मित्रता की कला

यमुना नदी के किनारे केशू नाम का एक कछुआ रहता था। वह सदा अकेले-अकेले रहता था। पूरी नदी में उसका कोई मित्र नहीं था। केशू इस कारण बहुत उदास भी रहता था। आखिर कभी बातचीत करने को, मन की बात कहने को कोई तो चाहिए ही।

केशू के मित्र न बनने का कारण उसका स्वभाव था। वह हमेशा मुँह लटकाए उदास उदास सा बैठा रहता था। बोलता बहुत कम था। बोलता था तो बड़ी कर्कश वाणी में।

दूसरों की कभी वह कोई सहायता नहीं करता था, उनसे कोई मतलब नहीं रखना चाहता था। निराश होने वाले के पास कौन आता ? कठोर बोलने वाले से कौन बातें करना पसंद करता ? दूसरे की सहायता न करने वाले को

कौन चाहता ? यही कारण था कि केशू के पड़ोसी कछुए उससे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते थे। एक बुरे कछुए के रूप में वह पूरी यमुना नदी में कुख्यात था।

थोड़ी सी बुराई भी बहुत बड़ी होकर फैलती है। केशू की थोड़ी बुराइयाँ भी उसके पड़ोसियों द्वारा बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती थीं। अनेक पड़ोसी उससे डरते भी थे।

केशू एक दिन उदास सा नदी के किनारे बालू पर लेटा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे रहे ? सुबह से शाम तक अकेले रहना, न कोई साथ को और न कोई बात करने को ।

तभी केशू ने देखा कि नदी के किनारे एक हिरण आकर बैठा है। चलो इसी से बात करता हूँ। केशू ने मन ही मन सोचा ।

तब तक हिरण बोल पड़ा – “नमस्ते दादा ! उदास उदास से कैसे लेटे हो ?”

“नमस्ते भाई ! कुछ नहीं, ऐसे ही जरा सो रहा था।” केशू बोला ।

हिरण ने बताया कि उसका नाम सुंदर है। वह पास के जंगल में रहता है। आज घूमते-घूमते इधर आ गया हूँ। जल्दी ही सुंदर और केशू पक्के मित्र बन गए। दोनों नदी किनारे बैठकर घंटों बात करते रहते।

नदी के और कछुओं को उन दोनों की मित्रता देखकर बड़ा अचंभा होता। जरूर इसमें केशू का कुछ स्वार्थ होगा। फिर वे सोचने लगते।

एक दिन केशू ने अपने मित्र सुंदर के सामने यह समस्या रखी कि वह सारी नदी में बदनाम है और उसका कोई साथी नहीं है। सुंदर ने बड़े ध्यान से उसकी बात सुनी। फिर बोला – “दोस्त ! बदनामी तो बड़ी जल्दी हो जाती है, उसे हटाने के लिए तुम्हें बड़ा प्रयास करना पड़ेगा। तुम सदैव अच्छे कार्य करो। दूसरों की सहायता करो उनसे अच्छा व्यवहार करो। तुम्हारी अच्छाई एक न एक दिन बदनामी को हटा देगी।”

“ठीक है! मैं पूरी कोशिश करूँगा।” केशू ने लंबी सांस भरते हुए कहा। उसे दुःख हो रहा था कि यदि उसने पहले ही ऐसा किया होता तो आज उसके भी ढेर सारे मित्र होते। सभी उसकी प्रशंसा करते ।

उस दिन से ही केशू अपने स्वभाव को पूरी तरह से बदलने में जुट गया।

एक दिन की बात थी। नदी के किनारे बरगद के पेड़ पर रहने वाला एक शैतान बंदर का बच्चा एक पेड़ की डाल पर से दूसरे पेड़ की डाल पर कूद रहा था। सहसा वह पानी में छपाक से गिर पड़ा।

