सपने की सीख
केशव की शरारतों से पूरा घर परेशान था । उसकी शरारतों का ओर-छोर नहीं था। स्कूल से आया, बस्ता पटका, खाया-पिया और कर दिया अपनी शरारतों का दौर शुरू। कभी पीछे से आकर बहिन की चोटी खींचकर भाग जाता, तो कभी खाना पकाती माँ की गैस ही चुपके से बन्द कर जाता ।
कभी चूहे की पूँछ में धागा बाँध कर उसे नचाता, तो कभी ततैया को पंखों से पकड़कर कुचल ही देता था । छोटे-मोटे जीव-जन्तुओं की तो केशव के घर में खैर ही न थी ।
केशव के माता-पिता उसकी इन आदतों से बड़े ही दुःखी थे । उसके पिताजी ने उसके लिये तरह-तरह के खिलौने लाकर रख दिये थे। पर दो-चार दिन तो केशव उनसे खेलता फिरता, फिर उन्हें एक कौने में पटक देता और उसकी शरारतें पुनः प्रारम्भ हो जातीं ।
धीरे-धीरे दूसरों को परेशान करने में, उन्हें सताने में उसे आनन्द आने लगा । छोटे-छोटे जीवों को तंग करके उन्हें मारकर वह खुश होता था। वह भूल जाता था कि इनमें भी मन और प्राण विद्यमान हैं । ये अबोध प्राणी बोल नहीं पाते तो क्या हुआ, इन्हें भी दुःख और कष्ट होता है ।
केशव की माँ यह देखकर बड़ी दुःखी होती । वह उसे समझाया करती – ‘देखो ! तुम बेकार के इन कामों में बहुत समय बर्बाद करते हो ।
उस समय में अच्छी किताबें पढ़ो, खेल खेलो और घर के छोटे-छोटे कामों में हमारी सहायता करो। समय का सदुपयोग करो, फिर सभी तुमसे खुश रहेंगे । बेकार के काम करने से, उनमें समय गँवाने से शक्ति क्षीण होती है । उससे न अपने को और न ही दूसरों को कोई लाभ मिल पाता है ।
माँ की इन बातों का प्रभाव दो-चार घण्टे केशव पर रहता, फिर वह जैसा का तैसा बन जाता । आखिर उसकी माँ ने ही बार-बार कहना छोड़ दिया । पर हाँ, जब वह छोटे जीवों को |
सताता तो उनका खून खौल उठता और वे कभी-कभी तो गुस्से में आकर केशव की पिटाई भी कर देतीं । वह इतना ढीठ बन गया था कि उस पर कोई भी असर न होता ।
एक दिन घर के पिछवाड़े नीम के पेड़ पर बने मक्खियों के छत्ते को देखकर केशव ललचा उठा । उसने सोचा कि मधुमक्खियों को यहाँ से भगा दूँगा तो खूब सारा शहद खाने के लिये मिलेगा । दोपहर में जब माँ सो रही थी तो वह दबे पैरों वहाँ गया।
पेड़ के नीचे घास-फूस इकट्ठा करके उसने हुँआ कर दिया । के कारण मधुमक्खी छत्ते से निकल-निकल कर उड़ने लगीं । जब वहाँ मक्खियों न रहीं तो केशव अपने शरीर को चारों ओर से ढक कर पेड़ पर चढ़ा और छत्ता तोड़ने लगा।
अभी उसने तोड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था कि हवा के तेज झोंके से उसके मुँह का कपड़ा उघड़ गया । छत्ते में रहने वाले बच्चों के मोह से उड़ रही मक्खियों का झुण्ड केशव के मुँह पर टूट पड़ा । केशव इस आकस्मिक हमले से हड़बड़ा उठा और उसका पैर फिसल गया । धड़ाम से वह पेड़ से गिर पड़ा ।
अब मधुमक्खियों को भी मौका मिल गया वे उसके शरीर से जगह-जगह चिपककर उसे काटने लगीं। जैसे-तैसे केशव वहाँ से जान बचाकर भागा ।
घर के अन्दर पहुँचते-पहुँचते अनेकों जगह मधुमक्खियों ने उसे काट खाया था । उसके मुँह, हाथ-पैर सभी सूज रहे थे । दर्द से वह बेचैन हो रहा था। माँ को वह जगाये भी तो कैसे ? उसकी हिम्मत भी नहीं हो रही थी।
जी कड़ा करके खुद दवा की आलमारी के पास गया और जगह-जगह जहाँ मधुमक्खियों के डंक लग गये थे वहाँ दवा लगाई । एक घण्टे की पीड़ा के बाद मधुमक्खियों के काटने की जलन तो शान्त हो गयी, केशव का बायाँ हाथ दर्द कर रहा था ।
