क्रमहिंदी कहानियाँकहानी से सीख(Moral Of The Story)
1घास की चोरी और जमाखोरीयदि मुखिया बुद्धिमान हो, कर्तव्य परायण हो, ईमानदार हो तो चोरी-चोरबाजारी पनप नहीं सकते ।
2नन्दू की नौकरीईमानदारी और सूझबूझ व्यक्ति का सदैव ही आदर कराती है ।
3न्यायी राजाराजा को ऐसा ही न्यायी होना चाहिये
4माँ और बच्चेबचपन में हम जैसे बन जाते हैं, बड़े होकर वैसे ही रहते हैं । बचपन के संस्कार ही तो हमारे भविष्य को बनाते हैं ।
5आलसी को सजाआलसी चींटी को मिली बिल छोड़ने की सजा
6ज्योतिषी सियार की करामातजो पुरुषार्थ में नहीं भाग्यवाद में विश्वास रखते हैं, ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ते हैं, उनका यही नतीजा बुरा होता है ।
7पोल खुल गयीपोल कभी न कभी तो खुलती ही है । अच्छा यही है कि जैसे हम अन्दर से हैं, बाहर से भी अपने आपको वैसा ही दिखलायें ।
8कहानी एक चित्र कीवह सौन्दर्य, जिसके मूल में प्राणों की बलि हो उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती ।
9गायों की गोष्ठीभगवान् इन मनुष्यों को सद्बुद्धि दे कि वे जीवों पर दया करें।
10मित्रता का अन्तजीवन में कोई सच्चा मित्र न बन पाये, यह उतना बुरा नहीं है । इससे बुरा तो यह है कि हम बिना परखे किसी अयोग्य और दुष्ट से मित्रता कर लें।
11सपने की सीखदुःख देने में हमारा गौरव नहीं है । अगर कुछ कर सकते हैं, तो हम सब इनकी सुरक्षा
12दो भाईअपने बुरे व्यवहार से औरों का दिल दुखाने वाला अन्त में स्वयं भी कष्ट निश्चित ही भुगतता है ।
13बुद्धिमती चुहियासंसार में अच्छे प्राणी भी हैं और बुरे भी ।
14चुलबुल का जन्मदिनमैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि सभी की सहायता किया करूँगा ।
15पक्षियों की पंचायतज्ञान की सार्थकता इसी में हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह दूसरों को भी सिखायें ।
16गुस्से का फलक्रोध में जो कार्य किया जाता है उसका फल सदा बुरा ही मिलता है ।
17लल्लू कैसे बदलाएक-दूसरे की सहायता करनी चाहिये । तभी वे संकट के समय भी हमारी सहायता करेगे ।
18जुगनओं की कैदआपत्ति में पड़े हुए की सेवा-सहायता करना हम सभी का धर्म है ।
19मित्र की पहिचानमित्र की सहायता करना मित्र का धर्म है । जो समय पड़ने पर मित्र की सहायता नहीं करता, वह सच्चा मित्र नहीं हुआ करता ।
20नन्दू को दण्डबुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है। आज नहीं तो कल वह भुगतना पड़ता है ।
21शाल बकरीजो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे हमेशा दुःख पाते हैं ।
22कपिला लोमड़ी इस मूर्खता से दूसरों की कम और अपनी हानि अधिक होती है ।
23बर्र का उपदेश न कोई छोटा है न बड़ा। सभी की अपनी अलग-अलग शक्ति-सामर्थ्य है । हम अपने अहंकार के गर्व में किसी का भी तिरस्कार न करें ।
24मीठे अंगूरउसने सभी के सामने प्रतिज्ञा की कि अब वह सभी से सज्जनता का व्यवहार करेगी । सभी के साथ मिल-जुलकर रहेगी, दूसरों की सहायता करेगी ।
25श्वेता की उतावलीकिसी ने सच ही कहा है कि जल्दबाजी और उतावलेपन में काम सदैव ही बिगड़ता है। जो धैर्य और शान्ति से कार्य करता है वही सफलता पाता है ।
26चंगू-मंगू चले घूमनेअब दोनों भाइयों ने अपने कान पकड़े और निश्चय किया कि जब तक वे बड़े नहीं हो जायेंगे और जब तक पिताजी उन्हें आज्ञा नहीं देंगे तब तक वे बिल से बाहर नहीं निकलेंगे ।
27नकल का फलअनुकरण सोच-समझ कर ही करना चाहिये । सब काम सबके अनुकूल नहीं हुआ करता । बिना अकल के जो नकल की जाती है वह सफल नहीं हुआ करती ।
28प्रायश्चिततुम्हारे व्यवहार से लोगों को तुम्हारा नहीं हमारा परिचय मिलता है कि हम कैसे ?
