नकल का फल

राहुल चार वर्ष का था, पर था वह बड़ा ही शरारती । वह न तो चुपचाप बैठ सकता था और न बिना बोले रह सकता था । हर समय कुछ न कुछ करता रहता था । नकलची भी वह बहुत था ।

एक बार किसी को काम करते देख लेता, बस फिर वही काम खुद करने लगता । उसने एक दिन माँ को स्टोव जलाते देखा । माँ अन्दर गयी तो राहुल खुद स्टोव जलाने बैठ गया । एक दिन उसने अपने घर में बढ़ई को लकड़ी काटते देखा । बढ़ई खाना खाने गया तो राहुल भी आरी लेकर खुद लकड़ी काटने में जुट गया ।

बेचारा बड़ों का हर काम करता, सभी से डाँट खाता और अपना-सा मुँह लेकर लौट आता । यह उसके माता-पिता की भी गलती थी कि वे उसे किसी ऐसे कार्य में नहीं लगाते थे जिसमें उसकी प्रतिभा का सदुपयोग हो ।

बच्चे को तो कुछ न कुछ काम करने को चाहिये ही । उसकी शक्ति का सदुपयोग अच्छे कार्य में नहीं कराया जायेगा तो वह गलत कार्यों में ही निकलेगी ।

राहुल को जानने की जिज्ञासा भी बहुत थी । माँ से हर समय वह कुछ न कुछ प्रश्न करता ही रहता था ।

एक बार राहुल के नानाजी आये । गाँव में रहते थे, वहाँ वे खेती करते थे । नानाजी ने चलते समय कहा- ‘चलो राहुल ! कुछ दिन हमारे घर रहना । रास्ते में तुम्हें बहुत-सी नई-नई चीजें भी दोखेंगी । गाँव भी तुमने कभी देखा नहीं है । वहाँ अच्छी-अच्छी चीजें खाने को मिलेंगी ।’

राहुल नानाजी के साथ जाने को तैयार हो गया । बस में उसने बहुत-सी नई-नई चीजें देखीं और वह रास्ते भर नानाजी से उनके विषय में पूछता रहा ।

राहुल घर पहुँचा तो नानी उसे देखकर बहुत खुश हुई । वहाँ राहुल के मामा का लड़का सोनल भी था । वह आयु में राहुल के बराबर था । राहुल उसके साथ खेलता रहता । राहुल का गाँव में खूब मन लग गया ।

एक दिन राहुल के नानाजी राहुल और सोनल दोनों को खेत पर ले गये । वहाँ उसने देखा कि दो सुन्दर बैल भी बँधे हैं । वे सफेद रंग के, बहुत प्यारे और सुन्दर थे । उन दोनों बैलों के नुकीले और घुमावदार सींग थे |

‘ये बैल यहाँ क्या करेंगे ?’ राहुल पूछने लगा । ‘बेटे । बैलों को हल में लगाकर हल जोता जायेगा । ये खेतों के लिये बड़े ही उपयोगी होते हैं । इनके गोबर से बहुत अच्छी खाद बनती है । घर पर चलेंगे तो इन्हें बैलगाड़ी में जोत लेंगे ।’ नानाजी ने समझाया ।

राहुल खेत में बैठा-बैठा बड़े ध्यान से बैलों का हल चलाना देखता रहा । दोपहर को नानी भी खाना लेकर खेत पर ही आ गयीं । सबने मिलकर खाना खाया । घर चलते समय नानाजी ने बैलों को बैलगाड़ी में जोता ।

नानाजी, नानी, राहुल, सोनल सभी गाड़ी में बैठ गये । बैलों को हाँककर नानाजी गाड़ी आगे बढ़ाने लगे । ‘नानाजी । ये बैल तो दो हैं । ये हम सबका और गाड़ी का इतना सारा बोझ कैसे ढो लेते हैं ?’

राहुल ने बड़ी ही उत्सुकता से पूछा । नानाजी बोले- ‘ये भूसा, घास और दाना खाते हैं । इन सब चीजों में बड़ी ताकत होती है ।

कुछ सोचते हुए से राहुल ने कहा- ‘हाँ ! माँ भी कहती हैं, हम जैसी चीज खाते हैं वैसे ही बनते हैं । दूध पीने से ताकतवर बनते हैं । चाट-पकौड़े आदि खाने से पेट खराब ही होता है और बीमार पड़ते हैं ।’

