गुस्से का फल
चम्पू बन्दर की शरारतों से अमरकण्टक वन के सारे जानवर बड़े परेशान थे । उसकी शरारतों का कोई अन्त न था । कभी वह पेड़ की छाया में सोते हुए किसी भालू की पूँछ खींचकर भाग जाता ।
कभी किसी बूढ़े जानवर का खाना छीन लेता । कभी किसी सोते जानवर पर पानी ही छिड़क आता ।
चम्पू की माँ उसे समझाती थी- ‘बेटा ! तुम यह बेकार के शरारत भरे काम छोड़ दो । इनसे दूसरों को परेशानी होती है, | इससे तुम्हारा भी कुछ भला नहीं होता है । इतनी शक्ति और समय तुम दूसरों की सहायता करने में लगाओगे तो सभी तुम्हारी बढ़ाई करेंगे और सभी तुम्हें प्यार करेंगे ।’
पर चम्पू की समझ में माँ की सीख आती ही न थी । एके दिन तो वह शरारत करना बन्द रखता, पर दूसरे दिन से फिर उसका काम चालू हो जाता ।
पर इस बार तो चम्पू बन्दर की शरारतों की हद ही गयी । घटना यों घटी कि चम्पू पीपल के पेड़ पर बैठा था उसी पर नन्दा कौवा और उसकी पत्नी काली भी रहते थे । नन्दा कौवा बार-बार काँव-काँव करके अपनी पत्नी को पुकारता था ।
चम्पू बन्दर बोला- ‘वाह ! ईश्वर ने कैसी बढ़िया आवाज दी है तुम्हें ।’
यह सुनकर नन्दा कौवा बोला- ‘चम्पू ! तुम यहाँ से चले जाओ, हमें अपना काम करने दो । जहाँ तक आवाज का प्रश्न है तो हमारी आवाज ही भली है। उससे कोई डरता तो नहीं । हम घुड़की देकर किसी को डराते तो नहीं हैं ।”
नन्दा’ कौवे की बात सुनकर चम्पू को गुस्सा आ गया । उसने तुरन्त आगे बढ़कर पेड़ की डाल पर लटका नन्दा का घोंसला तोड़ डाला । उसमें बैठे दो छोटे-छोटे बच्चे भी चम्पू कुचल डाले । यह देखकर नन्दा और काली हाय-हाय कर उठे ।
चम्पू ने यह काम जान-बूझकर नहीं किया था । गुस्से में ही अचानक हो गया था । काली कौवी अपने बच्चों के मरा देखकर चीख-चीख कर रो उठी । नन्दा कौवा की तेज आवाज सुनकर ही बहुत से पशु-पक्षी वहाँ इकट्ठे हो गये ।
सभी पूछ रहे थे- ‘क्या बात है ? क्या हुआ ?’
सभी ने चम्पू की करतूतें सुनीं तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया । कालू भालू ने चम्पू को गिरफ्तार किया और महाराज शेर की अदालत में ले चला । उसके पीछे-पीछे नन्दा कौवा, काली कौवी, सोनी गाय, प्रीता लोमड़ी, चुनिया बकरी तथा और बहुत से अन्य जानवर चले आ रहे थे ।
महाराज शेर की अदालत जमी हुई थी । बरगद के पेड़ के नीचे एक ऊँचे चबूतरे पर वे बैठे थे । न्याय कराने के लिये आये हुए कई जानवर वहाँ पहले से ही मौजूद थे ।
उन सभी का न्याय करने के बाद महाराज शेर ने कालू भालू से प्रश्न किया- ‘कहिये ! आप कैसे आये ?’ कालू भालू ने गिरफ्तार किये चम्पू की ओर इशारा किया और सारी कथा सुना दी । काली कौवी रो-रोकर कहने लगी- ‘महाराज ! इस दुष्ट चम्पू बन्दर ने मेरे बच्चों को मारा है । मुझे न्याय मिलना चाहिये ।’
चम्पू सहम गया था। वह कह रहा था – ‘महाराज ! मैंन जान-बूझकर बच्चों को नहीं मारा है । मैं उस समय क्रोध में पागल हो गया था। गुस्से के कारण मुझे भले-बुरे का ज्ञान नहीं रहा था । मुझे माफ कर दीजिये ।’
सिंह कहने लगा- ‘चम्पू ! गुस्से की आदत बहुत बुरी है । क्रोध में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता, कुछ भी कर डालते हैं । यह सब तुम अब मान भी रहे हो । पक्का वायदा करो कि आगे से कभी क्रोध नहीं करोगे ।’
चम्पू ने अपने कान पकड़े और सभी के सामने प्रतिज्ञा की कि अब वह क्रोध नहीं करेगा |
तभी सिंह महाराज के पीछे खड़ा उनका न्यायमन्त्री रामू रीछ तुरन्त बोला- ‘महाराज ! चम्पू पर हत्या का अभियोग है । उसे दण्ड दिया जाये ।’
चम्पू गिड़गिड़ा रहा था – ‘महाराज ! उस समय मैं क्रोध के कारण नासमझ हो गया था । मुझे माफ किया जाये ।’
शेर बोला- ‘भाई ! अपराध तुमने किया है तो दण्ड भुगतना ही पड़ेगा । हाँ ! इतनी बात है कि तुम अपनी गलती स्वीकार करते हो तो तुम्हें कठोर दण्ड नहीं मिलेगा ।’
फिर काली कौवी से शेर ने पूछा- ‘बहिन ! तुम्हीं बताओ, इसे क्या दण्ड दिया जाये ?’
काली कौवी बोली- ‘बच्चे तो मेरे आ नहीं सकते । इसका घर तोड़ दिया जाये । आगे से न रहे, जिससे उसे मारे थे ‘ याद रहे चम्पू कभी घर में कि किसी के बच्चे उसने सिंह ने यही दण्ड सुना दिया । चम्पू सिर झुकाकर चुपचाप सुनता रहा ।
सिंह के सैनिक जाकर तुरन्त उसका घर गिरा आये । चम्पू और उसके माता-पिता पेड़ की डालों पर ही तब से रहने लगे । इसी कारण आज तक बन्दर घर बनाकर नहीं रहते ।
उस दिन से चम्पू की सारी शरारतें छूट गर्यो । ठीक ही कहा गया है कि अपनी समझ-बूझ नहीं खोनी चाहिये । सोच-समझकर काम करना चाहिये । क्रोध में जो कार्य किया जाता है उसका फल सदा बुरा ही मिलता है ।