राजेन्द्र बाबू की सरलता
बात सन् १९३५ की है । राजेन्द्र बाबू कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे । उन्हें किसी काम से प्रयाग से निकलने वाले अंग्रेजी लीडर के संपादक श्रीचिंतामणि से मिलना था ।
चपरासी को कार्ड दिया । वह संपादक की मेज पर रखकर लौट आया और प्रतीक्षा करने के लिए कहा ।
राजेन्द्र बाबू के कपड़े वर्षा से भीग गए थे । समय खाली देखकर वे उधर बैठे मजदूरों की अँगीठी के पास खिसक गए और हाथ सेंकने तथा कपड़े सुखाने लगे ।
थोड़ी देर में कार्ड पर नजर गई तो संपादक जी हड़बड़ा गए और उनके स्वागत के लिए स्वयं ही दौड़े । पर राजेन्द्र बाबू कहीं नजर न आए ।
ढूँढ़ खोज हुई तो वे अँगीठी पर तापते और कपड़े सुखाते पाये गए । चिंतामणि जी ने देरी होने और कार्ड पर ध्यान न जाने के लिए माँफी माँगी । हँसते हुए राजेन्द्र बाबू ने कहा- “इससे क्या हुआ । कपड़े सुखाना भी एक काम था । इस बीच निपट गया तो अच्छा ही हुआ ।