चंगू-मंगू चले घूमने

चुनचुन चूहे के दो छोटे-छोटे बच्चे थे । यों उन्होंने अभी-अभी चलना सीखा था, पर थे वे बड़े शरारती । सारे दिन कुछ न कुछ उछल-कूद मचाते ही रहते थे । पल भर भी वे चैन से नहीं बैठ सकते थे ।

चुनचुन चूहा उनकी शरारतों से तंग आ गया । कभी वे एक-दूसरे से ही लड़ने लगते । कभी बिल से बाहर जाने लगते । चुनचुन चूहा उन्हें समझाता रहता ।

चुनचुन चूहा बार – बार उन्हें बताता कि तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो । बिल से बाहर न जाया करो । बड़ी मुश्किल से वह उन्हें घर रोके रखता ।

एक दिन की बात है । चुनचुन चूहा खाना लेने बाहर चला गया । उसका बड़ा बेटा चंगू अपने छोटे भाई से बोला- ‘मंगू ! आज तो घर में बैठे-बैठे बड़ी घुटन – सी लग रही है । चलो बाहर ही घूमने चलें 1

मंगू बोला- ‘भैया ! पिताजी तो बाहर जाने के लिये मना करते हैं । वह वापिस लौटकर आयेंगे और हमें घर पर नहीं देखेंगें तो नाराज होगें ।’

‘पर हम तो जरा-सी देर को जायेंगे 1 पिताजी के | लौटने से पहले ही घर वापिस आ जायेगे ।’ चंगू बोला । मंगू भी चंगू की बातों में तुरन्त आ गया । अब वे दोनों ही घूमने बाहर निकले ।

बिल से बाहर आकर उन्हें बहुत अच्छा लगा । वे चिन्मय के सारे घर में घूमें खाने की मेज पर दोनों भाई चढ़ गये । वहाँ चंगूमंगू ने छककर दावत उड़ाई । तरह-तरह की मिठाइयाँ और फल खाये ।

उन्होंने इतना अधिक खा लिया था कि उनसे चला भी नहीं जा रहा था । तभी चिन्मय और उसकी माँ खाना खाने आ गये । विवश होकर चंगमंगू को मेज पर से उतरना ही पड़ा ।

मेज से उतरकर दोनों धीरे-धीरे अपने बिल की ओर बढ़ने लगे । पर रास्ते में उन्होंने देखा कि बिल्ली चिन्मय की पालतू थी । वे दोनों सोचने लगे कि आज तो हमारी खैर नहीं । आज तो निश्चित रूप से हम मरे ।

मंगू अपनी मूँछों को हिलता हुआ चंगू से कहने लगा- ‘भैया ! आज तुम्हारी बात मानने का ही यह फल मिला है । न तुम कहते, न हम बाहर आते । पिताजी की बात मान लेते तो यों हमें मौत के मुँह में न जाना पड़ता । बड़ों की बात मानने का यही फल होता है ।’

चंगू बोला- ‘हाँ ! यह बात तो मैं भी समझ पा रहा हूँ कि हमें पिताजी की आज्ञा पालन करना चाहिये । परन्तु इस समय तो अब धैर्य रखो ।’

‘मीत सामने खड़ी है और तुम मुझसे धैर्य रखने की कहते हो ।’ मंगू झँझलाते हुए बोला ।

‘भाई ! अधीरता से तो कोई काम चलेगा नहीं । धैर्यपूर्वक स्थिति पर विचार करने से ही संकट दूर होगा ।’ चंगू सोचता हुआ बोला ।

‘ पर मेरी तो बुद्धि ही काम नहीं कर रही है ।’ सिर खुजलाते हुए मंगू कह रहा था ।

चंगू ने समझाया- ‘भाई ! विपत्ति में जो सोच-विचार कर कार्य करता है, वह निश्चित ही विपत्ति को दूर भगा देता है । इसलिये विचारों को संयमित रखो ।’

फिर चंगू ने मंगू को एक उपाय बताया | वह बोला- ‘अब हम साथ-साथ ही चलेंगे । तुम दाहिनी तरफ से बिल की ओर जाना और मैं बाँयी ओर से आऊँगा । इस प्रकार बिल्ली का ध्यान विभाजित हो जायेगा । उसे चकमा देते हुए हम बिल में घुस जायेंगे । यदि मरेगा भी तो एक ही भाई मरेगा । क्योंकि इस प्रकार बिल्ली एक ही ओर झपट्टा मार सकेगी । एक भाई तो बिल में सुरक्षित पहुँच जायेगा । वही पिताजी को सारी बात बता देगा ।’

यह बात मंगू को भी पसन्द आ गयी । अब दोनों तेजी से दो ओर से बिल की तरफ बढ़े । बिल्ली ने मंगू पर झपट्टा मारा । तभी चंगू पीछे से बिल्ली पर फुदक पड़ा ।

बिल्ली चौंक पड़ी, उसका पंजा ढीला पड़ गया । इतने में पंजे में फँसा मंगू दौड़कर बिल में घुस गया । बिल्ली ने जितनी देर में पीछे मुड़कर देखा उतनी देर में चंगू भी बिल में घुस चुका था ।

इस प्रकार से जैसे-तैसे चंगू-मंगू की जान बची । मंगू के शरीर पर कई जगह कुछ खरोंच भी आ गयी थीं । चंगू ने उन खरोंचों पर दवा लगायी ।

अब दोनों भाइयों ने अपने कान पकड़े और निश्चय किया कि जब तक वे बड़े नहीं हो जायेंगे और जब तक पिताजी उन्हें आज्ञा नहीं देंगे तब तक वे बिल से बाहर नहीं निकलेंगे ।

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