चरवाहे की सम्पत्ति
ईरानी शाहंशाह अब्बास शिकार के लिए जंगल में भटक रहे थे । वहाँ उनकी भेंट एक चरवाहे बालक से हो गई । नाम था- मुहम्मद अलीवेग । चरवाहा होते हुए भी उसकी हाजिर जबावी तथा व्यक्तित्व से शाह बड़े प्रभावित हुए और लौटते समय उसे भी अपने साथ ले आए ।
मुहम्मद अलीवेग को राज्य का कोषाध्यक्ष बना दिया गया । यद्यपि वह एक निर्धन परिवार का था, फिर भी इतनी धन-दौलत को देखकर उसका मन तनिक भी विचलित न हुआ । वह अपने को कोषालय के समस्त धन का रक्षक मानता था । इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उसके जीवन में सादगी थी ।
शाह अब्बास के बाद उनका अल्प वयस्क पौत्र शाह सफी राज सिंहासन पर आसीन हुआ । किसी ने शाह के कान भर दिए कि मुहम्मद अली राज्य के धन का दुरुपयोग करता है । शाह ने उस प्रकरण को जाँच के लिए अपने पास रखा और एक दिन बिना सूचना के उसकी हवेली का निरीक्षण करने जा पहुँचे ।
शाह ने हवेली के सब कमरों का निरीक्षण किया । थोड़ी-सी वस्तुओं के अतिरिक्त वहाँ कुछ दिखाई ही न दे रहा था । शाह निराश होकर लौटने लगा, तो खोजियों के संकेत पर शाह की दृष्टि एक बंद कमरे की ओर गयी । उसमें तीन मजबूत ताले लटक रहे थे । अब शाह की शंका को कुछ आधार मिला था । उन्होंने पूछा- “इसमें क्या चीज है, जिसके लिए इतने मजबूत ताले लगाये हैं ।”
तुरंत ताले खोल दिए गए । शाह ने कक्ष के मध्य मेज पर एक लाठी, शीशे की सुराही आदि बर्तन तथा पोशाक और दो मोटे कंबल देखे । मुहम्मद ने कहा- “जब स्वर्गीय शाह मुझे यहाँ लाए थे, उस समय मेरे पास यही वस्तुएँ थीं और आज भी मेरे पास अपनी कहने को यही हैं । मैं इससे प्रेरणा ग्रहण करता और उसी स्तर के जीवन का अभ्यास बनाए रखता हूँ।” युवा बादशाह इस आदर्शनिष्ठा को देखकर नत मस्तक हो गया ।