैं।”
मुन्नू खरगोश बोला- “राधू की यह विशेषता है कि मुसीबत पड़ने पर भी यह धैर्य से काम लेता है। आपत्ति पड़ने पर भी यह विवेक-बुद्धि नहीं खोता । जो दुःख में भी घबराता नहीं है, बुद्धि से काम लेता है, उसका भला कौन सा काम अधूरा रह सकता है ?”
“हमें भी राधू भैया की भाँति साहसी और परोपकारी बनना चाहिए।” तीनों खरगोश बोले ।
चलो अब घर चलते हैं। आज तुम सब की दावत मेरे घर पर है। तुम्हारी भाभी प्रतीक्षा कर रही होगी। कुटकुट चूहा बोला। सब खुशी-खुशी कुटकुट चूहे के घर की ओर चल पड़े। कैद से मुक्त होने पर तीनों खरगोश खुशी से दौड़ते जा रहे थे ।
कुटकुट चूहा बोला- ” जो सुख स्वतंत्रता में है, वह परतंत्रता में कहाँ है? जंगल में भूखे रहकर भी, कठिनाई सहकर भी हम प्रसन्न रहते हैं। पिंजरे में भरपूर खाना मिलने पर भी मन दुखी रहता है । सच है – स्वतंत्रता ही सच्च सुख है।”
सभी ने कुटकुट चूहे के समर्थन में अपना सिर हिलाया ।
तभी कुटकुट चूहे का घर आ गया और सभी दावत खाने उसमें घुस पड़े।