सुंदर की उदारता
पीपल के पेड़ के नीचे सोनू कुत्ता चुपचाप बैठा था। उसे बड़ी तेज भूख लग रही थी। कहीं से खाना मिल जाए यही सोचता हुआ वह बैठा था ।
तभी सुंदर कौआ उड़ता हुआ पीपल के पेड़ पर आया । उसकी चोंच में पूरी एक रोटी थी। रोटी देखकर सोनू की भूख और भड़क उठी। सुंदर से किसी भी तरह से रोटी छीननी चाहिए, उसने मन ही मन सोचा ।
सोनू बोला—“सुंदर भाई ! मुझे पता ही न था कि तुम इतना अच्छा गाते हो! आज तो भरी सभा में वनराज सिंह ने तुम्हारे गाने की प्रशंसा की है। एक गाना तो सुनाओ।”
सुंदर और दिनों की भाँति अपनी प्रशंसा सुनकर अभिमान से फूला नहीं, क्योंकि कई बार ऐसा हो चुका था कि सोनू कुत्ता, चंटू लोमड़ी, लाली मुर्गी उसकी चापलूसी करके चालाकी से रोटी का टुकड़ा लेकर भाग गए थे।
उनकी चालाकी अब सुंदर कौआ अच्छी तरह समझ गया था। इसलिए वह सतर्क हो गया था। रोटी का टुकड़ा बड़ी सावधानी से उसने अपने पंजे में दबाया। फिर बोला—“ भाई! भूखे पेट मैं तुम्हें अच्छा गाना नहीं सुना पाऊँगा। पहले रोटी खा लूँ, तब गाना गाऊँगा।”
सुंदर कौआ आराम से कुतर-कुतरकर रोटी खाता रहा। सोनू पेड़ के नीचे बैठा ललचाई निगाहों से उसे देखता रहा। सोनू बहुत भूखा था, रोटी देखकर उसके मुँह से लार निकलने लगी।
सुंदर के मन में आया कि एक गस्सा वह सोनू को भी दे दे, पर सोनू कई बार उसे धोखा देकर पूरी की पूरी रोटी छीनकर भाग चुका है। इसलिए इसे सबक मिलना ही चाहिए। सुंदर ने अपने मन में कहा।
रोटी खा चुकने के बाद सुंदर पूरी आवाज से चिल्लाया- ‘काँव-काँव।” सोनू कुछ देर तो सुनता रहा फिर चिल्लाया-“बंद करो अपना यह बेसुरा राग।”
सुंदर बोला-‘तुमने ही तो कहा था गाना सुनाने को।”
” पर मैं तो भूखा हूँ। भूखे पेट गाना सुनना भी अच्छा नहीं लगता।” सोनू ने कहा। ” तो तुम खाने की तलाश क्यों नहीं करते ?” सुंदर ने कहा।
सोनू सकुचा गया। उससे कुछ उत्तर देते न बना । वह तो अधिकतर दूसरों की रोटी छीन झपटकर ही खाता था । “सोनू दादा! अपनी मेहनत से कमाकर खाओ।” सुंदर बड़े गर्व से बोला ।
“पर भाई! आज तो मुझे खाना कहीं भी नहीं मिला।” सोनू झूठ-मूठ बहाना बनाने लगा।
मैं बताता हूँ तुम्हें। यहाँ से पूर्व की ओर चले जाओ। वहाँ शिवजी का एक मंदिर है । आज सुबह-सुबह बहुत से यात्री वहाँ आए, उन्होंने वहाँ खाना बनाकर खाया था। उनकी बहुत सी भोजन की जूठन वहाँ अभी पड़ी हुई है। मैं भी रोटी वहीं से लाया था। सुंदर बोला।
सोनू को सहसा विश्वास न हुआ। “तुम जरा वहाँ जाकर, कष्ट उठाकर देखो तो सही।” सुंदर बोला।
लाचार, खाने की आशा में सोनू उसी ओर चल पड़ा, पर वह बहुत डरते-डरते जा रहा था। वह सोच रहा था कि कहीं सुंदर उसके विरुद्ध कोई षड्यंत्र न कर रहा हो।
उससे बदला न ले रहा हो। तभी उसने भर्र-भर्र की आवाज सुनी। जरूर ऐसा ही है। उसने सोचा और तेजी से उलटा वापस लौटने लगा।
कुछ दूर आकर सोनू रुका। सहसा उसने काँव-काँव की आवाज सुनी। सिर उठाकर ऊपर देखा तो सामने सुंदर कौआ पेड़ पर बैठा था । “तुम मुझे धोखा दे रहे हो सुंदर पेड़ों के पीछे शिकारी बैठे हैं। तुम मुझे फँसाना चाहते हो।” सोनू बोला।
सोनू की बात सुनकर सुंदर खूब हँसा और फिर बोला- “मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा। तेज हवा से पेड़ों के पत्ते भर्र – भर्र की आवाज कर रहे हैं। इसीलिए तुम्हें वहाँ शिकारी होने का भ्रम हो गया है। तुम सदैव मुझे धोखा देते रहे हो, इसलिए तुम सोच रहे हो कि तुम्हें धोखा दे रहा हूँ। जो जैसा होता है, वह दूसरों के प्रति भी वैसा ही सोचता है। मैं बुरे के साथ बुरा नहीं किया करता । मैं तो सदैव सबकी अच्छाई की बात ही सोचा करता हूँ।”
सोनू यह सुनकर बड़ा लज्जित हुआ। सुंदर की बात ठीक ही थी।
फिर सोनू सुंदर के साथ शिवजी के मंदिर के पास गया। वहाँ बहुत सारा खाना पड़ा था। देख लो ! मैंने झूठ तो नहीं कहा। सुंदर बोला।
सोनू तेजी से खाने पर झपट पड़ा। खूब भर पेट उसने खाना खाया। सुंदर काँव-काँव करता चारों ओर घूम रहा था।
‘सुंदर भाई ! अज तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं। अब किसी को धोखा नहीं दूँगा। अपनी मेहनत से कमाकर खाऊँगा। बेकार का डर छोड़ दूँगा।”
सोनू कहने लगा। “चलो! तुम सही रास्ते पर तो आए।” सुंदर ने कहा और काँव-काँव करते हुए उड़ चला ।