वह हथेली के ऊपर से न हिल रहा था । उसके हिलने पर वह दर्द से कराह उठता था । आखिर जब उससे दर्द न सहा गया तो माँ के पास गया ।
‘आज क्या शैतानी की है तुमने ?’ माँ ने पूछा । ‘कुछ नहीं माँ मैं तो चुपचाप कमरे में लेटा था ।’ केशव ने अनजान – सा बन कर झूठ बोलना चाहा ।
‘असम्भव, बिलकुल असम्भव है यह । या तो सच सच चुपचाप से बता, नहीं तो भागो यहाँ से । भुगतते रहो दर्द ।’ उसे तीखी नजरों से देखते हुए कठोर स्वर में माँ ने कहा । माँ की डॉट से केशव रो पड़ा ।
वास्तव में दर्द भी अब तेज होता जा रहाथा । उसने रोते-रोते माँ को सारी बात सच-सच बता दी । माँ ने उसका हाथ छुआ तो केशव चीख पड़ा। वे कहने लग लगता है कि हड्डी टूट गयी है । हड्डी टूटने का नाम सुनकर तो केराव जोर-जोर से रोने लगा ।
माँ बोलीं दूसरों को सताने वाला कभी न कभी दण्ड पाता ही है। औरों का बुरा सोचने वाला, बुरा करने वाला, कभी सुख पा ही नहीं सकता । जितने जीवों को तुमने सताया है । तुमसे बदला तो लेंगे ही ।
सब शाम को पिताजी केशव को डाक्टर के यहाँ ले गये तो उन्होंने बताया कि उसकी हड्डी टूट गयी है। डाक्टर ने डेढ़ महीने के लिये केशव के हाथ पर प्लास्टर चढ़ा दिया । गले में डाली गयी पट्टी में हाथ लटकाकर जब केशव घर आया, तो वह रुँआसा हो रहा था ।
माँ अभी गुस्से में थी, पिताजी भी कह रहे थे- ‘जो जैसा करेगा वह वैसा ही फल पायेगा । बुरा करने वाले को रोग, शोक और संकट सहने ही पड़ेंगे ।’
घर में कोई ऐसा न था, जिसने केशव से सहानुभूति दिखाई हो । सभी उसका तिरस्कार कर रहे थे । केशव ने इतना अपमान कभी नहीं सहा था । वह भूखा-प्यासा जाकर सो गया ।
सोच रहा था कि माँ आकर उठायेंगी । कुछ देर तक वह इन्तजार करता रहा, पर माँ और पिताजी के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे । उनकी बातें सोचते-सोचते ही उसकी आँख लग गयी ।
सपने में केशव ने देखा कि ढेरों मधुमक्खियाँ, चूहे- ततैया, जगह-जगह उसके शरीर से चिपक गये हैं । वे उसे खूब जोर-जोर से काट रहे हैं ‘दुष्ट और सतायेगा हमें । ले यही फल मिलेगा तुझे ।
अब स्वयं सहकर पता लग रहा है न तुम्हें कि दूसरों को भी कष्ट होता है । मूर्ख अभी भी सुघर जा । वायदा कर कि किसी को नहीं सतायेगा । नहीं तो काटकर जान ले लेंगे हम तेरी ।’
‘अब कभी नहीं सताऊँगा । कभी नहीं सताऊँगा । ‘छोड़ दो मुझे ।’ केशव चीखा और उसकी आँख खुल गयी । केशव ने पाया कि सिरहाने बैठी उसकी माँ पूछ रही हैं-‘क्या बात है केशव ?’
सहम कर केशव माँ की गोद में चिपकते हुए बोला- ‘माँ मैं अब कभी किसी को तंग नहीं करूँगा ।’
‘तब तो तुम हमारे राजा बेटा बन जाओगे । फिर सभी तुम्हें बहुत प्यार करेंगे ।’ कहकर माँ ने केशव को हृदय से लगा लिया ।
अब केशव सचमुच बड़ा अच्छा लड़का बन गया है । सभी को तंग करना जीवों को सताना उसने छोड़ दिया है । उसके पिताजी ने दो नन्हें खरगोश उसके लिये ला दिये हैं, जिन्हें वह बड़े प्यार से रखता है।
अब तो केशव छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं को किसी दूसरे के द्वारा भी सताया जाता देखता, तो उनसे भी कहता- ‘भाई ! इन बेचारों को दुःख देने में हमारा गौरव नहीं है । अगर कुछ कर सकते हैं, तो हम सब इनकी सुरक्षा और सहायता ही करें, तभी ये हमें कुछ दुआयें देंगे ।’
केशव की माँ अक्सर कहा करती हैं कि व्यवहार के इस परिवर्तन का कारण उसकी हड्डी टूटना है । वह यह सुनकर मन ही मन मुस्करा उठता है । अपने आप से कहने लगता है कि यह सब सपने की सीख का परिणाम है ।