बर्र का उपदेश

सुन्दर कानन में भासुरक नाम का शेर रहता था । एक दिन उसने एक भालू को मारा । फिर वह भालू को खींचकर अपनी गुफा में ले आया । गुफा में शेर के छोटे-छोटे बच्चे थे । शेर उन्हीं को शिकार सिखाने के लिये भालू को मारकर लाया था ।

शेर अपने बच्चों को दाँत से नोंचने और पंजे मारने का एक अभ्यास करा रहा था । वे दोनों ही बच्चे बड़े ध्यान से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ।

उधर कई दिनों से शेर की गुफा में एक बर्र भी अपना छत्ता बना रही थी । गुफा में एक ऐसा छेद था जो नीचे | दीवाल तक खुला था । उसी में बर्र अपने रहने का इन्तजाम कर रही थी ।

बर्र छेद में से नीचे से ही मकड़े को पकड़ लाती । फिर उसे मूर्छित बनाती, तब उसे अपने घर में हँसने का प्रयास करती । बर्र छेद में बहुत से मकड़े हँस रही थी ।

शेर कई दिनों से बर्र की यह हरकत देख रहा था । पर वह उसकी मूर्खता पर चुप था । आज जब शेर बच्चों को शिक्षा दे रहा था तो बर्र भी बर्र – बर्र करती घण्टों से शोर मचा रही थी ।

कभी वह गुफा के किसी कोने में घूमती तो कभी शेर के सिर के सिर के ऊपर भिनभिनाती । यह देखकर शेर को बहुत गुस्सा आया वह 1 बोला- ‘अरी मूर्खा ! तुझे क्या दीखता नहीं कि तू किसके घर में है ? क्या आज ही आफत आयी है ? क्या आज तू मेरे

हाथों मरना चाहती है, जो यों आसपास मँडरा रही है । चल भाग यहाँ से, नहीं तो आज तुझे कुचल-मसलकर डाल दूँगा ।’ बर्र बोली- ‘भाई ! यह गुफा न तो तुम्हारी है न मेरी है । जंगल में यह गुफा बनी है । इस पर जैसा तुम्हारा अधिकार है वैसा ही मेरा भी है। मैं तुम्हारा बिगाड़ ही क्या रही हूँ ? तुम्हें मुझे यहाँ से भगाने का अधिकार भी क्या है ?’

बर्र की बात सुनकर शेर आपे में न रहा । उसने दौड़कर दीवाल पर बैठी बर्र को अपने पंजे से मारना चाहा । परन्तु वह फुर्र से उड़ गयी और उसने शेर को कई जगह से काट लिया ।

अब तो भासुरक दर्द के मारे चिल्लाने लगा । अपमान का कड़वा घूँट भी उसे पीना पड़ा । वह सोचने लगा कि इतना शक्तिशाली होकर, जंगल का राजा होकर भी मैं एक अदना-सी बर्र से हार गया । पर वह कर भी क्या सकता था ?

उड़ तो वह सकता ही नहीं था । उसके मुँह पर उसने कई जगह काट लिया था और उसका मुँह फूल-फूलकर कुप्पा-सा हुआ जा रहा था ।

बर्र अब गुफा की छत पर जा बैठी । वहीं से वह कहने लगी- ‘भासुरक भाई ! तुम चाहे कितने ही बड़े क्यों ने हो, जंगल के राजा ही क्यों न हो, पर बात करने की सभ्यता तुम में बिल्कुल भी नहीं है ? कोई भीतर से कैसा है ?

इसका परिचय उसके व्यवहार से ही मिलता है । व्यवहार से जो परिचय मिलता है, वही उसका सच्चा परिचय होता है । जो कर्कश स्वर में बोलता है, वह असभ्य होता है ऐसा प्राणी दूसरों पर अपना बड़प्पन नहीं छोड़ता अपितु वह तो ओछापन ही दिखाता है । कडुवा बोलने वाले के सभी प्रायः शत्रु ही बन जाते हैं ।

दर्द से कराहता हुआ सिंह चुपचाप मुँह लटकाये हुए बर्र का उपदेश सुन रहा था । बर्र फिर कहने लगी- ‘तुम्हें काटने की मेरी इच्छा तो तनिक भी न थी, पर तुम्हें यही शिक्षा देने के लिये मैंने काटा था कि न कोई छोटा है न बड़ा । सभी की अपनी अलग-अलग शक्ति-सामर्थ्य है । हम अपने अहंकार के गर्व में किसी का भी तिरस्कार न करें ।’

भासुरक की समझ में अब अपनी गलती आ गयी थी । वह बोला- ‘बहिन ! अहंकार वश मैंने तुमसे जो कुछ भी कहा है उसके लिये मुझे माफ कर दो। तुम शरीर से छोटी हो तो क्या हुआ, हो तो बड़ी ही ज्ञानी । अब मैं किसी के साथ दुर्व्यवहार न करूँगा ।’

बर्र कहने लगी- ‘भाई ! ऐसा कहना तुम्हारे बड़प्पन के ही अनुरूप है । अपनी गलती को स्वीकार करना और उसे दूर करने का प्रयास करना महानता है ।’

‘बर्र बहिन ! अब तुम कहीं मत जाना । इस गुफा में ही आराम से रहना । तुम ठीक ही कहते हो कि कोई वस्तु किसी एक की नहीं होती । सभी को मिल-जुलकर इसका उपयोग करना चाहिये ।’ सिंह भासुरक विनीत स्वर में बोला ।

अब भासुरक का व्यवहार जंगल के अन्य जीव-जन्तुओं के साथ भी बदल गया है । वह सबसे विनय भरा व्यवहार करता है । और बदले में सबका सद्भावना भरा स्नेह पाता है ।

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