गोस्वामीजी की समाज-निष्ठा

लायलपुर (पंजाब) में जन्मे गोस्वामी गणेशदत्त ने अपने श्रम, ज्ञान और समय का विसर्जन देश-सेवा के लिए कर दिया । वे रचनात्मक कार्यों में विश्वास करते थे । देखा कि उस समूचे प्रांत में उर्दू का बोलबाला है । हिन्दी जानने वाले लोग मुट्ठी भर थे। हिन्दी समझे बिना हिन्दू धर्म को समझना कठिन है-यह सोचकर उनने हिन्दी की प्रौढ़ पाठशालायें-बालशालाएँ चलाने का प्रयल किया । इसके लिए घर-घर गए और शिक्षार्थियों को ढूँढ़ कर लाए । देखते-देखते चार सौ पाठशालायें चलने लगीं ।

गोस्वामी जी ने सनातन धर्म सभा और महावीर दल की स्थापना की । समय-समय पर देश में आने वाले दुर्भिक्ष, महामारी आदि में अपने साथियों की सहायता एकत्रित करके दौड़ पड़े । आजीवन वे सेवा कार्यों में ही लगे रहे । पंजाब में एक संस्कृत कॉलेज स्थापित किया और हरिद्वार में सप्तऋषि आश्रम बनाया ।

इन प्रयासों के मूल में उनका उद्देश्य हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान की भावना को प्रबल बनाना था।

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