मीठे अंगूर
अमरकण्टक वन में तरह-तरह के फलों के वृक्ष लगे थे । चीनू बन्दर के वहाँ सबसे अधिक आनन्द हुए थे । कभी वह आम खाता था तो कभी अमरूद । कभी किसी पेड़ पर बैठा रहता तो कभी किसी पेड़ पर ।
आप के पेड़ पर अंगूरों की एक बड़ी सुन्दर बेल फैली हुई थी । उसके रस भरे बड़े-बड़े पीले-हरे उन अंगूरों की सारे जंगल भर में प्रसिद्धि थी । कलिया कोयल, हरियल तोता, | चानी चिड़िया, चीनू बन्दर आदि बहुत से अन्य पक्षी उस वृक्ष पर सारे दिन ही बैठे रहते थे ।
एक दिन अमरकण्टक वन में पास के जंगल से एक लोमड़ी आ गयी । उसका नाम था वाणी । अमरकण्टक वन में वाणी की बहिन रहती थी । उसी से मिलने वह यहाँ आयी थी ।
चलते-चलते वाणी थक गयी । थक कर वह आम के पेड़ के नीचे बैठ गयी । ठण्डी-ठण्डी हवा ने उसकी सारी थकान दूर कर दी । सहसा ही वाणी की निगाह पेड़ के तने पर पहुँची ।
उस पर बड़ी सुन्दर अंगूरों की बेल चढ़ी हुई थी । रसभरे सुन्दर-सुन्दर, गोल-मटोल अंगूरों को देखकर वाणी के मुँह में पानी भर आया और उसकी लार टपकने लगी । वाणी ने अंगूरों पर छलांग लगायी, पर अंगूर ऊँचाई पर लगे थे ।
उसका छलांग लगाना बेकार गया । वाणी का बार-बार ही कूदना देखकर पेड़ पर बैठी कलिया कोयल, हरियल तोता, चानी चिड़िया और चीनू बन्दर सभी हँस पड़े । वाणी की जीभ चटकारे भर रही थी ।
अंगूर पाने के लिये बेताव हो रही थी । उसने देखा कि पेड़ पर बैठा पक्षियों का झुण्ड आराम से अंगूरों की दावत उड़ा रहा है ।
वाणी ने सोचा कि मैं अंगूरों तक पहुँच नहीं पाऊँगी । पेड़ पर बैठे इन पक्षियों से ही माँग लेती हूँ । वह कलिया कोयल से बोली- ‘कलिया बहिन ! कृपा करके दो-चार अंगूर मेरे लिये भी गिरा दो ।’
चार बार कहने पर तो कलिया कोयल ने कहीं जाकर लोमड़ी की बात सुनी । फिर वह बोली- ‘ओह मौसी ! अंगूर खाने भी क्या जरूरी हैं ? कुछ और खाकर पानी पी लेना । मुझे देर हो रही है । मैं तो घर जा रही हूँ ।’ इसके बाद कुहुक-कुहुक करती कलिया कोयल फुर्र से उड़कर चली गयी ।
वाणी लोमड़ी फिर चीनू बन्दर से बोली- ‘भैया चीनू ! मैं बड़ी थकी हुई हूँ । तुम मुझे कुछ अंगूर गिरा दो । तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी ।’
चीनू बन्दर मुँह चिढ़ाकर बोला- ‘ओह काकी ! तुमने भी कभी किसी को अंगूर खिलाये हैं ? तुम भी किसी को कुछ देती हो ? जो दूसरों को दे नहीं सकता वह पाने का भी अधिकारी नहीं है । जो देता है वही पाता है ।’
फिर वाणी हरियल तोता से बोली- ‘भैया ! तुम ही मुझे कुछ अंगूर खिला दो ।’
हरियल तोता बोला-‘मौसी ! एक दिन मैं तुम्हारे घर गया था तो तुमने मुझे बैठाया तक नहीं । मैं कहता- कहता थक गया कि मौसी में प्यासा हूँ, मुझे जरा-सा पानी पिला दो, पर तुमने मुझे एक बूँद पानी तक न दिया ।’
चानी चिड़िया बोली ‘मौसी माफ करना ! हम सब मिल-जुलकर प्रेम से रहें यही अच्छा है । तुम देख ही रही हो कि हम सब पक्षी आपस में कैसे भाई-चारे से रहते हैं । तुम्हारी बुरी आदत है कि तुम दूसरों में फूट डलवा सकती हो । कभी किसी की सहायता नहीं करतीं । यही कारण है कि कोई तुम्हारी सहायता नहीं करता ।’
वाणी लोमड़ी की समझ में अपनी गलती आ रही थी । पर वह बोली- ‘रहने दे ! अंगूर खट्टे हैं, मैं नहीं खाऊँगी ।’
चानी चिड़िया करने लगी- ‘नहीं मौसी ! अंगूर खट्टे तो नहीं हैं । अमरकण्टक वन के ये अंगूर तो दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं । तुम्हारे लिये मैं कुछ अंगूर गिराऊँगी । उन्हें खाकर देखना तब बताना कि ये कैसे हैं ? पर पहले वायदा करो कि तुम भी सबकी सहायता किया करोगी, सबके साथ प्रेम से रहोगी ।’
वाणी भी अपनी गलती समझ रही थी । उसने सभी के सामने प्रतिज्ञा की कि अब वह सभी से सज्जनता का व्यवहार करेगी । सभी के साथ मिल-जुलकर रहेगी, दूसरों की सहायता करेगी ।
उसकी इस प्रतिज्ञा की खुशी में हरियल तोता, चानी चिड़िया, चीनू बन्दर सभी ने पेड़ से खूब सारे अंगूर गिराये । बड़े ही मीठे थे अंगूर ! वाणी ने उन्हें चटखारे ले-लेकर खाया । जो बचे वह अपनी बहिन के लिये पोटली में बाँध लिये ।
पहले वाणी सभी से कहती थी कि अमरकण्टक वन के अंगूर बड़े खट्टे हैं । क्योंकि वह किसी भी तरह उनको पा नहीं सकती थी । अब वह सभी से कहती है कि ये अंगूर बड़े अच्छे हैं । सहयोग संगठन से वाणी के लिये खट्टे अंगूर भी मीठे बन गये ।