स्वावलंबन
नंदा लोमड़ी को अंगूर बड़े पसंद थे। वह जहाँ भी हरे-भरे अंगूरों के गुच्छे देखती, उसके मुँह में पानी भर आता, पर अंगूर उसे मुश्किल से ही खाने को मिलते। लंबू हाथी, पप्पू खरगोश, चंचल गिलहरी इनके यहाँ अंगूर की बेलें थीं।
वे सभी बड़ी मेहनत से उन्हें उगाते थे। नंदा लोमड़ी सभी से अंगूर माँगती, पर एक-दो देकर सभी मना कर देते । चंचल गिलहरी ने तो साफ कह दिया- ‘मौसी ! तुम्हें रोज-रोज अंगूर खाने हैं तो अपने आप मेहनत करो। अपने परिश्रम से उगाकर खाओ।”
चंचल गिलहरी की यह बात नंदा लग गई। वह सोचने लगी कि यह ठीक ही कहती है। रोज-रोज किसी से माँगना उचित नहीं है। मैं भी मेहनत कर सकती हूँ। फिर भीख क्यों माँगू ?
और फिर नंदा लोमड़ी ने भी अंगूर की बेलें लगाईं। वह सुबह-शाम उनमें पानी देती, खाद देती। सारे दिन बैठी वह उनकी देख-भाल करती। धीरे-धीरे अंगूरों की बेलें बढ़ती गईं और उन पर बड़े प्यारे-प्यारे गुच्छे लटकने लगे।
अपनी मेहनत सफल होते देख नंदा फूली न समाती । धीरे-धीरे अंगूर पकने लगे। नंदा ने एक गुच्छा चखकर देखा। बड़े ही मीठे अंगूर थे। कुछ गुच्छे नंदा ने अपने पड़ोसियों को भी बाँटे सभी ने बड़े स्वाद से उन्हें खाया।
चूँ-चूँ चूहे और पप्पू खरगोश को अंगूर बहुत अच्छे लगे। वे जब भी नंदा लोमड़ी के खेत के आगे से निकलते, ललचाई निगाहों से अंगूरों को देखते जाते। उनकी इच्छा अंगूर खाने की होती, पर नंदा लोमड़ी वहाँ हमेशा देख-भाल करती थी, इसलिए खेत के अंदर जाने की उनकी हिम्मत न पड़ती। माँगने पर नंदा कहीं मना न कर दे, इस कारण वे उससे अंगूर माँगते भी नहीं थे।
चूँ-चूँ चूहा और पप्पू खरगोश दोनों इसी ताक में रहते थे कि कब नंदा लोमड़ी जरा खेत से हटे और कब वे अंगूरों की दावत उड़ाएँ। वे उसके खेत के कई-कई चक्कर लगाते। उनको बार- बार चक्कर लगाते देखकर नंदा भी समझ गई थी कि ये दोनों ही चोरी करना चाहते हैं ।
एक दिन चूँ-चूँ चूहे और पप्पू खरगोश ने देखा कि नंदा खेत में नहीं है। बस फिर क्या था, वे दोनों चुपचाप खेत में घुस गए। दोनों ने जी भरकर खूब अंगूर तोड़े। पेट भरकर उन्हें खाया और कुछ ले चलने के लिए बाँध लिए। दोनों चलने ही वाले थे कि तभी एकाएक पीछे से नंदा ने आकर उन्हें पकड़ लिया ।
अब चूँ-चूँ चूहा और पप्पू खरगोश दोनों ही नंदा की गिरफ्त में थे। वे बार-बार गिड़गिड़ा रहे थे – “मौसी ! हमें माफ कर दो। अब हम तुमसे बिना पूछे अंगूर नहीं तोड़ेंगे।”
नंदा बोली- “तुम जानते हो कि बिना पूछे दूसरे की चीज लेना चोरी कही जाती है। तुमने चोरी की है, इसका दंड तो तुम्हें अवश्य मिलेगा ही। तुम मुझसे माँगकर अंगूर लेते तो कुछ बात नहीं थी।”
पप्पू खरगोश को नंदा ने एक बाल्टी पकड़ाई और बोली- “जाओ! और बाहर कुएँ से दस बाल्टी पानी खींचकर लाओ। यही
तुम्हारा दंड है। ” फिर चूँ-चूँ चूहे से बोलीं- “चलो तुम पैने दाँतों से इन बेलों की कटाई करो। तभी तुम्हें छुटकारा मिल सकता है।”
लाचार होकर चूँ-चूँ चूहे और पप्पू खरगोश दोनों को काम करना पड़ा। कुएँ से पानी खींचते-खींचते पप्पू की सारी पीठ दुःख गई। उसने इतनी कड़ी मेहनत कभी न की थी। उधर बेलों की कटाई करते-करते चूँ-चूँ चूहे के सारे दाँत भी थक गए, पर वह छूट भी कैसे सकता था ?
पूरे दो घंटे की कड़ी मेहनत करने के बाद नंदा ने उन्हें छुटकारा दिया। बोली- “आज से तुम दोनों यह बात अच्छी तरह समझ लो कि जो चीज तुम्हें चाहिए, उसे अपनी मेहनत से प्राप्त करो।
अपने परिश्रम से मिलने वाली रूखी-सूखी चीज भी अच्छी है । पड़ोसी की चीज पर कभी ललचाओ मत। चोरी करके किसी चीज को लेने की कोशिश न करो। चोरी का दंड कभी न कभी तो मिलता ही है।”
” अब हम चोरी नहीं करेंगे।” चूँ-चूँ चूहे और पप्पू खरगोश दोनों ने अपने-अपने कान पकड़कर कहा।
उनकी इस बात पर नंदा लोमड़ी बड़ी प्रसन्न हुई । फिर दोनों को उनके तोड़े हुए अंगूर देते हुए बोली – “तुम्हारी इस प्रतिज्ञा की खुशी में मैं तुम्हें यह उपहार देती हूँ। कुछ दिन पहले मैं भी मुफ्त का माल खाने की सोचती थी, पर धीरे-धीरे मुझे समझ आ गई।
मैंने सोचा कि दूसरों से माँगने की अपेक्षा खुद मेहनत करके खाया जाए। इससे स्वाभिमान भी बना रहेगा, दूसरों के सामने हाथ भी नहीं फैलाना पड़ेगा और मनचाही चीज भी मिलेगी। आज तुम मेरी मेहनत का फल देख ही रहे हो।”
“तुम ठीक कह रही हो मौसी ! अब हम भी तुम्हारी तरह मेहनत करेंगे और अंगूर उगाएँगे। चूँ-चूँ चूहे, पप्पू खरगोश ने कहा और खुशी-खुशी अपने घर चले गए।”