व्यक्तित्व की परख
एक बार हाथियों का एक झुंड हिमालय की उपत्यकाओं में घूम रहा था तभी सहसा जोरों का तूफान आया। सभी तेजी से भागने लगे। जिसे जिधर से रास्ता सूझा, वह उधर भागने लगा। जरा सी देर में झुंड तितर-बितर हो गया।
भटकता हुआ हाथी सुरक्षित स्थान खोजते खोजते एक छोटी-सी गुफा के पास पहुँचा। उसमें बस आराम से हाथ पैर फैलाकर बैठने भर की जगह थी। ‘अरे इतनी जगह ही बहुत है, ऐसा मन ही मन सोचते हुए वह हाथी गुफा में जा बैठा। उसने अपनी सूड़ आसमान की ओर उठाई और दोनों हाथ जोड़कर चिंघाड़ा – प्रभु ! तू ही आश्रितों को शरण देता है।’
तभी बाहर जोरों की बिजली कड़की। मानो वह भी कड़क-कड़ककर हाथी की बात का समर्थन कर रही हो। बिजली के प्रकाश में गुफा के द्वार से सटे पत्थर की दरार में हाथी ने देखा कि बाहर अजगर बैठा है।
वह ओलों की मार से ठिठुर रहा है। विशालकाय अजगर दीवार से बिलकुल सटकर बैठा जिससे ओलों की मार से कुछ बचाव हो सके। यह देखकर हाथी को दया आ गई। उसने तेजी से गुफा के द्वार पर रखा पत्थर हटाया। हाथी ने अपना सिर थोड़ा-सा बाहर निकाला और बोला- ‘अजगर भाई, आओ अंदर आ जाओ। आखिर ओले-पानी से कुछ तो बचाव होगा ही आज तो ऐसा तूफान आ रहा है कि लगता है कि प्रलय ही आ गई हो।
अजगर की आँखें कृतज्ञता के भावों से भर उठीं। पर जैसे ही सिर गुफा में डाला वह बोल उठा – ‘अरे’ यहाँ तो तुम अकेले ही आराम से बैठ सकते हो।’ ‘आराम से नहीं तो थोड़ी घिस पिच से ही बैठ जाएँगे भाई।
आखिर सदा तो यहाँ रहना नहीं हैं कभी न कभी तो तूफान आखिर थमेगा ही हाथी अपनी आँखें मिचमिचाते हुए, दीवार से सटकर बैठते हुए बोला।
अजगर भी जितनी कम से कम जगह में बैठ सकता था, बैठ गया। फिर वह बोला, ‘हाथी भाई’ तुमसे परिचय पाकर धन्य हो गया हूँ।
संकट की घड़ी में जो दूसरों की बात सोचते हैं अपना सुख छोड़कर उनकी सहायता करते हैं, वह वास्तव में महान् होते हैं।’ तभी हाथी जौरों से चिंघाड़ा। उत्तर में लगा जैसे दूर से कोई हल्की-सी आवाज आई हो, तुमने सुना क्या कुछ ? कानों को हिलाता, ध्यान से सुनने की कोशिश करता हुआ हाथी बोला ।
‘मुझे तो कुछ भी सुनाई नहीं देता’ अजगर भी चौकन्ना होकर ‘लगता है द्वार पर कोई है’ हाथी ने कहा अपनी जगह से वह बोला ।
उठा दरार में से झाँकने लगा। बाहर एक मोटा भालू खड़ा था ।
तूफान के कारण वह अधमरा-सा हो रहा था। हाथी ने जल्दी से द्वार का पत्थर हटाया और बोला- ‘तेजी से अंदर आ जाओ।’
भालू अंदर तो घुस आया पर वहाँ अब तीनों के खड़े होने की भी जगह न थी । ‘ऐसा करता हूँ भाई, मैं बाहर चला जाता हूँ, तुम दोनों बैठो, अजगर ने कहा और बाहर की ओर खिसकने लगा।’
‘मैंने बेकार ही तुम्हें कष्ट दिया। मैं भी बाहर चला जाता जीवन होगा तो बच ही जाऊँगा।’ भालू ने कहा और वह भी थके कदमों से बाहर की ओर जाने लगा।
