मोटा गुल्लू

चन्दो चुहिया का एक ही बच्चा था। वह उसे प्यार से गुल्लू कहकर पुकारती थी। इकलौता होने के कारण चंदो उसको कुछ ज्यादा प्यार करती थी। यह भी कहना अनुचित न होगा कि उसने प्यार-प्यार में गुल्लू को बिगाड़ दिया था।

वह गुल्लू को किसी काम से हाथ न लगाने देती। सारे काम खुद ही भाग-भागकर करती, भले ही थककर चूर-चूर हो जाए। वह गुल्लू को खूब हँस-हँसकर खाना खिलाती, खुद कई बार भूखी रह जाती।

वह उसे घर से बाहर न निकलने देती। उसके बाहर जाने पर उसे लगातार यही डर बना रहता कि कहीं वह रास्ते में पिच न जाए, कहीं पूसी मौसी उसे पकड़ न ले। चंदो के इस अंधे दुलार का फल यह हुआ कि गुल्लू कामचोर, पेटू और डरपोक बन गया।

बचपन में जो आदतें पड़ जाती हैं वे बड़े होने पर विकसित होती हैं। इसीलिए बुद्धिमान माता-पिता बचपन से ही अपने बच्चों को अच्छी बातें सिखाते हैं, उनकी गलतियों को बचपना कहकर बढ़ावा नहीं देते। चंदो अब गुल्लू को यदि कुछ सिखाने की कोशिश भी करती तो वह कानों पर उतार देता। कुछ भी सीखने का करने का उसका मन न करता । उसे तो बस दो ही काम अच्छे लगते। खाना और पड़े रहना।

गुल्लू दिन पर दिन मोटा होता जा रहा था। पड़ौसी बच्चे उसे मोटूराम कहकर चिढ़ाते । चंदो को यह बहुत बुरा लगता। वह सोचती हाय, ये मेरे लाल को नजर लगा देंगे, इसलिए वह अपने पड़ोसियों से कहती — ‘बहिन, मेरा लाल गुल्लू तो कुछ खाता पीता ही नहीं। जो भी लाती हूँ, सब इधर-उधर पड़ा रहता है ……..।’ पड़ौसिनें उसके सामने तो सहानुभूति दिखातीं पर बाद में हँसती, मजाक बनातीं और

आपस में कहती- ‘हाय बेचारा गुल्लू-दिनभर नहीं खाता …… फिर भी मोटा होता जाता है।’ पर हुए एक दिन चंदो गुल्लू और पड़ौस के कुछ बच्चों के साथ किसी दावत में गई। वहाँ सभी ने छककर खाया और चटखारे भरते घर वापिस लौटे। रास्ते में पूसी मौसी से भेंट हो गई। वह उनके आने की घात लगा बैठी थी।

पूसी को देखकर सारे बच्चे झट से भाग छूटे पर गुल्लू कोशिश करके तेजी से भाग पाया। चंदो उससे बार-बार भागने के लिए कह रही थी पर थोड़ा-सा भागने के बाद ही उसकी साँस फूल गई। आखिर चंदो ने उसे धक्का देकर नाली में गिरा दिया तब कहीं जाकर वह पूसी के पंजे से बचा ।

घर जाकर चंदो ने गुल्लू को खूब डाँटा वह कह रही थी- मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आखिर कब तक लगी रहूँगी। तुम और कुछ चाहे सीखो या न सीखो पर अपना बचाव करना तो सीख लो, नहीं तो किसी दिन जान से ही हाथ धोना पड़ेगा।

माँ ने आज तक कभी गुल्लू को नहीं डाँटा था। वह रुआँसा हो गया और बोला- माँ, मुझसे भागा नहीं जा रहा था। मैं करूँ भी क्या, जरा-सा चलता हूँ, दौड़ता हूँ, मेरा साँस फूलने लगता है। जरा-सा काम करता हूँ, थक जाता हूँ।’

गुल्लू की बातें सुनकर चंदो चिंता से भर उठी। ‘आह बेटे, ये तो कमजोरी के लक्षण हैं। कल ही तुम्हें ननकू दादा को दिखाऊँगी’ वह बोली। ननकू पड़ौस का बुड्ढा चूहा था। वह बड़ा अनुभवी था। बीमार होने पर सभी चूहे उसी से सलाह लेते थे और स्वस्थ हो जाते थे।

दूसरे दिन ननकू दादा ने आकर गुल्लू की अच्छी तरह की। उसे कोई बीमारी न थी। जगह-जगह उसके शरीर पर चर्बी लटकी पड़ रही थी। उसी के कारण चलने-फिरने में परेशानी होती थी। ननकू पूछने लगा—’बेटे, तुम क्या-क्या काम करते हो ?”

जवाब दिया चंदो ने। बोली- क्या बताऊँ दादाजी, जरा-सा काम करता है तो हॉफने लगता है यह। इसलिए मैं इससे कुछ काम ही नहीं कराती।’

ननकू बोला- ‘बस यही तुम गलती कर रही हो। तुम्हारा बेटा किसी रोग का शिकार नहीं है— अधिक खाने का, बदहजमी का अपच और आलस का शिकार है।” मैं समझी नहीं दादाजी चंदो कहने लगी।

ननकू उसे समझाने लगा-देखो, अधिक खाने से, खाकर पड़े रहने से शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि अधिक न खायें, सारे दिन न खायें और श्रम करके खाए हुए को पचाएँ जो खूब श्रम करता है, उसका खाना अच्छी तरह पचता है, जिससे शुद्ध खून बनता है और शरीर बलिष्ठ होता है। ‘बात तो आप ठीक कहते हैं, चंदो बोली ।

‘तुमने अपने बेटे में खूब खाने की तो आदत डाली है पर काम करने की नहीं। इसलिए उसके शरीर पर चर्बी बढ़ती जा रही है। चर्बी का बढ़ना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं, खराब ही है। इससे अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। तुम इसका जल्दी ही इलाज करो’ ननकू कह रहा था।

“क्या इलाज करूँ दादाजी’ रुँआसी होकर चंदो बोली । ननकू ने समझाया- ‘समय से खाना दो। बार-बार और स्वाद-स्वाद में अधिक खाने की आदत छुड़ाओ । गुल्लू को काम में लगाए रखो। सुबह शाम इसे दो मील घुमाने ले जाओ। कसरत कराओ। कुछ ही दिनों में इसकी चर्बी घट जाएगी।

चंदो ने धन्यवाद देकर ननकू को विदा किया। फिर वह गुल्लू को सुधारने में जुट गई। उसकी कामचोरी की, अधिक खाने की आदत छुड़ाने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ा, मन को कठोर बनाना पड़ा। पर अंत में चंदो अपने काम में सफल ही रही।

छः महीने की लगातार कौशिश से गुल्लू दूसरे बच्चों की तरह फुर्तीला और काम करने वाला बन गया। चंदो अब कभी गुल्लू से अधिक खाने का भी आग्रह नहीं करती। वह सब समझ गई है कि कम खाने से कोई हानी नहीं होती। ठूस-ठूस कर खाने से ही बीमारियाँ शरीर में घर करती हैं।

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