अपना काम अपने आप

जीतू को अपने मोती कुत्ते से बहुत प्यार था । वह उसकी खूब देखभाल करता था । रोज नहलाता था । रोज समय पर उसे खाना खिलाता था । जीतू मोती को बहुत-सी बातें सिखाता जैसे तेजी से दौड़ना, ऊपर उछलना, किसी चीज की पहिचान करना आदि ।

धीरे-धीरे मोती बहुत शरारती होता जा रहा था । एक दिन उसने छलांग लगाई बरामदे में लटके चिड़िया घोंसले को गिरा डाला । जीतू स्कूल से आया तो उसने पाया कि घोंसला टूटा पड़ा है ।

तिनके जमीन पर बिखरे पड़े हैं और चिड़िया चीं-चीं करके रो रही है । मोती भौं-भौं करके चिड़िया को भगाने की कोशिश कर रहा है । जीतू पलभर में समझ गया कि यह सब करतूतें मोती की ही हैं ।

उसने मोती के दोनों कान खींचे, एक चपत लगायी और समझाया कि ऐसा नहीं करना चाहिये ।

माँ बोली- ‘देखो ! यह बेचारी चिड़िया कितने दिनों से जुटी है। एक-एक करके तिनके बीन कर लाती है । कितनी मेहनत से इसने घोंसला बनाया है । इस मोती ने एक ही झटके में इसकी सारी मेहनत पर पानी फिरा दिया ।’

‘ओह ! बेचारी नन्हीं चिड़िया ।’ जीतू के मुँह से निकला । फिर वह सोचकर बोला- ‘माँ ! गलती मोती की है । मैं उस गलती का प्रायश्चित्त करूँगा ।’

‘कैसे बेटे ?’ माँ ने पूछा ।

‘मैं चिड़िया का घोंसला बनाऊँगा ।’ जीतू कहने लगा । माँ बोली- ‘ पर बेटे ! चिड़िया उसमें बैठेगी नहीं । अण्डे नहीं देगी ।’

‘वाह माँ ! तुम भी क्या बात करती हो । मैं इतना बढ़िया घोंसला बनाऊँगा कि चिड़िया देखती रह जायेगी । वह आराम से उसमें बैठेगी और मजे से अण्डे देगी ।’ जीतू बोला ।

जीतू की माँ कुछ नहीं बोली । वह जानती थी कि जीतू अपने मन की करेगा जरूर । फिर जीतू के घोंसले में चिड़िया भले ही न बैठे, माँ को उसमें हर्ज भी क्या था ? जीतू इसी बहाने एक नया काम जो सीख लेगा ।

दूसरे दिन रविवार की छुट्टी थी । जीतू नाश्ता करके, तैयार होकर अपने काम में जुट गया । उसने बाग से सूखे तिनके इकट्ठे किये । कुछ टहनियाँ लाया | बेकार पड़े तार से घोंसले का एक साँचा बनाया । फिर उसमें आड़े-तिरछे | करके तिनके लटकाये । जैसे-तैसे घोंसला बनकर तैयार हुआ ।

तब जीतू ने उसके अन्दर रुई की मुलायम – मुलायम पर्ते बिछा दीं । यों वह घोंसला बाहर से देखने में अधिक सुन्दर तो नहीं था, परन्तु अन्दर से वह बड़ा आरामदेह लग रहा था । जीतू ने घोंसला शहतीर पर लटका दिया ।

वह बड़ा ही प्रसन्न हो रहा था । मन ही मन सोच रहा था कि चिड़िया आयेगी तो घोंसला तैयार देखकर खुशी से फुदकेगी । फिर वह इस घोंसले में नन्हें-नन्हें अण्डे देगी । उनसे बच्चे निकलेंगे । वे चीं-चीं करके बोलेंगे, घर में फुदकेंगे ।

पर जीतू की सारी कामनायें व्यर्थ गयी । शाम को चिड़िया और चिरौटा आये । उन्होंने अपनी चोंच से घोंसले का एक-एक तिनका निकाल कर फेंक डाला । जीतू दौड़ा-दौड़ा माँ के पास गया और रुआँसा होकर बोला- ‘माँ ! चिड़िया ने तो सारा घोंसला ही नोंच कर फेंक डाला है ।’

‘बेटे मैंने तो तुम्हें पहले ही समझाया था । ये छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी स्वावलम्बी होते हैं । अपनी मेहनत से स्वयं अपना ही काम करते हैं । हम ही हैं जो दूसरों पर निर्भर रहते हैं । आराम-तलबी चाहते हैं ।’ माँ बोली ।

‘तो माँ । मेरा आज का सारा परिश्रम बेकार ही गया ?’ जीतू पूछने लगा ।

माँ ने समझाया-‘नहीं बेटे ! पहला सबक तो तुम्हें चिड़िया से यह मिला कि हमें अपना काम स्वयं करना चाहिये । अपना काम दूसरों से कराने की आदत अच्छी नहीं है । दूसरे, भले ही यह चिड़िया तुम्हारे बनाये घोंसले में बैठे, पर तुमने सारी चीजें एक स्थान पर रखकर ही है ।’

उसकी सहायता तो की जीतू ने दूसरे दिन स्कूल से आकर देखा कि चिड़िया और चिरौटे ने मिलकर उसके बनाये घोंसले के सारे तिनके निकाल लिये हैं ।

उन तिनकों से उन्होंने पास में ही एक नया घोंसला बना लिया है । वे दोनों ही बड़ी प्रसन्नता से बैठे-बैठे चीं-चीं-चीं-चीं करके शोर मचा रहे हैं ।

माँ बोली- ‘देखा जीतू ! आज ये दोनों कितने खुश हैं । यह खुशी अपने श्रम की सफलता की है । स्वयं परिश्रम करके जो कार्य किया जाता है, उसी में सच्चा आनंद मिलता है । आज ये दोनों दिनभर घोंसला बनाने में ही जुटे रहे हैं ।

जीतू सोचने लगा कि यह नन्हीं चिड़िया भी अपना काम अपने आप करती है । किसी पर बोझा नहीं बनती। फिर में भी अपना सारा काम माँ पर क्यों छोडूं । मैं भी अपना अधिकतर काम अपने आप ही करूँगा ।

अब जीतू अपने आप जूतों पर पालिश करता है । खुद अपना स्कूल का बस्ता लगाकर रखता है । प्यास लगने पर माँ को आवाज नहीं लगाता वरन् अपने आप पानी लेकर पी लेता है ।

अपनी चीजें भी संभाल कर स्वयं रखता है । माँ उसे अब बात-बात में टोकती भी नहीं है। वे उसकी सभी से प्रशंसा करती रहती हैं ।

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