‘हाँ राहुल ! यह बात सच है ।’ नानी बोली । ‘ पर माँ ने कभी यह तो नहीं बताया कि भूसा और घास खाने से ताकत बढ़ती है । उन्होंने ना ही मुझे, ना ही पिताजी को कभी ये चीजें खिलायी हैं ।’

राहुल अभी भी न जाने किस सोच में डूबा हुआ कह रहा था । राहुल की बात सुनकर सभी खिलखिलाकर हँस पड़े । नानाजी बोले-‘पगले ! ये चीजें तो जानवर खाते हैं ।’ तभी घर आ गया और सभी गाड़ी से उतर पड़े ।

पूरे एक दिन राहुल मन ही मन सोचता रहा कि भूसा खाने से ताकत आती है । मैं भूसा खाऊँगा तो मुझमें भी खूब-सी शक्ति आ जायेगी । फिर कोई भी भाई-बहिन उसे ‘सीकिया- पहलवान’ कहकर नहीं चिढ़ायेगा ।

पर उसे यह बात नाना-नानी से कहने की हिम्मत न पड़ी । राहुल सोच रहा था, उन्हें अगर बताऊँगा तो वे हँसेंगे ही । इसलिये जब मैं भूसा खा-खाकर पहलवान हो जाऊँगा तभी बताऊँगा ।’

दूसरे दिन शाम को राहुल चुपचाप घर के दरवाजे पर आ गया । वहाँ बैल बँधे हुए थे और अपनी-अपनी नाद में सानी खा रहे थे । राहुल ने चोर निगाहों से इधर-उधर देखा सब ठीक है ।

नानी रसोईघर में खाना पका रही हैं और नाना चारपाई पर बैठे अखबार पढ़ने में लीन हैं । तभी घर के अन्दर से सोनल आया। राहुल को चुपचाप | देखकर बोला- ‘यहाँ क्यों खड़े हो राहुल ?’

शी-शी चुप रहो ।’ मुँह पर उँगली रखते हुए राहुल बोला । फिरआज वह सोनल के कान में बोला-‘सोनल ! बैलों की सानी खायेंगे ।’

‘पर आखिर क्यों ?’ सोनल पूछने लगा ।

‘ओह ! तुम जानते नहीं बैल सानी खाते हैं, इसलिये इनमें इतनी शक्ति है । हम खायेंगे तो हम भी बहुत शक्तिशाली बन जायेगे । फिर गाँव के टीपू पहलवान को हम मिनटों में हरा दिया करेगे ।’ राहुल ने उसे समझाया ।

सोनल को भी यह तर्क अच्छा लगा । अब क्या था ? राहुल और सोनल दोनों ने ही बैलों की नाद में से धास व भूसे की सानी खानी शुरू कर दी । प्रारम्भ में उनका जी बहुत मिचलाया, मुँह में भी भूसा चुभा । पर पहलवान बनने के लालच में राहुल और सोनल ने बहुत-सी घास निगल ली ।

रात को नानी ने खाना खाने के लिये दोनों को पुकारा । पर उन्होंने कह दिया कि भूख नहीं है । राहुल और सोनल के पेट में दर्द भी होने लगा था। थोड़ी देर तक तो वे उसे सहते रहे । जब न सहा गया तो जोर-जोर से रोने लगे ।

रोने की आवाज सुनकर उनके नानाजी दौड़े चले आये । वे तुरन्त भागे-भागे डाक्टर के पास गये । डाक्टर ने उनका पेट टटोला । वह सख्त था । डाक्टर ने पूछा- ‘बच्चो ! तुमने क्या खाया है ? सच-सच बताओ । नहीं तो फिर इन्जेक्शन लगाना पड़ेगा ।’

इन्जेक्शन के डर के कारण राहुल और सोनल दोनों ही बोल पड़े- ‘डाक्टर साहब ! हमने भूसा और घास खायी है ।’ ‘वह क्यों ?’ डाक्टर ने आश्चर्यचकित होकर पूछा । अब उन दोनों ने उन्हें भूसा खाने की सारी कथा विस्तार से सुना दी। उनकी बातें सुनकर डाक्टर और नाना-नानी खूब ही हँसे ।

नानाजी बोले- ‘बेटा ! अनुकरण सोच-समझ कर ही करना चाहिये । सब काम सबके अनुकूल नहीं हुआ करता । बिना अकल के जो नकल की जाती है वह सफल नहीं हुआ करती ।’

डाक्टर ने दोनों को कड़वी – कड़वी दवा पीने के लिये दी । उस दिन से राहुल ने अपने कान पकड़े कि अब वह किसी की नकल नहीं करेगा और अकल से काम लेगा ।

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