बंदर का बच्चा देर तक पानी में डूबता रहा । उसे नदी में तैरता हुआ लकड़ी का एक पट्टा मिल गया। वह जल्दी से उस पर चढ़ गया और लकड़ी के तख्ते के सहारे कुछ देर तक नदी में तैरता रहा।

उधर से अचानक तैरता हुआ केशू कछुआ जा रहा था । बंदर का बच्चा उसे देखकर पुकारने लगा – “दादा ! मुझे बचाओ, मुझे बचाओ।”

पहले तो ऐसी स्थिति में केशू कछुआ मुँह फिराकर चल देता था, पर अब तो वह बदल चुका था। उसने तुरंत बंदर के बच्चे के पास जाकर उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया।

बंदर के बच्चे ने केशू कछुए को धन्यवाद देते हुए कहा- ‘ओह दादा ! आज तुम न आते तो मैं डूब ही जाता। “

नदी किनारे बैठे बंदरों ने देखा कि एक बंदर का बच्चा केशू कछुए की पीठ पर बैठा है। वे आपस में कहने लगे- “यह केशू कछुआ तो बड़ा ही दुष्ट है। यह इस बच्चे को मार डालेगा। आज तो इसकी जान गई ही समझो।”

पर उन सभी के आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि केशू बच्चे को लेकर किनारे की ओर ही बढ़ा चला आ रहा है।

‘आज केशू काका के कारण ही मेरे प्राण बचे हैं। नहीं तो मैं कबका नदी में डूब गया होता।” किनारे पर आकर केशू की पीठ से उतरता हुआ बंदर का बच्चा बोला।

सभी बंदरों ने केशू को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। एक बूढ़ा बंदर बोला- “तुम कितने उपकारी हो केशू ? तुम्हारे पड़ोसी कछुवे वैसे ही तुम्हारी बुराई करते हैं। हो सकता है कि वे तुमसे कोई बैर-भाव रखते हों।’

“नहीं-नहीं! अब वे मेरी बुराई नहीं करेंगे। अब मैं बदल गया हूँ।” केशू ने उत्तर दिया।

सभी बंदरों ने बच्चा बचाने की खुशी में केशू को बढ़िया सी दावत दी। उसे खूब सारे उपहार देकर विदा किया और कहने लगे–“केशू हम सभी तुम्हारे मित्र हैं। तुम हमारे पास प्रतिदिन आया करो। कभी किसी काम की जरूरत हो तो हमसे कहना । “

केशू आज बड़ा प्रसन्न था । दूसरों का उपकार करने में जिस सच्ची प्रसन्नता का अनुभव होता है, उसे आज उसने प्राप्त कर लिया था ।

केश ने बंदर के बच्चे की जान बचाई है – यह खबर उसके पड़ोसी कछुओं तक भी पहुँच गई थी। वे कई दिनों से देख रहे थे कि केशू का व्यवहार अब विनम्र होता जा रहा है। इस समाचार से उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। वे आपस में कहने लगे – “केशू अब पहले जैसा नहीं रहा। वह बहुत अच्छा बन गया है।”

केशू के आने पर सभी कछुओं ने उसका स्वागत किया। सभी ने कहा कि तुमने आज बड़ा अच्छा काम किया है।

केशू ने बंदरों से मिले उपहार सभी कछुओं को बाँट दिए।

अब कछुओं के मन में केशू के प्रति पहले जैसा भाव नहीं रहा था। वे सभी उसके साथ बात करते थे, मिल-जुलकर रहते थे। केशू के बहुत सारे मित्र बन गए। सभी उसकी प्रशंसा करते ।

अब केशू बिलकुल भी सुस्त और अकेला नहीं रहता है। कभी कछुए, कभी बंदर, कोई न कोई उसके पास बैठा ही रहता है। केशू को बहुत अच्छा लगता है। मित्र कैसे बनते हैं? जीवन कैसे जीना चाहिए? यह बात उसकी समझ में आ गई है।

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