विलासी हारते हैं
देवताओं और दनुजों में घमासान युद्ध हुआ । विलासी देवताओं को हारकर भागना पड़ा । पराक्रम में निरत दनुज जीत गए । देवता प्रजापति के पास पहुँचे । उनने संयम के अभाव को पराजय का कारण बताया और कहा-“मनुष्यों में एक तप, तेज का धनी मुचकुंद है । अपना सेनापति उसे बनाओ और देवताओं और विजय पाओ ।” ऐसा ही किया गया । देवताओं की सेना जीत गयी और विजयी मुचकुंद को स्वर्ग ले गयी ।
देव समुदाय के बीच वह अपने पराक्रम की डींग हाँकने लगा और पग-पग पर अपने अहंकार का परिचय देने लगा ।
दनुजों का दूसरा आक्रमण हुआ । मुचकुंद दर्प और अहंकार के वशीभूत होकर अपनी वरिष्ठता गँवा चुका था । अब उससे पहले जैसा पराक्रम नहीं बन पड़ा था, तब कार्तिकेय को बुलाया गया । उनने विजय पायी । इंद्र ने मुचकुंद को वापस धरती पर भेज दिया और कहा – ” अहंकार दोष से मुक्ति पाने का तप करो । उसके बिना समस्त वैभव अधूरे हैं ।”