पोखर का जादू

दशहरे की छुट्टियों में मुरारी अपने गाँव खतौली आया। पूरे दो महीने बाद आया था वह । छुट्टियाँ कैसे बिताएगा ? यही सोचते- सोचते वह अपने घर जा पहुँचा। दरवाजे से ही पकवानों की सौंधी- सौंधी गंध उसकी नाक में घुसने लगी।

वह सोच रहा था कि आज तो माँ ने उसके स्वागत की जोरदार तैयारियाँ की होंगी। वह अपने पास बिठाकर खूब सारी चीजें खिलाएँगी।

माँ ने मुरारी का कुशल समाचार पूछा। एक प्लेट में भरकर नाश्ता मुरारी को देते हुए बोलीं- “बेटा ! जरूरत हो तो अरुणा से और कुछ माँग लेना।”

“पर तुम जा कहाँ रही हो माँ?” माँ के हाथ में लगे थाल के पकवानों और फलों पर दृष्टि डालते हुए मुरारी ने उत्सुकता से पूछा।

“बेटा! एक बहुत बड़े साधु इस गाँव में आए हैं। बरगद के पेड़ के नीचे बैठे तपस्या करते रहते हैं। हनुमानजी के बड़े ही भारी भक्त हैं वे। भूत-प्रेत भी उन्होंने सिद्ध कर रखे हैं।” माँ भाव- विभोर हुई कहती चली जा रही थीं।

मुरारी कुछ कहने जा रहा था, पर कहते-कहते रुक गया। माँ की आस्था को वह एकदम चोट नहीं पहुँचाना चाहता था। उसके मन में आया कि पीछे जाती हुई माँ को पुकारकर बुला ले, पर न जाने क्या सोचकर वह चुप रह गया।

मुरारी का मन खाने में भी न लगा। पकवानों की सौंधी गंध भी उसे आकर्षित न कर सकी। अरुणा कहती ही रह गई- “भइया कुछ और ले लो।” पर मुरारी ने प्लेट में कुछ नहीं रखने दिया। जल्दी-जल्दी खा-पीकर वह उठा। उसने अरुणा से पूछकर पता लगाया कि साधु बाबा ने कहाँ डेरा डाला है? फिर वह तेजी से घर से निकल पड़ा।

शीघ्र ही मुरारी हनुमानजी के मंदिर के पास पहुँचा। उसने दूर से ही देख लिया कि बरगद के पेड़ के नीचे अथाह भीड़ है। लगता था मानो सारा गाँव ही वहाँ जुट गया हो। मुरारी चुपचाप एक ओर जा खड़ा हो गया। फिर वह बड़े ध्यान से साधु की बातें सुनने लगा ।

उसने देखा कि एक के बाद एक व्यक्ति साधु के पास आता जा रहा था। वह बड़ी श्रद्धा से साधु के पैरों में सिर झुकाता। फिर अपनी माँग उसके सामने रखता।

एक कहता – “महाराज ! मेरी पत्नी बीमार है, वह ठीक हो जाए।”

दूसरा कहता – “महाराज ! मेरी फसल खूब अच्छी हो।”

तीसरा कहता- “मेरा घर पक्का बन जाए।”

चौथा कहता- “मेरी लड़की का विवाह हो जाए।” इस प्रकार एक के बाद एक ग्रामीण साधु के पास आते जा रहे थे। वे बड़े ही गिड़गिड़ाकर अपनी बात कह रहे थे।

मुरारी ने देखा कि साधु बड़े ध्यान से अपनी बड़ी-बड़ी लाल-लाल आँखों को खोलकर बात सुनता। फिर वह आँखें बंद कर लेता। मुँह से कुछ मंत्र बोलता । एक पल को मानो समाधि सी लगा ली हो।

फिर आँखें खोलकर एक चुटकी राख अपने कमंडल से निकालकर अपने पास वाली पोखर में डाल देता । पोखर से यदि आग की लपट निकलती तो इसका मतलब होता कि भूत प्रसन्न है और उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी होगी।

वह व्यक्ति बड़ी ही प्रसन्नतापूर्वक साधु को अपनी शक्ति के अनुसार भेंट चढ़ाकर वापस आ जाता। परंतु जब पोखर से आग की लपटें नहीं निकलती थीं तो इसका मतलब होता कि भूत खुश नहीं है। उसे प्रसन्न करने को भेंट चढ़ानी होगी।

तब कोई धन चढ़ाता तो कोई जेवर। मुरारी ने पाया कि महँगी चीजों से भूत खुश हो जाता था, क्योंकि चढ़ावे में आने के बाद जब साधु पोखर में राख डालता था तो आग की लपटें निकलने लगती थीं।

