भूत का भय

शिशिर को कहानी सुनने का बहुत शौक था । वह और उसकी बड़ी बहिन शैव्या दोनों रात को दादी माँ को घेर लेते और कहते- ‘दादी माँ ! हमें कहानी सुनाओ ।’

कभी वे शेर की कहानी की फरमाइश करते तो कभी राक्षस की कहानी की । उनकी दादी माँ को सैकड़ों कहानियाँ याद थीं । वे उन्हें तरह-तरह की नयी-नयी कहानियाँ रात को सुनाया करती थीं ।

शिशिर का एक दोस्त था मनोज । मनोज को भी कहानियाँ बड़ी अच्छी लगती थीं । उसकी दादी माँ तो गाँव में रहती थीं और मम्मी कहानी सुनाती नहीं थीं । इसलिये मनोज कहानियों की तरह-तरह की पुस्तकें पढ़ता रहता था ।

मनोज अपने पिताजी से कहता- ‘पिताजी ! हमें कहानियों की पुस्तक ला दीजिये ।’ पर वे उसे झिड़क देते । वे कह अपने ही पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ो । उनमें मन लगाओ, पर मनोज सारे दिन पाठ्य पुस्तकें भी कहाँ तक पढ़ता ?

परिणाम यह हुआ कि वह अपने जेब खर्च के पैसों में से चोरी-छिपे कहानी की पुस्तकें घर पर लाने लगा ।

मनोज आजकल भूत-प्रेतों की पुस्तकें पढ़ता रहता था । वह शिशिर को भूत-प्रेतों की अनेकों कहानियाँ सुनाता रहता था । शिशिर अपनी दादी माँ से पूछता – ‘दादी ! भूत-प्रेत सचमुच में होते हैं ? वे कहतीं – ‘नही बेटे ! नहीं होते ।”

पर मनोज कहता था कि भूत-प्रेतों की बातें सच्ची होती हैं । शिशिर के भोले मन में भी यह विश्वास जमता जा रहा था । अब वह डरपोक भी बनता जा रहा था । अन्धेरे में जाने में उसे डर सा लगता । वह सोचता कहीं भूत न आ जाये ?

अन्धेरे कमरे में जाता तो शैव्या को साथ लेकर जाता । कमरे में अकेला रह जाता और खड़खड़ की आवाज होती तो चीख जाता । शिशिर चारों ओर नजरें घुमा कर देखता कि कहीं कोई भूत-प्रेत तो नहीं आ गया है ।

दादी माँ उसकी इस आदत से बड़ी तंग थीं। वे बार-बार उसे समझाती थीं कि डरपोक न बनो । उस समय तो वह उसकी बात मान लेता, पर बाद में फिर उसे डर लगने लगता ।

एक रात की बात है कि शिशिर की नींद आधी रात में खुली । उसे पेशाब करने के लिये बाहर जाना था । उसने अपनी बहिन शैव्या को जगाया । शैव्या ने बिजली जलाई, पर | जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो बिजली गायब हो गयी ।

अब तो शिशिर डर के मारे काँपने लगा । जैसे-तैसे वह वापस लौटकर अन्दर आया । बाहर खूब आँधी और तूफान था । शैव्या ने बड़ी कठिनाई से दरवाजा बन्द किया ।

शैव्या तो जाकर सो गयी, पर शिशिर की आँखों में नींद न थी । हवा की तेज आवाज और बिजली की कड़क उसे | डरा रही थी । थोड़ी देर बाद उसे लगा कि छत पर बैठकर कोई पत्थर फेंक रहा है । छत से खूब जोर-जोर से खट-खट की आवाज आ रही थी । जोर-जोर से गूँज रही थी । टीन की छत खूब शिशिर डरकर शैव्या से लिपट गया ।

बड़ी मुश्किल से उसे नींद आयी। नींद में उसे डरावने सपने आते रहे । सपने में उसने देखा कि एक काले रंग का भूत अपने बड़े-बड़े दाँत निकाले उसकी ओर दौड़ रहा है । वह चीख उठा ।

शिशिर की चीख सुनकर दादी माँ दौड़ी आयीं । उन्होंने देखा कि वह चारपाई पर पड़ा डर के मारे काँप रहा है । ‘क्या बात है बेटे ?’ उन्होंने शिशिर के सिर पर हाथ फिराते हुए पूछा ।

दादी माँ से लिपटते हुए शिशिर बोला- ‘भूत !’ ‘भूत ! कहाँ है भूत ?’ दादी ने पूछा । शिशिर ने सपने की सारी बात सुना दी ।

‘ पर वह तो सपना था । तुम उल्टी-सीधी बातें सोचते रहते हो न, इसलिये तुम्हें वैसे ही सपने भी आते हैं । जो हम सोचते हैं, वही सपने में देखते हैं ।’ दादी शिशिर को समझा रही थीं ।

‘ पर भूत तो रात में ही आया था । सचमुच में आया था दादी !’ शिशिर कह रहा था ।

‘तुम्हें कैसे पता ? क्या तुमने उसे देखा था ?’ दादी माँ ने शिशिर से पूछा ।

‘नहीं दादी ! वह हमारे कमरे की टीन की छत पर बैठा पत्थर फेंक रहा था ।’ शिशिर ने बतलाया ।

दादी कुछ-कुछ मुस्करा पड़ीं । उन्होंने शिशिर का हाथ पकड़ा और ठण्ड में ही बाहर ले गयीं । जीने से ऊपर चढ़कर वे छत पर पहुँचे । शिशिर ने वहाँ पर जाकर देखा कि अभी भी बड़े-बड़े ओले जमे हुए पड़े हैं ।

दादी हँसकर शिशिर से बोलीं- ‘देख रहे हो ! रात में खट-खट की आवाज किसकी हो रही थी । भूत-प्रेत कुछ भी न था । ओले बरस रहे थे । उनकी आवाज थी ।’

शिशिर आँखें फाड़-फाड़कर उन ओलों को देख रहा था । वह सोच रहा था कि उसकी सारी कल्पनायें बेकार थीं । अकारण ही वह इतना डरा ।

दादी माँ खड़ी हुई अभी भी समझा रही थीं- ‘शिशिर बेटा ! भूतों को मानना अन्धविश्वास मात्र है । ऐसी बिना सिर-पैर की बातों को मानने से कोई लाभ नहीं है ।

इससे हमारा आत्म-विश्वास समाप्त होता है और भय की भावना बढ़ती है । आदमी कायर व डरपोक बनता है । कायर व्यक्ति कभी किसी काम में सफल नहीं होता । तुम बहादुर बनो । बेकार का डर छोड़ो ।

दादी की बात शिशिर की समझ में आ गयी थी । अब उसे अन्धेरे में जाने से डर नहीं लगता । भूत-प्रेतों की कहानियों पर भी वह विश्वास नहीं करता ।

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