29भूत का भयकायर व्यक्ति कभी किसी काम में सफल नहीं होता । तुम बहादुर बनो । बेकार का डर छोड़ो ।
30अपना काम अपने आपस्वयं परिश्रम करके जो कार्य किया जाता है, उसी में सच्चा आनंद मिलता है ।
31सच्ची कमाईईमानदारी से अपने हाथ-पैरों से मेहनत करके जो चीज पा सको, उसी का उपयोग करो, इसी में सुख है, इसी सफलता है और इसी में शांति है।
32राजा की सनकमूर्ख स्वामी की सेवा करने वाले कर्मचारी भी धीरे-धीरे मूर्ख बन जाते हैं।
33पोखर का जादूजादू-टोनों में विश्वास नहीं करेंगे, जिससे कि उन्हें कोई ठग और छल न सके।
34घमंडी कजरीदेखो ! मैं व्यर्थ ही अभिमान करती थी। सभी से दूर रहा करती थी। दुःख-मुसीबत में हम सब ही एकदूसरे के काम आते हैं। हम सभी को मिल-जुलकर रहना चाहिए।
35सुंदर की उदारताजो जैसा होता है, वह दूसरों के प्रति भी वैसा ही सोचता है। मैं बुरे के साथ बुरा नहीं किया करता । मैं तो सदैव सबकी अच्छाई की बात ही सोचा करता हूँ।”
36स्वावलंबन जो चीज तुम्हें चाहिए, उसे अपनी मेहनत से प्राप्त करो।
37मित्रता की कलाकेशू अब पहले जैसा नहीं रहा। वह बहुत अच्छा बन गया है।”
38परिश्रमी सदा सुखीप्रसन्नता है दत्ता ! तुम सही रास्ते पर आ गई हो। तुम्हारा स्वागत है, सभी के साथ मिल-जुलकर रहो।
39स्नेह की शक्तिमुसीबत में पड़े की सहायता करना हमारा धर्म है। चाहे वह शत्रु हो या मित्र ।
40तीन मित्रजीवन में सच्चे मित्र बड़ी कठिनाई से मिलते हैं। जो सच्चे मित्र पा लेता है, वह बड़ा भाग्यवान होता है। उसे विपत्तियाँ भी विपत्ति जैसी नहीं लगा करतीं। सुख-दुःख दोनों ही स्थितियों में उसके मित्र भागीदार होते हैं।
41बंदर की नादानीछोड़ दो मुझे, अब मैं कभी भी किसी का बुरा नहीं करूँगा- कहते हुए चुन्नू रोने लगा।
42सबकजो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे सदैव आपत्ति में पड़ते हैं। तुम्हारी शक्तियाँ अभी सीमित हैं। तुम्हारा अनुभव अभी कम है, इसलिए बड़ों की बात मानकर काम करो।
43सोच-विचार कर काम करेंअपने से जो ज्यादा अनुभव रखता हो, उसकी बात पर विचार करना चाहिए। उसके कहने के अनुसार काम करना चाहिए। जो उतावली में थोड़े से लोभ में आकर काम करता है, वह बाद में दु:ख ही पाता है ।
44सही रास्ता गलती तो सभी से होती ही रहती है। बुरा वह नहीं है जो कभी गलती नहीं करता । बुरा वह है जो गलत करके भी उसे स्वीकार नहीं करता। जो अपनी गलती मानते हैं, वही उसे दूर कर पाते हैं । “
45संगठन की शक्तिदुःख-सुख में एकदूसरे से सहारा मिलता है। सभी मिल-जुलकर रहें, इसी में आनंद है
46नदी पार की दावत जो भी कार्य हम करें, सोच-समझकर करें। कोई कार्य ऐसा न करें, जिससे दूसरे का कोई अहित हो। अपने लाभ के साथ-साथ दूसरे के लाभ का भी ध्यान रखें।
47मित्र का कर्त्तव्यतुम हमारे सच्चे मित्र हो, सच्चे हितैषी हो। सच्चा मित्र अपने मित्र का दुःख नहीं देख सकता। तुम्हारे परिश्रम और योजना से ही आज हम कैद से छूट पाए हैं।