हाथी ने अजगर की पूँछ खींचते हुए कहा – ‘अरे कहाँ चले तुम। बड़ी जल्दी मचाते हो समस्या का हल मैंने सोच लिया है।’ ‘क्या तुम बाहर जाओगे ?’ अजगर और भालू दोनों ने एक
साथ पूछा। ‘नहीं, हममें से कोई बाहर नहीं जाएगा।’ हाथी गंभीर स्वर में बोला ।
‘फिर कैसे होगा’ अजगर ने आश्चर्य से पूछा ।
होगा यह कि भालू भैया मेरी पीठ पर बैठ जाएगा। इस प्रकार हम तीनों को ही यहाँ बैठने की जगह मिल जाएगी। तीनों का ही तूफान से बचाव हो जाएगा, हाथी ने कहा।
भालू तब तक कुछ सोच विचार भी न पाया कि हाथी ने झट अपनी सूँड़ से पकड़कर उसे पीठ पर बैठा लिया।
हाथी दादा, मुझ मोटे के बोझ से तुम्हारी पीठ दुःख जाएगी। गद्गद् कंठ से भालू बोला। चुप रह रे। ज्यादा न बोल। बहुत करे तो तूफान थमने पर बाहर निकलकर मेरी पीठ दबा दीज्यो, मालिश कर दीज्यो और हाँ नई पर चपत लगाते हुए बोला। हाथी प्यार से उसके सिर
पूरे एक दिन और एक रात तूफान चलता रहा। तूफान पर हाथी, अजगर और भालू बाहर निकले। असंख्यों प्राणी मरे पडे थे। उसे देखकर भालू सिहर उठा। बोला- हाथी दादा तुम रक्षा न करते तो हमारी भी यही गति होती |
हाथी ने उत्तर दिया- “रक्षा करने वाला तो भगवान होता है। भैया मैं तो बस इतनी-सी बात मानकर चलता हूँ कि जैसे सुख-दुःख हमें होता है वैसे ही दूसरों को भी होता है। इसलिए अपने साथ-साथ औरों का भी ध्यान रखें।
‘पर कितने व्यक्ति ऐसा कर पाते हैं ? उपदेश देना सरल है, उसे व्यवहार में लाना उतना ही कठिन है, अजगर बोला।
भालू सिर हिलाते हुए बोला- हाँ, इसलिए तो व्यक्ति जो कुछ कहता है उससे नहीं, जो कुछ वह आचरण करता है, उससे उसकी परख होती है, व्यवहार ही वह दर्पण है जिसमें किसी का वास्तविक रूप सहजता से देखा जा सकता है।’
मोड़ पर आकर सहसा ही हाथी ठिठका और बोला-‘अच्छा भाई अब विदा । मेरा रास्ता अब तुमसे अलग होता है।’
भालू और अजगर दोनों विनम्रता से सिर झुकाकर हाथ जोड़कर बोले-‘दादाजी, आपने स्वयं कष्ट सहकर भी हमें शरण दी है, हमारा जीवन बचाया है—यह हम कभी भी नहीं भूलेंगे। यह हमारा सौभाग्य होगा कि आपके लिए कभी कुछ कर पाएँ ।
‘भगवान तुम्हारी यह भावना सदैव बनाए रखें, तुम्हें सुख-शांति दे’ हाथी ने आसमान की ओर सूँड़ उठाकर कहा। फिर वह दोनों के सिर प्यार से थपथपाकर आगे बढ़ गया।
जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गया, भालू और अजगर उसे एकटक देखते रहे। अजगर फुसफुसाकर बोला- ‘संसार में न धूर्तों की कमी है न महान् आत्माओं की। हमें अच्छे व्यक्तियों का ही अनुकरण करना चाहिए जिससे यह जीवन सफल और सार्थक बने ।
भालू ने भी सहमति में सिर हिलाया। फिर हाथी की उदारता की प्रशंसा करते हुए उन दोनों ने भी विदा ली और अपने-अपने रास्ते पर चल दिए ।