सहसा ही मुरारी के मस्तिष्क में एक विचार कौंधने लगा। वह तुरंत भीड़ को चीरता हुआ बाहर आ गया और घर की ओर बढ़ने लगा। दूर से साधु की जय-जयकार की ध्वनि काफी देर तक उसके कानों में आती रही।

एक-दो दिन में मुरारी के साथियों ने सारे गाँव में जोर-शोर से यह चर्चा फैला दी कि मुरारी ने भी पोखर वाले भूत को वश में कर रखा है। एक दिन जब शाम को साधु के आस-पास खूब भीड़ जुड़ी थी।

मुरारी और उसके साथी भी वहाँ पहुँच गए। रामू ने भीड़ में घोषणा की कि अब सबकी मनोकामनाएँ मुरारी बिना कुछ चढ़ावे और मनौती के ही भूत से पूरी कराएगा। लोग आश्चर्य से रामू की बातें सुन रहे थे।

भीड़ में फुसफुसाहट होने लगी। कुछ व्यक्ति कह रहे थे कि कल का छोकरा है, मुरारी, चला है साधु को चुनौती देने। भला यह क्या भूत वश में करेगा ?

भीड़ ने देखा कि मुरारी ने भी उसी प्रकार से आँखें बंद करके कोई मंत्र बोला। फिर उसने झोले में से एक चुटकी राख लेकर पोखर में डाली। तुरंत ही आग की लपटें निकलने लगीं।

लोगों ने पाया कि मुरारी ने भूत को अधिक खुश कर रखा है, क्योंकि मुरारी जो कुछ भूत से माँगता है, वह खुशी-खुशी उसे स्वीकार कर लेता और पोखर से आग की लपटें निकलने लगतीं।

सभी की नजरें मुरारी और उसके साथियों की ओर लगी थीं। इसी बीच सबकी नजरें बचाकर साधु चुपके से भीड़ से निकल लिया। थोड़ी दूर जाकर वह तेजी से भागने लगा, जिससे कि जल्दी से गाँव से दूर निकल सके। वह जानता था कि यदि पकड़ लिया गया तो उसकी खैर नहीं है।

सबसे पहले रामू की नजर साधु के स्थान पर गई। उसने देखा कि वहाँ साधु का अता-पता नहीं है। हाँ उसका कमंडल जरूर एक ओर लुढ़का पड़ा है। रामू जोर से अट्टहास करने लगा – ” तो भाई तुम्हारा साधु तो मुरारी से डरकर भाग गया।”

अब सभी की दृष्टि उस ओर गई। उन्होंने पाया कि सचमुच वहाँ साधु का पता ही नहीं है। सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। रामू ने खड़े होकर सभी को समझाया कि पोखर में भूत का कोई चक्कर नहीं है। “तो फिर पानी से आग की लपटें कैसे निकलती हैं ?” एक बुजुर्ग ने पूछा।

मुरारी सभी समझाने लगा कि यह तो विज्ञान का एक करिश्मा है। उसने पुड़िया खोलकर दिखाई और कहा कि यह साधारण राख नहीं है। यह राख जैसी लगती जरूर है, पर वास्तव में यह सोडियम नाम की एक धातु है । यह पानी में गिरते ही जलने लगती है, इसलिए पोखर में इसके डालते ही ऐसा लगता है कि पानी में से आग की लपटें निकल रही हैं।

रामू ने साधु के कमंडल को टटोला। वहाँ दो पुड़िया रखी थीं। एक में सादा राख थी और एक में सोडियम मिली। जब साधु और चढ़ावा चढ़वाना चाहता था तो वह सादा राख पानी में डालता था।

मनचाही भेंट मिलने पर वह सोडियम वाली राख पानी में डाल देता था। जब पानी में आग की लपटें निकलती थीं, तो व्यक्ति समझते थे कि भूत प्रसन्न हो गया है और हमारी मनोकामना पूरी हो गई है।

ये सारी बातें जानकर सभी को बहुत प्रसन्नता हुई। उस ढोंगी साधु को किसी ने अपनी सोने की अँगूठी चढ़ाई थी तो किसी ने अपनी सारी जमा पूँजी ही दे डाली थी। पर अब तो हो भी क्या सकता था?

सभी ग्रामवासियों ने प्रतिज्ञा की कि अब वे कभी भी जादू-टोनों में विश्वास नहीं करेंगे, जिससे कि उन्हें कोई ठग और छल न सके।

गाँव का मुखिया भी वहाँ उपस्थित था। उसने मुरारी और उसके साथियों को इनाम देने की घोषणा की। वास्तव में उन सभी ने मिलकर गाँव को बहुत बड़ी ठगी से बचा लिया था।

फिर मुखिया ने रामू और अन्य लड़कों को आस-पास के गाँवों में भी तुरंत भेज दिया। जिससे वे पहले वहाँ उस ढोंगी साधु के विषय में बता आएँ और वह उन्हें ठग न सके।

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