48सोनी की धूर्तताजो दूसरों की बातों में आकर बहक जाता है, मित्र पर अविश्वास करने लगता है, वह जीवन में सच्चा मित्र कभी नहीं पा सकता।”
49जातीय गौरव धिक्कार है इन अभागे मूर्खों को जो अपनी मातृभाषा का गौरव भूलकर औरों की भाषा की नकल ही करते हैं और खुश होते हैं।
50शक्ति की पहिचानजो अपने को पहिचान लेते हैं, अपनी आंतरिक शक्तियों को जानकर उनका सदुपयोग कर लेते हैं, वही अपने जीवन को ऊँचा उठा लेते हैं, औरों के लिए भी खुशहाली लाते हैं।’
51होनहार बालक ऐसे बच्चे ही तो समाज और देश के गौरव हुआ करते हैं
52कूबड़ी बुआयदि वह सच्चाई को पहले पहचान लेती, अपनी गंदी आदत छुड़ा लेती तो क्यों यह दुर्दिन देखना पड़ता।
53मोटा गुल्लूअधिक खाने की आदत छुड़ाने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ा, मन को कठोर बनाना पड़ा। पर अंत में चंदो अपने काम में सफल ही रही।
54व्यक्तित्व की परख‘संसार में न धूर्तों की कमी है न महान् आत्माओं की। हमें अच्छे व्यक्तियों का ही अनुकरण करना चाहिए जिससे यह जीवन सफल और सार्थक बने ।
55बीमारियों की जड़ईर्ष्या, द्वेष, घमंड, कुढ़न, काम, क्रोध, लोभ आदि भी रोग हैं। ये मन के रोग शरीर के रोगों से अधिक भयानक हैं।
56समाज के शत्रुयह हमारे स्वभाव की विशेषता होती है कि दूसरों की अच्छाई तो हम देर से ग्रहण कर पाते हैं पर बुराई जल्दी ही सीख लेते हैं। इसीलिए तो अच्छे व्यक्तियों की संगति को इतना महत्त्व दिया जाता है।
57चींटी और मधुमक्खी‘संकट की घड़ी ने हमारी मित्रता को और अधिक निखार दिया है।’
58यात्रागंगोत्री की यात्रा ने प्रशांत का न केवल शरीर और मन ही स्वस्थ बना दिया था। अपितु जीवन की परिस्थितियों के प्रति उसका दृष्टिकोण भी आशावादी बना दिया था।
59स्वर्ग का सुखस्नेह और त्याग से भरा परिवार ही स्वर्ग का सुख देता है
60भाइयों का स्नेहसंगठन से ही सुरक्षा और बल मिलता है। अपने शुभ चिंतकों से, आत्मीयजनों से लड़-झगड़ कर रहने से तो दुर्जनों को लाभ उठाने का अवसर मिल जाता है और हमारी परेशानियाँ ही बढ़ती हैं।
61संकल्पजिस आदत को हम सच्चे मन से बदलने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं, वह निश्चित ही बदल जाती है।
62सफल और लोकप्रिय शासकऊँचा पद पाकर अभिमान नहीं करना चाहिए अपितु सद्गुणों से ही अपने आपको ऊँचा उठाना चाहिए।
63पांडव बनाम कौरवजो मार्ग चुना गया, अनुरूप गति मिली ।
64स्वार्थी इक्कड़ की दुर्गतिएकाकी स्वार्थ-परायणों को इसी प्रकार नीचा देखना पड़ता है।
65चुहिया ने चुना चूहामनुष्य को भी इसी तरह अच्छे से अच्छे अवसर दिए जाते हैं, पर वह अपनी मन:स्थिति के अनुरूप ही चुनाव करता है ।
66दुःखी आमन उसके फल किसी के लिए उपयोगी बन पाते हैं और न कोई उसके पास जाता है ।
67मलीन पोखरीस्वार्थ के ऐसे ही परिणाम निकलते हैं ।
68दो मुँह वाला जुलाहासाधारण स्तर बनाये रहने में ही भलाई है।
69सोने का अंडाउतावली में एक अंडा मिलने का लाभ भी हाथ से चला गया
70 जल्दबाजी का दुष्परिणामधनवान बनने की जल्दबाजी में मैंने स्वयं अनर्थ मोल ले लिया।
