सफल और लोकप्रिय शासक

एक दिन श्वेता सिंहनी अपने बेटे के साथ दंडकारण्य वन में घूमने निकली। उसका बेटा महाराज पीताभ अभी कुछ दिनों पहले ही जंगल का राजा चुना गया था। सभी जानवरों ने मिलकर सर्वसम्मति से उसका चुनाव किया था ।

वन में सहसा ही श्वेता के कानों में एक करुणा भरी पुकार पड़ी। उसने चौंककर इधर-उधर ध्यान से देखा। श्वेता ने पाया कि गीदड़ का एक छोटा-सा बच्चा कीचड़ में फँस गया है। वह निकलने की जितनी कोशिश करता है उतना ही फँसता जाता है। वही अपनी सहायता के लिए आवाज लगा रहा है।

गीदड़ की यह स्थिति देखकर सिंहनी दया से भर उठी। वह धीमे से बुड़बुड़ाई-हाय बेचारा बच्चा ! यदि तुरंत इसकी सहायता न की गई तो यह तड़फ तड़फ कर प्राण ही दे देगा। श्वेता ने पीताभ को, जो घूमते हुए उनसे बहुत आगे निकल गया था, तुरंत जोर से आवाज लगाई। माँ की आवाज सुनकर पीताभ तुरंत ही दहाड़ता हुआ आया और बोला क्या हुआ माँ ?”

बचने के लिए हाथ-पैर पटकते हुए गीदड़ की ओर श्वेता ने इशारा किया- बेटा जाओ, संकट में पड़े प्राणी की सहायता करो।’

यो श्वेता गीदड़ को बचाने स्वयं भी जा सकती थी, पर उसने जान-बूझकर पीताभ को पुकारा था। वह परखना चाहती थी कि कहीं ऊँचा पद पाकर पीताभ को अभिमान तो नहीं हो गया है, सत्ता के मद में भरकर कहीं वह कर्तव्य की अवहेलना तो नहीं करता।

माँ की बात सुनते ही पीताभ तुरंत ही उस ओर दौड़ गया। उसने एक ही झटके में गीदड़ को बाहर निकाल दिया, पर इस प्रयास में पीताभ स्वयं कीचड़ से पूरा लिप-पुत गया था।

गीदड़ के बच्चे ने तो शेर की भयंकर गर्जना सुनकर अपनी पीठ पर उसके पंजों का स्पर्श पाकर ही भय से आँखें बंद कर ली थी। अब तो मेरे बचने का कोई प्रश्न ही नहीं। इधर कीचड़, उधर शेर, ऐसा सोचकर, अपना अंत समय निकट आया जानकर वह मन ही मन भगवान का स्मरण कर रहा था। उसकी यह स्थिति पीताभ से भी छिपी न रह सकी। उसे सूखी जमीन पर रखते ही वह बोला-‘डरो मत, आँखें खोलो बच्चे।’

परिचित-सी आवाज सुनकर गीदड़ के बच्चे ने आँखें खोलीं। परंतु पीताभ के कीचड़ में लथपथ होने के कारण वह उसे पहिचान न पाया। सहसा ही उसकी निगाह श्वेता पर गई ।

वह उसे प्रणाम करते हुए बोला- ओह राजमाता, आप यहाँ श्वेता बोली- ‘हाँ’ यह तुम अपना सौभाग्य समझो कि हम घूमते हुए इधर आ निकले और स्वयं महाराज ने तुम्हें बचा लिया अन्यथा आज तो कीचड़ में फँसकर तुमने प्राण ही दे दिए होते। जाओ आगे ठीक से रहना, सोच-समझकर काम करना जिससे विपत्ति में न पड़ो।

गीदड़ का बच्चा तुरंत महाराज पीताभ के चरणों में गिर गया और बोला, मेरे प्राणदाता, आपका यह उपकार में जीवन भर न भूलूँगा। सचमुच मैंने जैसा आपको सुना था वैसा ही पाया। भगवान आपको लंबी आयु दे, सुख-शांति दे।

ढेरों शुभकामनाएँ देता हुआ गीदड़ का बच्चा चला गया तो श्वेता बोली ‘बेटे मुझे आशंका थी कि तुम सहायता के लिए जाओगे या नहीं।’

पीताभ प्यार से अपने पंजे को माँ की पीठ पर रखते हुए बोला–माँ, तुम्हारे आदेश का मैं उल्लंघन कर सकता हूँ- यह तुमने सोच भी कैसे लिया ?

श्वेता हँसते हुए कहने लगी- मैंने सोचा कि बेटा अब महाराज बन गया है शायद माँ की बात को बीच में ही काटते हुए पीताभ बोला, माँ, तुम्हीं ने तो सिखाया है कि कोई भी पद से ऊँचा नहीं हुआ करता, गुणों से ऊँचा होता है।

ऊँचे पद पर बैठे हुए गुणहीन-अत्याचारी शासक के मुँह पर डर के कारण कोई कुछ भी न कहे, पर पीठ पीछे सभी उसकी निंदा करते हैं। उसके पद के हटने पर कोई उसकी ओर घृणा से मुँह फिरा कर भी नहीं देखता। इसलिए ऊँचा पद पाकर अभिमान नहीं करना चाहिए अपितु सद्गुणों से ही अपने आपको ऊँचा उठाना चाहिए।

‘बेटे, तुम्हारे यही विचार निरंतर बने रहें तो तुम निःसंदेह एक सफल और लोकप्रिय शासक बनोगे- ऐसा कहते हुए श्वेता ने स्नेह से पीताभ को गले लगा लिया।

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