71दुर्योधन का दर्पदुर्योधन को शर्म से सिर झुकाना पड़ा ।
72विदुर का भोजन और श्रीकृष्णऐसी सुविधाएँ न भगवान ही स्वीकार करते हैं, न उनके भक्त ।
73अहंकारिता और जल्दबाजी का दुष्परिणामविद्वत्ता और उदारता जितनी सराहनीय है, उतनी ही अहंकारिता और जल्दबाजी हानिकर
74विलासी हारते हैं अहंकार दोष से मुक्ति पाने का तप करो । उसके बिना समस्त वैभव अधूरे हैं ।
75दान बना अभिशापयदि कर्तव्य की मर्यादा में ही वह वरदान का उपयोग करता, तो शिव के स्नेह और संस्कार के यश का भागीदार बनता ।
76बिच्छू और केकड़ादुष्ट को सज्जन बनाने का काम संतों पर छोड़कर साधारण लोगों को तो उनसे बचे रहने में ही खैर है ।
77चरवाहे की सम्पत्तियुवा बादशाह आदर्शनिष्ठा को देखकर नत मस्तक हो गया ।
78दास चीरित्र एवं बुद्धअर्हत ही बनना हो तो अहंता गलानी और छोटे श्रम को भी गरिमा प्रदान करनी चाहिए ।
79राजेन्द्र बाबू की सरलता
80फोर्ड जिनने अपनी कमाई परमार्थ में लगाई फोर्ड फाउंडेशन द्वारा अनेक परमार्थ-कार्य चलते हैं।
81परमहंस की विनम्रता और सादगीसत्परामर्श द्वारा अपनी ब्राह्मण वृत्ति की शिक्षा अन्यान्यों को भी देकर सन्मार्ग का पथ प्रशस्त करते हैं ।
82हजारी किसानउस क्षेत्र का नाम उस किसान की स्मृति में हजारीबाग पड़ा ।
83पाप का प्रायश्चितएक क्रूर और आतताई कहा जाने वाला अशोक बदला तो प्रायश्चित की आग में तपकर वह एक संन्यासी जैसा हो गया ।
84दृढ़ निश्चयी मीरामीरा को दृढ़ निश्चयी और साहसी भक्तों में गिना जाता है ।
85मंत्री भद्रजित की देवकृतिराजा समझ गए सत्पुरुष पद से नहीं, अपनी देवोपम प्रवृत्तियों से सम्मान पाते हैं ।
86सिद्धांतवादी वर्नार्ड शॉउनकी विद्वत्ता, उनकी आदर्शनिष्ठा के सहारे ही इतनी निखरी और लोकप्रिय हुई ।
87वुड्रेज की सफल श्रम साधनासारे विश्व में उसका और उसकी खेल योजना का नाम गौरव के साथ लिया जाता है ।
88पाखंड उन्मूलक सच्चे संन्यासी दयानंदआर्य समाज की खदान में से बहुमूल्य मणि-माणिक्य निकले जिनकी कृतियों को कभी भुलाया न जा सकेगा ।
89वेद ज्ञान के प्रसारक मैक्समूलरस्त्री और शूद्र भी उस ज्ञान को मनुष्यों की तरह प्राप्त करने लगे ।
90आदर्श चिकित्सकउस पिछड़े क्षेत्र को हर दृष्टि से डॉक्टर साहब ने इतना समुन्नत बनाया कि लोगों के लिए वह दर्शनीय तीर्थ बन गया ।
91गोस्वामीजी की समाज-निष्ठा उद्देश्य हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान की भावना को प्रबल बनाना था।
92महानता का मापदंडइस तरह से अपने कार्यों द्वारा वसंत वायु ने अपनी शक्ति का परिचय आँधी को करा दिया।
93संत राजा रामदेवलाखों लोग रामदेव के आदर्शनिष्ठ जीवन की कथायें कहते और प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
94बापा जलाराम पर दैवी अनुदानकोठरी में से अन्न कभी कम नहीं पड़ा और अभी भी हजारों लोग उस अन्नपूर्णा झोली का प्रसाद लेने आते हैं।
95रैडक्रोस के जन्मदाताइसका श्रेय डूमा को है, जिन्हें नोबुल पुरस्कार भी मिला।